दीपावली पर विशेष दीपावली: तमसो मा ज्योतिर्गमय

दीपावली पर विशेष दीपावली: तमसो मा ज्योतिर्गमय

डॉ.दीपकुमार शुक्ल(स्वतन्त्र टिप्पणीकार) दीपावली अर्थात अन्धकार पर प्रकाश की विजय का पर्व, हर्षोल्लास का पर्व तथा प्रेम का सन्देश देने वाला पर्व| यह एक ऐसा पर्व है जो व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों तरह से मनाया जाता है| इसलिए इसे सामाजिक और धार्मिक सौहार्द का पर्व भी कहा जाता है| दीपावली का पर्व मात्र भारत ही

डॉ.दीपकुमार शुक्ल(स्वतन्त्र टिप्पणीकार)

दीपावली अर्थात अन्धकार पर प्रकाश की विजय का पर्व, हर्षोल्लास का पर्व तथा प्रेम का सन्देश देने वाला पर्व| यह एक ऐसा पर्व है जो व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों तरह से मनाया जाता है| इसलिए इसे सामाजिक और धार्मिक सौहार्द का पर्व भी कहा जाता है| दीपावली का पर्व मात्र भारत ही नहीं बल्कि नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैण्ड, मलेशिया, सिंगापुर, इण्डोनेशिया, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, फिजी, मॉरीशस, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिडाड और टोबैगो, नीदरलैण्ड, कनाडा, ब्रिटेन, सयुक्त अरब अमीरात तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में भी हर्षोल्लास से मनाया जाता है| भारतीय मूल के लोगों की तादात विश्व के विभिन्न देशों में जैसे-जैसे बढ़ रही है वैसे-वैसे इस त्योहार का वैश्विक विस्तार हो रहा है| सनातन धर्मावलम्बी दीपावली को विजय पर्व के रूप में मनाते हैं| ऐसी मान्यता है कि रावण का वध करके श्रीराम जब अयोध्या लौटे तो अयोध्यावासियों ने ख़ुशी के उत्साह में घी के दिये जलाकर अमावस्या की काली रात को रोशनी से जगमग कर दिया था|

तभी से कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का त्योहार मनाया जाने लगा| कुछ विद्वानों का मानना है कि द्वापर युग में पाण्डव जब 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास व्यतीत करके लौटे थे तब हस्तिनापुरवासियों ने घी के दिये जलाकर प्रसन्नता व्यक्त की थी और तभी से दीपावली मनायी जाने लगी| वहीँ कुछ विद्वान मानते हैं कि कार्तिक मास की अमावस्या को भगवन विष्णु और लक्ष्मी जी का विवाह हुआ था| उसके बाद लक्ष्मी जी विष्णु जी के साथ बैकुण्ठ आ गयी थीं| इसी ख़ुशी में दीपावली का त्योहार होता है| इस दिन जो लोग लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं, वह पूरे वर्ष मानसिक तथा शारीरिक दुखों से दूर रहते हैं| उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में लक्ष्मी की जगह काली जी की पूजा की जाती है| वहाँ के लोग इसे काली पूजा का त्योहार कहते हैं| कुछ विद्वानों का मत है कि समुद्र मन्थन से इस दिन लक्ष्मी जी एवं आयुर्वेद के प्रणेता धन्वन्तरि जी का प्राकट्य हुआ था| वहीं कुछ विद्वान इस दिन को भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार और हिरण्यकश्यप के वध से भी जोड़ते हैं| श्रीकृष्ण के भक्तों का मानना है कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था| जिसकी प्रसन्नता में ही अगले दिन अर्थात अमावस्या को लोगों न घी के दिये जलाये थे|

अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास सन 1577 में दीपावली के ही दिन हुआ था तथा सिक्खों के छठवें गुरु हरगोविन्द सिंह जी को सन 1619 में दीपावली के दिन जेल से छोड़ा गया था| इन दोनों ही कारणों से सिक्ख धर्म के अनुयायियों के लिए दीपावली का महत्व कई गुना अधिक बड़ा है| जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी को दीपावली के दिन मोक्ष प्राप्त हुआ था तथा उनके शिष्य गौतम गणधर को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी| अतएव जैन धर्म के मानने वालों के भी लिए दीपावली विशेष महत्व रखती है| नेपाल में दीपावली को तिहार तथा यमपञ्चक कहा जाता है| पांच दिन तक चलने वाला नेपाली हिन्दुओं का यह सबसे बड़ा पर्व है| ऐसी मान्यता है कि त्रयोदशी को यमराज अपनी बहन यमुना के घर अतिथि बनकर आये थे और पांचवें दिन अर्थात शुक्ल पक्ष की द्वितीया को वापस गये थे| नेपाल में पहले दिन अर्थात त्रयोदशी को ‘काग-तिहार’ होता है| जिसमें कौए को यमराज का दूत मानकर भोजन दिया जाता है| दूसरा दिन ‘कुकुर तिहार’ का होता है| कुत्तों को भी यमराज का दूत तथा स्वामिभक्त मानते हुए उनकी पूजा की जाती है और उन्हें उनका मन पसन्द भोजन दिया जाता है| तीसरे दिन अर्थात अमावस्या को ‘गाई तिहार’ होता है| इस दिन गाय और लक्ष्मी जी की पूजा होती है और रात्रि में दीपों की कतारें सजाकर घर-आँगन को रोशन किया जाता है| इस दिन महिलाओं, विशेषकर कुवांरी लड़कियों के घर-घर जाकर गेंद खेलने की भी प्रथा है|

