घर-घर मोदी ,लेकिन घर-घर राशन नहीं

घर-घर मोदी ,लेकिन घर-घर राशन नहीं

आज मै बात करना चाहता था भारत में वृक्षारोपण की,लेकिन इसे मुल्तबी कर मुझे बात करना पड़ रही है देश की राजधानी दिल्ली में आप सरकार द्वारा शुरू की जाने वाली एक ऐसी योजना की जिसके तहत घर-घर राशन मुहैया कराया जाना है .केंद्र सरकार ने इस योजना पर ब्रेक लगा दिया है. पहले ये

आज मै बात करना चाहता था भारत में वृक्षारोपण की,लेकिन इसे मुल्तबी कर मुझे बात करना पड़ रही है देश की राजधानी दिल्ली में आप सरकार द्वारा शुरू की जाने वाली एक ऐसी योजना की जिसके तहत घर-घर राशन मुहैया कराया जाना है .केंद्र सरकार ने इस योजना पर ब्रेक लगा दिया है. पहले ये योजना इसलिए रोकी गयी थी क्योंकि इसका आगे मुख्यमंत्री शब्द जिंदा था ,लेकिन इसे अब ये कहकर रोका जा रहा है कि इस योजना के लिए केंद्र से मंजूरी नहीं ली गयी.

अगर आपकी याददास्त मेरी जैसी ही मजबूत है तो आपको याद होगा कि इस देश में पिछले आम चुनाव के वक्त काशी में एक नारा दिया गया था-‘घर-घर मोदी ‘ का .हर-हर महादेव की पैरोडी जैसा था ये नारा .इस नारे की बदौलत मोदी जी घर-घर पहुंचे या नहीं लेकिन काशी से चुनकर संसद जरूर पहुंचे .इस नारे पर रोक नहीं लगाईं गयी,इसके लिए किसी की इजाजत की भी जरूरत भी नहीं थी लेकिन दिल्ली में घर-घर राशन पहुंचने के लिए इजाजत भी चाहिए और योजना को लागू भी नहीं होने देना चाहिए ,क्योंकि इस योजना के जरिये दिल्ली का मुख्यमंत्री नहीं तो कम से कम ‘आप’तो घर-घर पहुँचने का खतरा तो है ही
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भारत में इस समय विकट हालात हैं. मौत की गस्त गली-गली में है ऐसे में गरीब आदमी को राहत पहुँचना एक जरूरत भी है और मजबूरी भी ,लेकिन राजनीति को ये सब समझ में नहीं आता .कम से केंद्र की सरकार को तो बिलकुल नहीं आता,भले ही केंद्र सरकार सबका साथ-सबका विकास ‘का नारा देती हो.दिल्ली सरकार ने राजधानी के 72 लाख राशन कार्डधारकों के घर तक राशन पहुंचाने की योजना बनाई थी।

दिल्ली में पहले 12 अप्रैल से इस योजना का ट्रायल शुरू होने वाला था, लेकिन कोरोना के केसों में वृद्धि और फिर लॉकडाउन के कारण इस रोक दिया गया था।एक सप्ताह बाद यह योजना फिर से लागू होनी थी और इसको लेकर सारी तैयारियां कर ली गई थीं। योजना की शुरुआत से ऐन पहले केंद्र द्वारा इस पर रोक लगा दी गई है। यह दूसरी बार है जब घर-घर राशन योजना पर रोक लगाई गई है।

आपको स्मरण करा दूँ कि केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार के खाद्य आपूर्ति सचिव को चिट्ठी लिखकर कहा था कि इस योजना को शुरू न करें, जबकि केजरीवाल सरकार इस योजना के लिए टेंडर भी जारी कर चुकी थी और 25 मार्च से इसे शुरू किया जाना था। केंद्र के इस कदम के बाद ‘आप’ ने पूछा था कि मोदी सरकार राशन माफिया को खत्म करने के खिलाफ क्यों है ? .केंद्र ने आप के सवाल का जबाब नहीं दिया,क्योंकि कोई जबाब था ही नहीं .रोक के पीछे केवल और केवल राजनीति थी ,सो सबके सामने आ गयी
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केंद्र द्वारा नाम पर ऐतराज जताए जाने के बाद दिल्ली सरकार ने राशन की डोर स्टेप डिलीवरी योजना को बिना नाम शुरू करने का निर्णय लिया था। केंद्र सरकार द्वारा “मुख्यमंत्री घर घर राशन योजना” पर पहले इसके नाम के कारण रोक लगा दी गई थी। केंद्र के इस ऐतराज के बाद योजना का नाम हटा दिया था।मजे की बात ये है कि केंद्र में बैठी सरकार कोरोना के टीके लगवाने के बदले दिए जाने वाले प्रमाणपत्रों तक पर प्रधानमंत्री जी को बैठकर घर-घर पहुँचाने में लगी है ,लेकिन राशन के जरिये किसी और का घर-घर पहुंचना उसे बर्दास्त नहीं .

