जिला अस्पताल के वार्ड फुल, बेड के लिए हलाकान मरीज

जबरदस्त गर्मी में एकबारगी बढ़ गई डायरिया पीड़ितों की संख्या

जिला अस्पताल के वार्ड फुल, बेड के लिए हलाकान मरीज

खांसी, जुकाम, बुखार के मरीजों की भी लग रही है लंबी लाइन


- जिला अस्पताल के वार्ड, ट्रामा सेंटर में फुल नजर आ रहे हैं बेड
- सुबह अस्पताल खुलते ही लग रही है मरीजों की लंबी कतार

बांदा। तापमापी पारे की सुई 43 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गई है। गर्मी बढ़ने के साथ ही शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में डायरिया के साथ ही अन्य मौसमी बीमारियों ने लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है। जिला अस्पताल हो या फिर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, यहां तक कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी मरीजों की लंबी लाइन लग रही है। जिला अस्पताल का आलम यह है कि यहां पर सभी बेड फुल नजर आ रहे हैं। अस्पताल परिसर में संचालित ट्रामा सेंटर और सभी वार्डों मे के बेड फुल होने के कारण नए आने वाले मरीजों को भर्ती होने के बाद बेड ढूंढने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इसके चलते मरीजों को गद्दीदार बेंच, कुर्सियों और स्ट्रेचर में लिटाकर चिकित्सक उपचार करने को मजबूर हो रहे हैं। हालांकि जिला अस्पताल के पास अन्य वार्ड भी हैं, लेकिन अफसोस की बात यह है कि वहां पर संसाधन कम होने की वजह से मरीजों को भर्ती नहीं किया जा सकता।

बुधवार की सुबह अस्पताल खुलते ही मरीजों की लंबी लाइन लग गई। पर्चा काउंटर से पर्चा बनवाने के बाद मरीज चिकित्सकों के चेंबर पर पहुंचे। वहां पर कुछ चिकित्सक देरी से कुर्सी पर बैठे, इसकी वजह से मरीजों को काफी देर तक चिकित्सकों के आने का इंतजार करना पड़ा। उपचार कराने के बाद मरीज दवा काउंटर पर पहुंचे और वहां पर दवा प्राप्त करने के लिए भी मरीजों को लंबी लाइन लगानी पड़ी। दवा लेने के लिए लाइन में लगे तीमारदारों के बीच धक्का-मुक्की का दौर भी चला। इधर, गर्मी के चलते डायरिया, बुखार और खांसी जुकाम समेत अन्य मर्जों से पीड़ित मरीजों की संख्या में एकबारगी इजाफा हो जाने के कारण अस्पताल में भीड़ नजर आ रही है।

आलम यह है कि ट्रामा सेंटर में बिछे 22 बेड फुल हो गए हैं। नए मरीज जो भर्ती किए जा रहे हैं उनको बेड उपलब्ध नहीं हो पा रहे। इसके चलते मरीजों को जिला अस्पताल की कुर्सियों, स्ट्रेचर में लिटाकर उपचार किया जा रहा है। चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मी भी करें तो क्या, जितनी अस्पताल में व्यवस्था है, उसी हिसाब से काम कर रहे हैं। अस्पताल में और बेड बढ़ाए जाने की क्षमता नहीं है। इसके चलते मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सीएमएस डा. आरके गुप्ता का कहना है कि मरीजों की संख्या में एकबारगी इजाफा हो जाने के कारण बेड फुल हो जाते हैं। एहतियात के तौर पर एक दर्जन गद्दीदार बेंच डलवाई गई हैं, उनमें मरीजों को लिटाकर उपचार किया जा रहा है। डायरिया पीड़ित एक मरीज अगर अस्पताल में भर्ती होता है तो कम से कम दो दिनों तक उसका उपचार किया जाता है। मरीजों की भीड़ बढ़ने से अव्यवस्था है, जल्द ही स्थिति सामान्य हो जाएगी।

आई वार्ड और आपदा राहत वार्ड का ले सकते हैं सहारा
बांदा। जिला अस्पताल के महिला, पुरुष और इमरजेंसी वार्ड के बेड फुल हैं। इसके साथ ही ट्रामा सेंटर में भी मरीज भर्ती हैं। यहां पर बेड के साथ ही गद्दीदार बेंच भी अब फुल नजर आ रही हैं। नए मरीजों के आने पर उन्हें भर्ती करने में चिकित्सकों को मुश्किल हो रही है। जिला अस्पताल प्रशासन के पास बर्न वार्ड के समीप बना आपदा राहत वार्ड और आई वार्ड अभी कुछ हद तक खाली नजर आ रहे हैं। चिकित्सकों का कहना है कि मरीजों की संख्या में अगर इजाफा हुआ तो इन वार्डों में भी मरीजों को भर्ती किया जाएगा।

सीएचसी-पीएचसी से रेफर होकर आ रहे मरीज
बांदा। जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा. आरके गुप्ता का कहना है कि जनपद के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सकों के द्वारा मरीजों को उपचार के लिए रोका नहीं जा रहा है। प्राथमिक उपचार करने के बाद मरीजों को भर्ती कर दिया जाता है। सीएमएस ने कहा कि एक तो शहर के मरीज और फिर ग्रामीण क्षेत्रों से रेफर होकर मरीजों के आ जाने की वजह से एकबारगी भीड़ बढ़ जाती है। ऐसे में अव्यवस्था होना स्वाभाविक है। सीएमएस ने कहा कि जिला अस्पताल में प्रतिदिन एक हजार से अधिक मरीज रजिस्ट्रेशन कराकर अपना उपचार कराते हैं। ओपीडी बंद हो जाने के बाद ट्रामा सेंटर में संचालित इमरजेंसी में पहुंचे बीमार मरीजों की हालत गंभीर होने पर उन्हें भर्ती कर उनका उपचार किया जा रहा है। एकबारगी मरीज बढ़ जाएंगे तो किसी भी अस्पताल में अव्यवस्था हो सकती है, लेकिन स्थिति सामान्य है। मरीजों का उपचार किया जा रहा है।

मेडिकल कालेज जाने से कतराते हैं मरीज
बांदा। जिला अस्पताल के चिकित्सकों का कहना है कि जिला अस्पताल में भर्ती मरीजों को अगर मेडिकल कालेज रेफर किया जाता है तो उनका कहना होता है कि मेडिकल कालेज की दूरी बहुत है, उनके पास वाहन नहीं है, उन्हें यहीं भर्ती रखकर उपचार करिए। चिकित्सकों का कहना है कि अगर मरीज मेडिकल कालेज का रुख करें तो काफी हद तक जिला अस्पताल में मरीजों की संख्या कम हो सकती है और सबको बेहतर उपचार के साथ ही बेड भी उपलब्ध हो सकते हैं, लेकिन मरीज जिला अस्पताल में ही भर्ती रहकर उपचार कराते हैं। चिकित्सकों ने कहा कि डायरिया पीड़ित मरीज को कम से कम दो दिन तक भर्ती रखकर उपचार किया जाता है, तब मरीज की स्थिति सामान्य हो पाती है। चिकित्सकों ने कहा कि बीमार मरीज को बीच में डिस्चार्ज नहीं कर सकते।

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