और अब नामांकन भी गया उत्सव ... 

  और अब नामांकन भी गया उत्सव ... 

 चाहे वह प्रधानमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह हो, चुनाव प्रचार में रैली या रोड शो करना हो,जी एस टी जैसी नीति लागू करनी हो यहां तक कि कोविड जैसी विश्व की अब तक की सबसे बड़ी आपदा ही क्यों न हो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन जैसे सभी अवसरों में 'उत्सव' तलाशने में विशेष महारत रखते हैं । हालांकि समय समय पर ज़रुरत के अनुसार वे यह भी बताने से भी नहीं चूकते कि उनकी परवरिश बेहद ग़रीबी में हुई। वह सार्वजनिक तौर पर भी कई बार अपनी ग़रीबी का ज़िक्र करते हुये अपने बचपन की कई दास्तानें सुना चुके हैं। वे स्वयं अपने  व अपनी मां के पीड़ादायक दिनों का जिक्र करते हुये बता चुके हैं -'कि बेचारी मेरी मां बर्तन साफ़ किया करती थीं। मैंने अपनी मां को दूसरों के घरों में बर्तन मांजते देखा है। साथ ही वह हमारा पालन पोषण भी बखूबी करती थीं। उन्होंने यह भी बताया था कि -' हम बिनौले छीलते थे, सुबह बेचने जाते थे, जिससे हमें जीने के लिए कुछ मज़दूरी मिलती थी'।
 
मोदी ने कहा कि मजबूरियों से घिरी मां के बोझ को कम करने के लिए मैंने ख़ुद चाय बेची थी। प्रायः वे अपनी परवरिश के लिए दिये गये अपनी मां के बलिदान को याद करते रहते हैं। उनकी इस बाल कथा को सुनकर निश्चित रूप से सुनने वालों का मन यह सोचकर द्रवित हो उठता है कि इतनी ग़रीबी में पलने वाला व्यक्ति  किस तरह भारतीय संविधान व लोकतंत्र की महिमा से देश के सर्वोच्च पद तक पहुँच सका। और जब वही मोदी यह कहते हैं कि मैं प्रधानमंत्री नहीं बल्कि प्रधानसेवक हूँ। वे स्वयं को फ़क़ीर भी बताते हैं। यहाँ तक कि जब उनसे यह पूछा जाने लगता है कि उनमें यह 'फ़क़ीरी ' आई कहाँ से ? और वे ख़ुद ही यह भी कहते हैं कि -'विरोधी मेरा क्या कर लेंगे? हम तो फ़क़ीर आदमी हैं, झोला लेकर चल पड़ेंगे।यह फ़क़ीरी है, जिसने मुझे गरीबों के लिए लड़ने की ताक़त दी है'।
 
संघ से जुड़े अपने शुरूआती दिनों पर रौशनी डालते हुये वे यह भी बता चुके हैं कि काफ़ी दिनों तक वे अहमदाबाद के मणिनगर में डॉ. हेडगेवार भवन में रुके थे ,वहां वे सफ़ाई करते थे।  वहां उनका यही काम था,सुबह 5 बजे उठना, झाड़ू-पोछा लगाना. सबके लिए चाय बनाना और 5.20 बजे सबको उठाकर चाय देना। मोदी यह भी कह चुके हैं कि - 'कोई भरोसा नहीं करेगा, लेकिन मैं 35 साल तक भिक्षा मांग कर खाया हूं।  बेशक ये बात किसी के गले नहीं उतरेगी। हालांकि, मैं कहीं बता कर नहीं जाता था। वहां जाने पर जो भी मिल जाता, मैं खा लेता।  अगर नहीं मिलता तो नहीं खाता। मेरा जीवन ऐसे ही गुज़रा है।  कभी पार्टी के काम से देर से आया तो खिचड़ी बना कर खा लेता था'।
 
और प्रधानमंत्री बनने के बाद जब वे कभी कभी संतों की वेशभूषा में कहीं कहीं शाष्टांग दंडवत करते दिखाई देते हैं तो भी यही गुमान भी होने लगता है कि वास्तव में देश को ग़रीबी में परवरिश पाने वाला कोई संत फ़क़ीर रुपी प्रधानमंत्री मिला है। ज़ाहिर है ऐसे घोर ग़रीबी में पलने वाले ऐसे व्यक्ति से तो यही उम्मीद की जा सकती है कि उसका सारा जीवन सादगी से भरा हुआ होगा उसके रहन सहन व क्रिया कलापों में भी सादगी की झलक नज़र आएगी। और उसका सारा जीवन ग़रीबों के कल्याण में व उनका जीवन स्तर ऊपर लेजाने में गुज़रेगा। 
 