देश का दुर्भाग्य ये है कि लोकोन्मुखी सरकारें लोक की कम अपनी चिंता ज्यादा करती हैं .योजनाएं नेताओं के प्रचार का जरिया आज से नहीं आजादी के बाद से ही बना हुआ है. केंद्र में गठबंधन की पहली सरकार आने के पहले तक इस देश में ज्यादातर योजनों पर नेहरू,गांधी और महात्मा गांधी हावी थे और आज उनकी जगह दुसरे लोगों के नाम है

नेताओं के नाम से योजनाएं शुरू करने से हितग्राहीयों का क्या फायदा होता है ये तो शोध का विषय है लेकिन नेता इन योजनाओं से जरूर लाभान्वित होते हैं. यदि नेता दिवंगत है तो उसे अमर बनाये रखा जाता है और यदि जीवित है तो उसे अवतार बनाने की कोशिश की जाती है .मेरे मन में अक्सर ख्याल आता है कि ये योजनाएं शासन के नाम से और शासकीय चिन्हों के जरिये क्या कारगर साबित नहीं हो सकतीं ?स्कूली बच्चों के बस्तों से लेकर खाद-बीज और तमाम प्रमाणपत्रों पर नेताओं की खिलखिलाती हुई

तस्वीरें देखकर लगता है जैसे ये सब जनता की लाचारी पर हंस रहे हैं .हमारे यहां तो कोविडकाल में काढ़े के पैकेटों तक पर नेताओं की तस्वीरें विराजमान थी .अभी तक का अनुभव है कि किसी भी नेता ने अपने खून-पसीने की कमाई से अपने नाम की कोई योजना नहीं चलाई.सबकी सब सरकारी खजाने पर आश्रित योजनाएं होती है .मैंने पिछले दिनों विधायक-सांसद निधि से खरीदे गए टेंकरों पर नेताओं की फोटो लगाने का मामला उठाया था .

बहरहाल जब लोकतंत्र में लोक के बजाय राजनीति सबकी प्राथमिकता हो तो योजनाओं के साथ नेताओं का नाम बाबस्ता किये जाने पर रोक लग ही नहीं सकती.न आज,न कल .ये संक्रामक बीमारी है. किसी भी दल को इस बीमारी ने नहीं छोड़ा.कोई अपवाद हो तो मेरे संज्ञान में अवश्य लाएं ताकि उसकी नजीर दी जा सके .जैसा कि आपको पता है कि मै न किसी नेता का भक्त हों और न किसी राजनितिक दल का ‘मिस्डकॉड’ सदस्य ,इसलिए आप सरकार की योजना को लेकर लिखना आप का समर्थन करना नहीं है. आप की तारीफ़ सिर्फ इसलिए करना चाहता हूँ कि उसने केंद्र की आपत्ति के बाद इस योजना से मुख्यमंत्री शब्द विलोपित कर दिया था ,लेकिन दुर्भाग्य ये है कि इसके बावजूद घर-घर राशन योजना साकार नहीं हो सकी .

मेरा तजुर्बा है कि फोटो छपवाने की जैसी बीमारी भारत के नेताओं को है वैसी किसी और देश के नेताओं को नहीं है.तानाशाही या उससे मिलते जुलते शासन प्रबंधों वाले देशों में ये चलन हो सकता है.फोटो फोबिया के कारण लोकोपयोगी योजनाओं का न तो ढंग से अमल हो पाता है और न वे नैरंतरा को प्राप्त होती हैं.निजाम बदलते ही योजनाएं बदल जातीं हैं.या उन्हें बंद कर दिया जाता है.

मनरेगा जैसी योजनाएं इसका अपवाद हैं क्योंकि इनके साथ किसी राजनितिक दल के नेता का नाम बाबस्ता नहीं .आपने गौर किया होगा कि देश में अधिकाँश योजनाएं केवल सत्तारूढ़ दल के नेताओं के नाम से होती हैं ,विपक्ष के नेता के नाम से नहीं. समाजसेवी,साहित्यकार,वैज्ञानिक यहाँ तक कि राष्ट्रपति या प्रधानन्यायाधीश के नाम से भी कोई योजना नहीं बनाई जाती .इन लोगों को पूछता कौन है ?इनके हक में फैसला करने वाले आखिर सत्ता में तो नहीं होते !.बेहतर हो कि नेताओं के फोटो योजनाओं के साथ जोड़ने की इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए या तो क़ानून बने या अदालत इसे हतोत्साहित करे .देश नेताओं की तस्वीरों के बिना भी विषगुरू हो सकता है भाई साहब .
@ राकेश अचल

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