मात्र संवाद नहीं अपितु देश को एक सांस्कृतिक सूत्र में पिरोने का माध्यम है

मात्र संवाद नहीं अपितु देश को एक सांस्कृतिक सूत्र में पिरोने का माध्यम है

गीता पब्लिक स्कूल, गीड में हिंदी दिवस पर स्वभाषा स्वाभिमान अभियान के तहत कार्यक्रम आयोजित  


स्वतंत्र प्रभात 




करनाल।  किसी भी भाषा के साथ राष्ट्रों की परंपराएं भी जुड़ी होती हैं। हमारी मातृभाषा हिंदी के साथ हमारी संस्कृति, इतिहास और जीवनचर्या गुंथी हुई है। मां, मातृभूमि और मातृभाषा का स्थान कोई नहीं ले सकता। यह टिप्पणी हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ वीरेंद्र सिंह चौहान ने गीड  स्थित गीता पब्लिक स्कूल हिंदी दिवस के अवसर पर स्वभाषा स्वाभिमान अभियान के अंतर्गत आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए की।



उन्होंने कहा कि  मातृभाषा हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है। अंग्रेजी में कई खामियां हैं जो उसे अवैज्ञानिक भाषा बनाती हैं। 14 सितंबर 1949 को जब संविधान सभा ने हिंदी को भारत की राजभाषा बनाने का फैसला किया, उस समय भी हिंदी को राष्ट्रभाषा या राजभाषा बनाने पर खूब बहस हुई थी। हम हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिला पाए। हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी को भी द्वितीय राजभाषा के तौर पर मान्यता देने के पीछे का षड्यंत्र हम तब समझ नहीं पाए। यह हमारी भारी भूल थी।



डॉ. चौहान ने कहा कि अंग्रेजी आज भी भारतीय व्यवस्था के एक बड़े हिस्से पर हावी है, लेकिन संतोष की बात है कि हम धीरे-धीरे हिंदी को उसका उचित स्थान दिलाने की दिशा में अग्रसर हैं। भाषा सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं होती, बल्कि यह संस्कृति, इतिहास और उससे जुड़ी महान विभूतियों से भी परिचय करवाती और समाज को एकता के सूत्र में पिरोती है।



उन्होंने बताया कि वर्ष 1946 से लेकर 1949 के बीच जब संविधान सभा भारतीय संविधान का निर्माण कर रही थी तो उस दौरान भारतीय संघ के कामकाज की भाषा तय करने पर भी मंथन चल रहा था। उस दौरान ऐसे भी लोग थे जिन्होंने मिली जुली व्यवस्थाओं वाली खिचड़ी भाषा को राजभाषा बनाने की वकालत की थी। उन्हें वहम था कि अंग्रेजी के बिना देश में काम चल ही नहीं सकता। वे अंग्रेज को भेजने के लिए तो तैयार थे, लेकिन अंग्रेजी को भेजने के लिए नहीं। उन्होंने अंग्रेजी को ही राजभाषा बनाने की पुरजोर वकालत की थी। उस वक्त संविधान सभा में मौजूद देशभक्तों ने कहा कि अंग्रेजी को रखने से अंग्रेजों से आजादी अधूरी रहेगी।



विद्यालय के शिक्षक सरदार बलविंदर सिंह ने अपने कुशल संचालन से कार्यक्रम को अंत तक सारगर्भित बनाए रखा । शिक्षिका शिल्पा ने हिंदी में अभिव्यक्ति को अधिक कारगर और गुणवत्ता परक बनाने को लेकर अपनी प्रस्तुति दी ।  कृष, तेजेंदर, हिमांशु, रिजुल आदि विद्यार्थियों ने भी हिंदी भाषा के सन्दर्भ में अपने विचार सबके साथ साझा किए।



विद्यालय के प्रधानाचार्य राजन्द्र गौड़ ने इस प्रकार के आयोजन के लिए हरियाणा ग्रन्थ अकादमी को साधुवाद दिया और कहा कि इस प्रकार के आयोजन निरंतर होते रहने चाहियें । इस प्रकार के कार्यक्रमों से विद्यार्थियों में ज्ञान और आत्मविश्वास का संचार होता है । कार्यक्रम के अंत में अपने उद्बोधन में उन्होंने ने कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए विद्यार्थियों और शिक्षकों के प्रति आभार प्रकट किया । इस अवसर पर देशराज, संजय, प्रवीण, रोशनलाल, रणबीर सिंह, सीमा, सोनिया, प्रियंका, सुषमा और काजल आदि उपस्थित रहे ।

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