एशिया,यूरोप और नाटो के शक्ति संतुलन में भारत की भूमिका।
भारत को नाटो प्लस का प्रस्तावl
रूस में यूक्रेन पर आक्रमण कर के अमेरिका तथा यूरोपीय देशों के नाक में दम कर के रखा हैl रूस का कहना है कि यदि यूक्रेन में नाटो देश अपनी सेना का लश्कर उतारेगा तो नाटो देश को भुगतना पड़ेगाl इसी श्रृंखला मैं इसराइल ने फिलीस्तीन लेबनान और ईरान पर अपना रोड रूप दिखाना शुरू कर दिया है इजराइल में हम आपका फिलिस्तीन को को लगभग नेस्तनाबूत कर दिया है, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस नेम इजरायल के राष्ट्र प्रमुख नेताओं के खिलाफ सामूहिक हत्याकांड का प्रकरण दर्ज किया है पर इजरायल को इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ा तो दुगनी ताकत से हमास फिलिस्तीन लेबनान और ईरान पर लगातार हमला कर रहा है लाखों नागरिक और सैनिकों की मौत भी हो गई है। चीन ने प्रशांत क्षेत्र में अपने कई युद्धपोत उतारकर नाटो देशों में खलबली मचा रखी है। अमेरिका की चीन से खाटी दुश्मनी जगजाहिर है अब चीन की ज्यादती ऊपर अंकुश लगाने के लिए अमेरिका तथा नाटो देश बहुत गहरी चिंता में पड़ गए हैंl
यह भी तय है एशिया में चीन की टक्कर में अब भारत एक नई शक्ति के रूप में उभर रहा है और भारत की सामरिक शक्ति का सहयोग लेने के लिए नाटो देश और अमेरिका भारत को हर तरह से घेरने की तैयारी में है। अब डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के साथ ही अमेरिका और भारत के नए समीकरण बनने के कगार पर हैं भारत एशिया की चीन के बाद दूसरी महाशक्ति बन चुका है और अमेरिका तथा नाटो देश ने भारत के साथ एशिया में शक्ति संतुलन बनाने की पूरी योजना तैयार कर ली है और इसी कार्यक्रम में भारत को नाटो प्लस में शामिल होने का प्रस्ताव भी दिया गया है। उल्लेखनीय है कि नाटो में कुल 31 देश शामिल है और नाटो प्लस इसके एक एक्सटेंशन की तरह ही है आपको बता दें की नाटो प्लस में शामिल पांच देश वर्तमान में है जिनमें ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इजराइल, जापान ,दक्षिण कोरिया शामिल है और यह देश अपने-अपने हितों के कारण नाटो प्लस तथा अमेरिका से जुड़े हुए हैं।
जाहिर है कि इसमें एक भी अटलांटिक देश शामिल नहीं हैl नाटो प्लस में सम्मिलित देशों को सामूहिक सुरक्षा के दायरे में रखा गया है सुरक्षा कवच के तहत यह सामूहिक अवधारणा है कि इन देशों पर यदि कोई दूसरा देश आक्रमण करता है तो यह माना जाएगा की वह इन सदस्य देशों पर हमला कर रहा है और उसकी सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी नाटो देशों की होगी पर नाटो प्लस के देशों को सुरक्षा कवच के दायरे से बाहर रखा गया है। इन देशों को सामरिक सूचनाएं और सामरिक सहयोग प्रदान नाटो देश करता रहेगा lदूसरी तरफ नाटो देश और अमेरिका हमेशा युद्ध के समय सदस्य देशों को यूक्रेन की तरह धोखा देने में माहिर होने के लिए जगजाहिर हो चुके हैं ऐसे में भारत को नाटो प्लस में शामिल होने के लिए कई बार विचार करना पड़ेगाl वैसे नाटो प्लस में शामिल होने के लिए अभी केवल अमेरिकी सांसदों का प्रस्ताव ही पारित हुआ है और अमेरिकी सरकार का पक्का प्रस्ताव भारत को नहीं मिला हैl