परन्तु इन्हीं नरेंद्र मोदी का एक ऐसा रूप भी है जो उनकी बालकथा से बिल्कुल विपरीत है।  उनका खान पान परिधान आदि तो शाही हैं ही साथ ही उनके राजनैतिक व सरकारी क्रिया कलाप व आयोजन भी इतने ख़र्चीले हैं जितने कि पूर्व के किसी भी प्रधानमंत्री के नहीं रहे। मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही अपनी यात्रा के लिए लगभग 8,458 करोड़ रुपये की लागत से अत्याधुनिक दो बोईंग 777-300ER विमान ख़रीदे। यह विमान अमेरिकी राष्ट्रप‍ति के एयरफ़ोर्स वन की तरह के हैं। बल्कि कई मामलों में उससे भी आधुनिक हैं। एक 'ग़रीब प्रधानमंत्री' के इस क़दम की बहुत आलोचना हुई  थी क्यूंकि इसमें देश की ग़रीब जनता का पैसा लगा था। इसी के साथ मोदी ने सेंट्रल विस्टा नामक परियोजना के तहत नया संसद भवन बनवा डाला।
 
इस परियोजना की लागत अनुमानतः ₹13,450 करोड़ थी। यह भी जनता के टैक्स के पैसों से बनाया गया ऐसा प्रोजेक्ट था जिसकी देश को कोई आपातकालीन ज़रुरत नहीं थी। पुराना संसद भवन भी अभी पूरी तरह मज़बूत अवस्था में है। मगर यह सब एक 'फ़क़ीर प्रधानमंत्री' के फ़ैसले थे। मोदी जी को जहां मंहगे व बेशक़ीमती परिधान पहनने व दिन में कई बार लिबास बदलने का शौक़ है वहीँ इनकी घड़ियाँ व पेन आदि भी लाखों रूपये क़ीमत के और विदेशी होते हैं। याद कीजिये राष्ट्रपति ओबामा के भारत दौरे पर मुलाक़ात के समय नरेंद्र मोदी ने जो कोट सूट पहना था उसके फ़ैब्रिक में ही नरेंद्र दामोदरदास मोदी बुना हुआ था। जब इस आलीशान शहंशाही परिधान की ख़ूब आलोचना हुई तो इसे नीलाम कर दिया गया। उसी के बाद विपक्षी मोदी सरकार को सूट बूट वाली सरकार कहते हैं। मेकअप कराना फ़ोटो शूट कराना,पोज़ देना ,कैमरे में अपने सिवा अन्यों को फ़्रेम से बाहर रखना जैसी 'फ़क़ीरी भरी ' बातों से तो सभी वाक़िफ़ हैं।
 
इतना ही नहीं बल्कि सरकारी ख़र्च पर बड़े बड़े आयोजन करना चुनावी सभाओं व रैलियों को करोड़ों ख़र्च कर उत्सव का रूप देना ,अपनी छवि चमकाने के लिया एजेंसियां अनुबंधित करने व विज्ञापन आदि पर जनता का पैसा ख़र्च करना भी इनके शग़ल में शामिल है। गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान सी प्लेन मोदी ने सी प्लेन उद्घाटित किया और वोट बटोरने की कोशिश की परन्तु बाद में वह सेवा ही बंद हो गयी। जी एस टी जैसा कथित तौर पर व्यावसायिक विरोधी कहा जाने वाला क़ानून जिस रात लागू हुआ उस रात तो ऐसा जश्न मनाया गया गोया देश को नई आज़ादी मिली हो। चुनावों में होने वाले इनके रोड शो बेहद ख़र्चीले होते हैं। इनके रोड शो में ट्रकों में भरकर फूल मंगाए जाते हैं।
 
एक स्थान पर सैकड़ों कार्यकर्त्ता उनकी पंखुड़ियां अलग करते हैं। फिर पूरे रस्ते में पार्टी कार्यकर्त्ता निर्धारित दूरी व स्थान पर थैलों में उन पंखुड़ियों को लेकर सड़कों व छतों पर खड़े होते हैं। और 'शहंशाह रुपी फ़क़ीर' के वहां से गुज़रने पर उनपर पुष्प वर्षा करते हैं। जबकि देश को टी वी पर देखने में यही लगता है कि जनता फूल बरसा कर उनका स्वागत कर रही है। पिछले दिनों वाराणसी में उनके नामांकन के दौरान भी इसी तरह का दृश्य देखने को मिला। पहले उन्होंने 13 मई को  वाराणसी में 6 किमी लंबा बेहद ख़र्चीला रोड शो किया।
 
उसके बाद क्रूज़ पर बैठ वाराणसी के घाटों का भ्रमण किया। उसी क्रूज़ पर एक 'गोदी मीडिया ' के सदस्य टी वी चैनल को एक सुगम साक्षात्कार दिया। उसमें अपनी भावुकता जमकर दर्शायी। उसके बाद 14 मई को नामांकन में तो काशी में भाजपा के दिग्गजों का जमावड़ा लग गया। इनमें गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा,केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई मंत्री,उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व अनेक मंत्रियों के अलावा कई राज्य के मुख्यमंत्री भी वहां मौजूद रहे। गोया करोड़ों रूपये ख़र्च कर 'फ़क़ीर' की इस नामांकन प्रक्रिया को भी एक उत्सव का रूप दे दिया गया। 

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