सुरेंद्र पाल ने की बेटी के नाम 60 पर्सेंट प्रॉपर्टी बोले मैं हिंदुस्तान में हर पिता की सोच को बदलना चाहता हूं

सुरेंद्र पाल ने की बेटी के नाम 60 पर्सेंट प्रॉपर्टी बोले मैं हिंदुस्तान में हर पिता की सोच को बदलना चाहता हूं

सुरेंद्र पाल ने की बेटी के नाम 60 पर्सेंट प्रॉपर्टी बोले मैं हिंदुस्तान में हर पिता की सोच को बदलना चाहता हूं


स्वतंत्र प्रभात 


लेखक पुनीत कुमार

आज से प्रसारित होने जा रहा धारावाहिक 'मेरी डोली मेरे अंगना' ग्रामीण पृष्ठभूमि पर रची गई ऐसी कहानी है, जिसमें सुरेंद्र पाल पिता की भूमिका निभा रहे हैं। वो बेटी से बेहद प्यार करता है। बेटी उसकी आंखों का तारा है। यह एक मासूम बेटी के अनुभवी बहू बनने के सफर की कहानी है, जहां परिस्थितवश रिश्ते बदल जाते हैं। खैर, यहां असल जिंदगी में सुरेंद्र पाल बेटी को अहम मानते हैं। उन्होंने साल 2020 में ही अपनी बेटी के नाम कुल प्रॉपर्टी का 60 पर्सेंट हिस्सा उसके नाम कर दिया है, जबकि दोनों बेटों को 40 पर्सेंट प्रॉपर्टी दी है। ऐसा करने के बारे में सुरेंद्र बताते हैं, "मैं अपनी जिंदगी में बेटी को बहुत ज्यादा अहम मानता हूं। मेरी कुल संपत्ति में बेटी के नाम 60 पर्सेंट और दोनों बेटों के नाम पर 20-20 पर्सेंट किया है।

असल जिंदगी में सुरेंद्र पाल बेटी को मानते हैं बहुत अहम


 लोगों ने मुझसे कहा कि आप बड़े मूर्ख हैं। आप से बड़ा मूर्ख नहीं देखा। मैंने पूछा- क्यों? तब कहने लगे- बेटी को 60 पर्सेंट प्रॉपर्टी दे दिया। शादी होने के बाद वो दूसरे घर चली जाएगी। वहां पर ससुराल वाले उसे लात मार कर भगा देंगे और सारा का सारा धन ले लेंगे। इस तरह बेटी को कंगाल कर देंगे। मैंने उनसे यही पूछा कि अगर बेटे उससे बिजनेस करें और फ्लॉप हो जाए, तब आप किसको गाली देंगे। बेटी को आपने बड़ी आसानी से कह दिया, पर बेटे को क्यों नहीं कहते। भाग्य में लिखा कोई मिटा नहीं सकता, जो जिसके भाग्य में लिखा है, वो उसका ही है। इसके जवाब में सुरेंद्र ने बताया, "मुझे यह प्रेरणा तब से मिली, जब मेरा बेटा पैदा हुआ था। मैंने उस समय ईश्वर से प्रार्थना किया था कि एक बेटा हो गया है, अब एक बेटी दे दो। ईश्वर ने मेरी सुन ली और मुझे बेटी दे दी। फिर मैंने बेटी को पिता बनकर नहीं पाला, बल्कि उसकी सेवा की। मेरा मानना है कि पालने वाला मैं कौन होता हूं। जिस तरह भगवान की मूर्ति लाकर लोग उसकी सेवा करते हैं।

आपको ऐसा करने की प्रेरणा कहां से मिली


 उसी तरह मेरे घर में बेटी का स्थान है। मैंने आज तक न तो कभी बेटी के ऊपर हाथ उठाया और न ही उससे ऊंची आवाज में बात की है। हर चीज में मैंने उसकी ही बात मानी है। आप सोच रहे होंगे कि इससे तो बच्चे बर्बाद हो जाते हैं, इस बारे में मैं कहूंगा कि मां-बाप के अच्छे संस्कार ही बच्चों में पनपते हैं। ऐसे बच्चे कभी बिगड़े नहीं हैं, ऐसा मेरा मानना है।" उन्होंने आगे कहा, "मैंने बेटी के नाम 60 पर्सेंट प्रॉपर्टी इसलिए की, क्योंकि हिंदुस्तान में मैं हर पिता की सोच को बदलना चाहता हूं। बेटी के लिए कुछ नया सोचो। बेटों के पीछे भागना और बेटी को इग्नोर करना नहीं है।

 आज की बेटी ऑफिसर, चीफ मिनिस्टर, डॉक्टर और इंजीनियर बनकर इतनी बड़ी पोस्ट को हैंडिल करती है। आप बेटियों को क्यों दबा रहे हैं। बेटी हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है, इस पहल की कोई तो शुरुआत करो। उसको दबाओ मत। आज सरकार तक कहती है कि प्रॉपर्टी में बेटी का बराबर का हक है। सरकार जब सोच को बदल सकती है, तब हम मां-बाप अपनी सोच को क्यों नहीं बदलते। क्यों नहीं हम एक नई सोच के साथ एक नया समाज बनाते हैं। हमें बेटी की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। मैं इस चीज के सख्त खिलाफ हूं।"सुरेंद्र ने इस पर बताया, "मैंने बच्चों को अच्छे संस्कार दिए हैं। इस तरह के विचार उनमें आ ही नहीं सकते। मैंने बच्चों को अर्जुन जैसी शिक्षा दी है, तब वो दुर्योधन जैसी भाषा में बात क्यों करेंगे


सुरेंद्र पाल ने की अपने दो सपने पूरे होने पर बात


सुरेंद्र पाल ने अपने जीवन के दो सपने पूरे होने के बारे में दिलीप कुमार को याद करते हुए बताया, "दिलीप साहब धारावाहिक 'शगुन' को बहुत पसंद करते थे। दिलीप साहब ने बताया कि वे 'शगुन' को रोजाना देखते थे। इस शो में मैं काम करता था, तब एक बार उन्होंने मिलने के लिए मुझे अपने घर बुलाया। लोग दिलीप कुमार से मिलने के लिए जाते थे, लेकिन दिलीप साहब ने मुझे मिलने के लिए अपने घर बुलाया, यह कुछ उल्टी गंगा बही थी। 

क्या उनके इस निर्णय पर बेटों ने ऐतराज नहीं किया बेटों का रिएक्शन क्या रहा


उनके साथ बैठकर जब मैंने चाय पी, तब वो मेरे जीवन का सबसे यादगार समय था। मुझे आज भी लगता है कि वो मेरे लिए एक सपना था, जो मेरे जीवन में हकीकत हुआ। वाकई मुझे बहुत खुशी हुई। मेरा दूसरा सपना तब पूरा हुआ, जब मैंने अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म 'खुदा गवाह' में काम किया था। इसकी ढेर सारी शूटिंग काबुल, अफगानिस्तान में हुई थी। खैर, इस तरह मेरे जीवन को दो सपने पूरे हुए थे।"

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