आँखों में रोशनी झोंकने की कोशिश

आँखों में रोशनी झोंकने की कोशिश

ऐतिहासिक शहर ग्वालियर का है. मुमकिन है कि आपके शहर का भी हो.


 स्वतंत्र प्रभात 
 

ऐतिहासिक शहर ग्वालियर का है. मुमकिन है कि आपके शहर का भी हो.


कमियां छिपाने के लिए आँखों में धूल झौंकने की कहावत अब पुरानी पड़ गयी है. अब इसकी जगह आपकी आँखों में रोशनी झौंकने की कोशिश की जाने लगी है,ताकि आप रंगारंग रोशनी की जगमग से चौंधिया जाएँ और आपको कोई भी कमी नजर न आये. दरअसल इस कोशिश को ही आजकल स्मार्टनेस कहता हैं. देश के २०० से ज्यादा शहरों को स्मार्ट बनाने के लिए ये कोशिश बहुत काम आ रही है .

ऐतिहासिक ग्वालियर शहर आजकल बदहाल है लेकिन स्मार्ट सिटी ने शहर के टाउनहाल को मरने से बचा लिया है .शहर की सड़कें उखड़ी पड़ी हैं,बागीचे वीरान हैं यातायात बदहाल है नगर   बस सेवा सुचारु रूप से चल नहीं पा रही है लेकिन पूरा शहर जगमग है .इस जगमग के पीछे कोशिश यही है कि आप अपने ऐतिहासिक शहर की बदहाली को दिन में न सही किन्तु रात को तो भूल ही जाएँ .शहर को स्मार्ट बनाने के लिए स्मार्ट सिटी परियोजना से जुड़े लोग जो कुछ कर सकते हैं,कर रहे हैं हैं,लेकिन शहर है कि स्मार्ट होने को राजी ही नहीं है.


स्मार्ट सिटी परियोजना के काबिल अफसरों ने ग्वालियर के ऐतिहासिक दुर्ग से लेकर महाराज बाड़ा की तमाम इमारतों ,जलाशयों और सड़कों पर लगे बिजली के खम्भों को सतरंगी रोशनी से नहला दिया है .दिन भर धूल उगलती सड़कों वाले इस शहर में रहने वाले लोगों के लिए शाम ढलते ही इस सतरंगी रौशनी में नहाने का पुण्य हासिल करने में स्मार्ट सिटी परियोजना पूरी तरह कामयाब हुई है.

नाकामी केवल जनता के हिस्से में है ,क्योंकि जनता ही स्मार्ट नहीं होना चाहती .शहर को जगमग करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञों ने दिमाग लगाकर पुराने दुर्ग और महाराज बाड़ा की इमारतों पर ऐसी बिजली की सजावट की है कि पूरा शहर नगरवधु सा दिखाई देता है.नगरवधु का श्रृंगार दिखावटी होता है क्योंकि अंदर से तो वो एकदम खोखली होती है.यही हाल हमारे ऐतिहासिक शहर ग्वालियर का है. मुमकिन है कि आपके शहर का भी हो.


भारत के नौकरशाह अगर ठान लेते हैं तो कर के मानते हैं ,भले ही नौकरशाह स्त्री हो या पुरुष .भक्काटेदार रोशनी का रात के समय जर्जर इमारतों पर और उसके आसपास के पर्यावरण पर क्या असर पड़ता है ? इसे जानने में स्मार्ट सिटी परियोजना के कर्ताधर्ताओं की कोई रूचि नहीं .इस रोशनी से नभचरों को कितनी तकलीफ होती है ये जानने की कोई जरूरत नहीं समझी जाती,क्योंकि बेचारे पक्षी तो अखबारबाजी करने से रहे. शाम ढले अपने घोंसलों में सोने वाले विहंग इस सतरंगी रौशनी से बचने के लिए अपनी आँखों पर पट्टी भी नहीं बाँध सकते .नींद की गोलियां नहीं खा सकते .


ग्वालियर शहर जैसी सतरंगी रौशनी मैंने बहुत पहले दुबई में और फिर बाद में शंघाई में देखी थी ,लेकिन ये शहर धूल नहीं उड़ाते.इन शहरों की सड़कें उखड़ी नहीं पड़ीं हैं.यहां के जलाशयों में सड़े पानी में नौकायन नहीं कराया जाता .हाँ शंघाई का यातायात जरूर अत्यधिक वाहनों की वजह से ग्वालियर के यातायात की तरह अक्सर रेंगता नजर आता है ,लेकिन उन शहरों के चौराहों पर लगे यातायात संकेतक न तो मनमाने ढंग से बंद होते हैं और न चलते हैं. वहां शहर में बने यात्री प्रतीक्षालयों पर बसें आकर रुकती हैं ,यहां आप अनंत प्रतीक्षा करते रहिये कोई बस आएगी ही नहीं,क्योंकि बसें हों तो सही.