पिछले 5 वर्षों से भारत नई शक्ति के रूप में तेजी से शक्तिशाली हुआ है और अमेरिका तथा यूरोपीय देश भारत को एशिया की चीन के बाद दूसरी बड़ी शक्ति मान कर उसे अपनी तरफ शामिल करने के लिए काफी हद तक इच्छुक हैंl भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी अमेरिका यात्रा पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैl प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा में भविष्य में नाटो प्लस पर भी चर्चा हो सकती हैl भारत के संबंध अमेरिका से पिछले एक दशक से थोड़े मधुर हुए हैं पर अमेरिका का जैसा भारत के साथ इतिहास रहा है उस पर आंख मूंदकर विश्वास किया जाना बहुत मुश्किल ही समझा जाएगाl अमेरिका पर ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि वह अपने मित्र राष्ट्रों पर एन वक्त में धोखा देने में माहिर है जिसके ताजा उदाहरण अफगानिस्तान और यूक्रेन की तरह देखा जा सकता हैl
अफगानिस्तान अमेरिका के धोखे के कारण तालिबानी आतंकवादियों के हाथ में चला गया और यूक्रेन पूरी तबाही के कगार पर बैठा हैl उल्लेखनीय है कि यूरोपीय देश भारत को इनके खिलाफ इस्तेमाल करने की योजना भी बना सकता हैl भारत की विदेश नीति हमेशा स्वतंत्र चलने की रही है ऐसे में यदि किसी गठबंधन के तहत वह अमेरिका या यूरोपीय देशों के साथ सामरिक समझौता करता है तो वह भारत की नीति के विरुद्ध होगाl वैश्विक परिवेश में शीत युद्ध की स्थिति बन चुकी है और भारत को अपनी विदेश नीति की स्वायत्तता पर हटके रहकर निरपेक्ष ही रहना चाहिए क्योंकि नाटो प्लस के देश ऑस्ट्रेलिया ,इजरायल, साउथ कोरिया, न्यूजीलैंड और जापान विभिन्न तरीकों से अमेरिका तथा नाटो देश से अपने हित के लिए जुड़े हुए हैंl
नाटो प्लस में शामिल होने से निश्चित तौर पर चीन भारत से नाराज हो सकता है इसके अलावा अमेरिका तथा यूरोपीय देशों की गहरी निकटता से भारत का परंपरागत मित्र रूस जिसने भारत के युद्ध काल में हमेशा मदद की है बुरा मान सकता है इन परिस्थितियों को देखते हुए भारत को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर अडिग रहकर एक संतुलन बनाकर यूरोपीय देशों से सुरक्षित मित्रता एवं सुरक्षित दूरी रखकर चलना होगा क्योंकि भारत वसुधैव कुटुंबकम की नीति पर चलता आया है जबकि नाटो देश एक मजबूत सैन्य संगठन की तरह स्थापित है और ऐसे में किसी सैन्य संगठन में शामिल होना भारत की नीतियों के विरुद्ध होगा और भविष्य में नुकसान भी हो सकता हैl स्वतंत्रता के बाद से ही भारत की स्वतंत्र विदेश नीति ही विकास का मूल मंत्र रही है वर्तमान में भारत के संबंध अमेरिका, यूरोपीय देश, रूस, यूक्रेन तथा खाड़ी देशों से अच्छे बने हुए हैं अब किसी ग्रुप विशेष से संबंध रखने पर भारत की स्थिति डांवाडोल हो सकती हैl
नाटो प्लस में शामिल किए जाने का प्रस्ताव केवल चीन को एशिया में चुनौती देने के लिए ही दिया गया है और निश्चित तौर पर भारत इस तरह किसी भी सामरिक शोषण के लिए तैयार नहीं होगाl भारत की वर्तमान आर्थिक और सामरिक स्थिति लगातार अनथक मेहनत और प्रयासों से प्राप्त हुई है और इस में गति लाने के लिए भारत को कूटनीतिक विचार मंथन करके अमेरिका तथा नाटो देशों से एक सुरक्षित दूरी तथा मित्रता रखनी होगी।
संजीव ठाकुर, चिंतक ,लेखक, स्तंभकार
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