चौथा दिन ‘गोरु तिहार’ या ‘हल तिहार’ या ‘गोवर्धन पूजा’ का होता है| इस दिन नेपाल के लोग बैलों को अन्न उगाने में सहायक मानते हुए उनकी पूजा करते हैं| पांचवें दिन ‘भाई तिहार’ को बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर उन्हें भोजन कराती हैं और भाइयों द्वारा बहनों को उपहार दिया जाता है| आस्ट्रेलिया के मेलबर्न में भारतीयों के संगठन सेलिब्रेट इण्डिया इंकॉर्पोरेशन ने वर्ष 2006 में फेडरेशन स्क्वायर पर दीपावली समारोह मनाना शुरू किया था| अब यह मेलबर्न का एक प्रमुख समारोह बन गया है| जिसमें न केवल भारतीय बल्कि स्थानीय निवासी भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं| संयुक्त राज्य अमेरिका में भी दीपावली का त्योहार एक बड़े समारोह के रूप में मनाया जाता है| वर्ष 2003 में सबसे पहले व्हाइट हाउस में दीपावली का जश्न मनाया गया था| उसके बाद सन 2007 में अमेरिकी कांग्रेस द्वारा इस कार्यक्रम को आधिकारिक दर्जा दे दिया गया| बराक ओबामा 2009 में व्हाइट हॉउस के दीपावली समारोह में व्यक्तिगत रूप से भाग लेने वाले पहले राष्ट्रपति बने| अमेरिका में तीन लाख से भी अधिक हिन्दू रहते हैं और दीपावली सहित सभी त्योहार पूरी सिद्दत से मनाते हैं| ब्रिटेन के नीसडेन में स्थित स्वामीनारायण मन्दिर में प्रतिवर्ष बड़े पैमाने पर दीपावली समारोह होता है|

प्रिंस चार्ल्स अपनी पत्नी के साथ लगभग हर साल इस समारोह में शामिल होते हैं| वर्ष 2013 में प्रधानमन्त्री डेविड कैमरान भी अपनी पत्नी के साथ इस समारोह में शामिल होने पहुँचे थे| जबकि ब्रिटेन प्रधानमन्त्री के निवास पर वर्ष 2009 से प्रतिवर्ष अनवरत रूप से दीवाली का त्योहार मनाया जा रहा है| जिसे तत्कालीन प्रधानमन्त्री गार्डन ब्राउन द्वारा शुरू करवाया गया था| इस तरह से दीपावली को हम अन्तर्राष्ट्रीय पर्व की संज्ञा दे सकते हैं| इसके माध्यम से दुनिया के दूसरे देश न केवल भारतीय संस्कृति को समझने का प्रयास कर रहे हैं बल्कि यहाँ के त्योहारों के सामाजिक और वैज्ञानिक निहितार्थ भी तलाश रहे हैं| त्योहार कोई भी हो हर एक का अपना एक विशेष मकसद होता है| हर त्योहार कोई न कोई सन्देश देता है| दीपावली में भी अनेक सन्देश छुपे हुए हैं| यह अन्धकार पर प्रकाश की, असत्य पर सत्य की, अज्ञान पर ज्ञान की विजय का सन्देश तो देता ही है| साथ ही स्वच्छता के सबसे बड़े सन्देश वाहक के रूप में भी प्रतिष्ठित है| स्वच्छता से स्वास्थ्य है और स्वास्थ्य से ही समृद्धि के द्वार खुलते हैं| क्योंकि स्वास्थ्य के अभाव में परिश्रम नहीं हो सकता और परिश्रम के बिना में विकास की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती| ऐसी अनेक अवधारणाओं के साथ प्रतिवर्ष दीपावली का त्योहार मनाया जाता है|

परन्तु इस वर्ष की दीवाली को लेकर आमजन में वह उत्साह नहीं हैं, जो होना चाहिए| उसका कारण भी है कि बीते लगभग 8 महीने से कोरोना महामारी के कारण उपजे संकट को झेल रहा आम आदमी बद से बदतर स्थिति में पहुँच गया है| आज जब लोगों के सामने दो वक्त की रोटी का संकट है तब वह दीवाली जैसा खर्चीला त्योहार भला धूमधाम से कैसे मना पायेंगे| कुछ ही परिवार ऐसे होंगे जहाँ दीपावली पूरी सिद्दत से मनेगी| बांकी लोग तो सिर्फ औपचारिकता ही निभाने का प्रयास करेंगे और कुछ तो औपचारिकता निभाने में भी सक्षम नहीं होंगे| गाँव, शहर और कस्बों के अनेक मकान जहाँ बिजली की झालरों से जगमगायेंगे वहीँ अनेक घरों में हो सकता है कि शाम को चूल्हा भी न जले| तब फिर भला ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ की उक्ति पूर्ण रूप से कैसे चरितार्थ होगी| उस समय तो यशशेष नीरज जी की वह पंक्तियाँ ही सहज में याद आयेंगी कि “सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में, कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी, मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी, चलेगा सदा नाश का खेल यों ही, भले ही दिवाली यहाँ रोज आये| जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना, अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाये||”  

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