वोटवा हम काहे के डालीं

(आधी हकीकत आधा फसाना)

वोटवा हम काहे के डालीं

पालटी आपन जीतत वा तौ, वोटवा हम काहे के डालीं।
एक वोट से फरक क पड़िहै, ई सोचके हम परवाह न कइलीं।

पालटी आपन जीतत वा तौ, वोटवा हम काहे के डालीं।

अबकी नेतवा घर न अइले, न हम ऊके मलवा पहिनइले।
हमें ऊ जानै न हम पहचानै तौ, वोटवा हम काहे के डालीं।

नेतवा हमरे आगें झुकते, कुछ मिन्नत आशीष वे पइते।
नेतवन के परवाह नहीं तौ, वोटवा हम काहे के डालीं।

न संपर्क न वे पहचानै, हमें काम पड़ै तौ कैसे जानै,
उनकौ जब परवाह न तनकौ, वोटवा हम काहे के डालीं।

कान्फिडेंस हौ जीत क ओवर, चार सौ पार कर रहलवानी।
जब ई घमंड तोके हो गइल तौ, वोटवा हम काहे के डालीं।

इक वोटवा से का बिगड़ी, ई सोचके हम मतकेन्द्र न गइनीं।
अइसन करवै वाले बहुते, परसेंटेज ये ही सें बिगड़लीं।

इक लुटिया तालब न भरवै, ई सोचत कोई न डललीं।
भोरे इक्को बूंद न देखवो, तालाब सूखौ कौ सूखौ पइलीं।

अधिकार संग दायित्व समझिकै, अवश वोट डाले के पड़हीं
अब कब्भूं अइसन मत सुचिहा कि वोटवा हम काहे के डालीं।
 
-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर,

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