बिजली संकट से जूझ रहे शहर  की आँखों में रोशनी झौंकने के लिए बिजली और बिजली के लिए पैसे कहाँ से आते हैं ,ये स्मार्ट सिटी वाले ही जानते हैं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण वाले आम जनता को तो अपने किले पर कील तक नहीं ठोंकने देते किन्तु स्मार्ट सिटी वालों को उसने पूरे किले को रोशनी में नहलाने की इजाजत दे दी.काश स्मार्ट सिटी ये नौटंकी करने के लिए नगर निगम की लंबित ' रोप वे ' परियोजना को हाथ में ले पाता.स्मार्ट सिटी ने नगर निगम का टाउनहाल तो

 हथिया लिया .आप इस टाउन हाल के मंच पर अपना बैनर तक नहीं लगा सकते क्योंकि ऐसा स्मार्ट सिटी का नियम है ,लेकिन स्मार्ट सिटी आपके किले पर,पेड़ पौधों पर बिजली के खम्भों पार बैजाताल पर यानि जहां चाहे वहां बिजली की लाइनें बिछा सकती है .रोप वे नहीं बना सकती जबकि रूप वे की शहर को सख्त जरूरत है .रोप वे बनवाने के लिए न गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी कुछ कर पायी और न नगर निगम ,फिर स्मार्ट सिटी परियोजना प्रशासन को क्या पड़ी ?

स्मार्ट सिटी सर्वशक्तिमान है. स्मार्ट सिटी प्रशासन को शहर के लोकपथों की फ़िक्र नहीं है ,उसे तो राजपथ   बनाने में दिलचस्पी है स्मार्टनेस के लिए उसे राजपथ से जुड़ने वाली इमारतें ही नजर आती हैं .दुर्भाग्य देखिये कि एक तरफ स्मार्ट सिटी प्रशासन शहर का ' मेकअप ' करने में लगा है दूसरी तरफ शहर को बदसूरत बनाने में यहां के जनप्रतिनिधि और उनकी भक्तमंडलियाँ जी-जान से लगी हैं. जन्मतिथि हो,पुण्य तिथि हो,आगमन हो या प्रस्थान हो सभी अवसरों पर बड़े-बड़े होर्डिंग और बैनर लगाने को होड़ पर नियंत्रण के लिए राजभक्त स्मार्ट सिटी और नगर निगम के पास कोई नियम-क़ानून नहीं है. हमारा रेसकोर्स रोड हो या जयविलास पैलेस का कोई भी दरवाजा हर समय इन होर्डिंग और बैनरों से अटा रहता है .पर्यटकों की समझ में नहीं आता कि ये सब किसलिए होता है ,और कौन करता है ?

ग्वालियर शहर की जनता अपनी आँखों में धूल के साथ ही रोशनी झौंके जाने से खुश है या नहीं ये कहना कठिन है ,क्योंकि यहां की न जनता बोलती है और न जन प्रतिनिधि . शहर को किसी भी तरह से स्मार्ट बनाने के मामले में सब एक-दूसरे से मुकाबले में हैं. यदि पंजे वाले पचास होर्डिंग लगाकर शहर को बिगड़ना चाहते हैं तो कमल वाले सौ होर्डिंग लगाकर शहर को सजाना चाहते हैं .उन्हें यातायात सिग्नल तक ढंकने में कोई हिचक नहीं है. विदेश में एक दमकल का वाटर प्वाइंट ढंकने पर जुर्माना हो जाता है लेकिन हमारे यहां आप पूरे शहर को ढक   दीजिये कोई कुछ कहने वाला नहीं .यहां सभी को ,सभी कुछ करने की छूट है ,क्योंकि शहर है ही राम भरोसे 


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देश का शायद ही कोई ऐसा किस्मत वाला शहर होगा जो ग्वालियर जैसा बदहाल हो,जहाँ ऐसी अराजकता हो ,स्मार्ट सिटी वाले बेचारे शहर को स्मार्ट बनाने के लिए प्राणपण से लगे हैं किन्तु यहां की जनता है कि खुश होने का नाम ही नहीं लेती.हमेशा टसुए बहाती रहती है .अरे उखड़ी सड़कों से धूल उड़ती है तो मास्क लगा लीजिये,नयी सड़कें बनाने की मांग क्यों ? राजपथ बन तो रहा है .दिल्ली को छोड़ और कहीं राजपथ है भला ?हमें आभारी होना चाहिए स्मार्ट सिटी का ,लेकिन हम हैं कि बस कोसते ही रहते हैं स्मार्ट सिटी को .

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