कर्नाटक का मुख्यमंत्री कौन बनेगा डी के शिवकुमार - सिद्धारमैया या स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे।

कर्नाटक चुनाव में ऐतिहासिक जीत के बाद अब कांग्रेस के सामने मुख्यमंत्री पद को लेकर दिक्कत पेश आ रही है और ये माना जा रहा है कि अगले एक या दो दिन में पार्टी प्रदेश के नए मुख्यमंत्री का ऐलान कर देगी। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और कांग्रेस की कर्नाटक इकाई के अध्यक्ष डीके शिवकुमार दोनों ही मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे हैं, लेकिन उनमें भी कांग्रेस नेता सिद्धारमैया बढ़त बनाए हुए हैं। कांग्रेस को चिंता है कि कहीं ऐसा न हो कि कर्नाटक में भी राजस्थान जैसा सियासी ड्रामा हो जाए। अशोक गहलोत और सचिन पायलट की तरह ही भिड़ंत सिद्दारमैया और डीके शिवकुमार में न हो जाए। कर्नाटक में कांग्रेस के ये दोनों ही क़द्दावर नेता मुख्यमंत्री की रेस में हैं। और खुद को सबसे आगे मान रहे हैं।कई चैनल उनके सूत्रों से खबर चला रहे है कि दोनों की खीचा खाची से बचने के लिए व कर्नाटक को राजस्थान जैसी हालात से बचने के लिए स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी मुख्यमंत्री बन सकते है ।
कांग्रेस पर्यवेक्षकों ने सभी विधायकों से कर्नाटक के अगले मुख्यमंत्री पर राय ली। बीती देर रात तक विधायकों से राय लेने की प्रक्रिया चली है। अब कर्नाटक को लेकर पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट तैयार लगभग है, जिसे वे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को सौंपेंगे। राज्य में 10 मई को हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 135 सीटों के साथ शानदार जीत हासिल की, जबकि भाजपा को केवल 66 सीटें मिलीं। अब सूत्रों की मानें तो अब दो के बदले इस रेस में तीन नामों पर कयास लगाए जा रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, प्रदेश पार्टी अध्यक्ष डी के शिवकुमार और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे। जीत के बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डी के शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया मीडिया के सामने आए तो खुद को रोक नहीं पाए और भावुक हो गए। दावेदारी को लेकर दोनों नेताओं के समर्थकों के बीच कर्नाटक में पोस्टर वार भी शुरू हो चुकी है।सिद्धारमैया एक बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, वहीं डी के शिवकुमार की ये इच्छा लंबे समय से अधूरी है, जिसे वे इस बार पूरा कर लेना चाहते हैं।कौन बनेगा कर्नाटक का मुख्यमंत्री? इस सवाल का पता लगाने के लिए हमने कर्नाटक की राजनीति को सालों से जानकारी रखने वाले वरिष्ठ लोगों की राय जानी । सबसे पहले बात सबसे पहले डी के शिवकुमार की। साल 2020 में उन्हें कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक के प्रदेश अध्यक्ष का जिम्मा सौंपा था। यह ऐसा समय था जब कांग्रेस राज्य में अपने बुरे दौर से गुजर रही थी, सिद्धारमैया कैबिनेट में रहे कई मंत्री तक अपना चुनाव हार गए थे।
डी के शिवकुमार कांग्रेस पार्टी के पुराने वफादार नेता हैं। वे राज्य में वोक्कालिगा समुदाय के सबसे बड़े नेताओं में से एक माने जाते हैं। साल 1989 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने कभी कांग्रेस छोड़ किसी दूसरी पार्टी की तरफ झांककर नहीं देखा। उन्होंने आठवीं बार कनकपुरा विधानसभा सीट से जीत दर्ज की है। उन्हें साल 2019 में मनी लॉन्ड्रिंग और टैक्स चोरी के आरोप में करीब दो महीने दिल्ली की तिहाड़ जेल में भी बिताने पड़े थे। डी के शिवकुमार के मुख्यमंत्री बनने की संभावना पर बात करते हुए वरिष्ठ राजनीतिक जानकर कहते हैं कि राज्य में 60-40 की स्थिति है। वे कहते हैं, "यह 60 प्रतिशत समर्थन उन्हें हाईकमान की तरफ से है। कांग्रेस की लीडरशिप में खड़गे, राहुल गांधी और सोनिया गांधी उन्हें पसंद करते हैं और उनके समर्थन में भी दिखाई देते हैं। उन्होंने 2018 में पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद दिन रात मेहनत की है। उन्होंने कांग्रेस के मुश्किल समय में जमीनी कार्यकर्ता से लेकर सीनियर लीडरशिप तक में आत्मविश्वास भरने का काम किया है।"कांग्रेस हाईकमान के साथ करीब होने की बात दूसरे वरिष्ठ पत्रकार भी करते हैं।
एक स्थानीय पत्रकार कहते हैं, "राजस्थान के अंदर चुनाव प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में लड़ा गया था लेकिन जैसे ही सरकार बनाने की बात आई तो अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री की कुर्सी दी गई। ऐसा ही कुछ कर्नाटक में भी हो सकता है।कर्नाटक में ये कहा जा सकता है कि चुनाव कैंपेन डी के शिवकुमार ने खड़ा किया है। उसको फाइनेंस करने से लेकर लंबा संघर्ष किया है, लेकिन 2024 से पहले कांग्रेस कोई भी चांस नहीं लेना चाहती, क्योंकि पिछली बार ऑपरेशन लोटस ने जेडीएस और कांग्रेस के विधायक तोड़ दिए थे। इसलिए ऐसी किसी भी स्थिति से बचने के लिए उन्हें मौका मिलना मुश्किल है।उनका कहना है कि कर्नाटक का जनादेश कांग्रेस पार्टी लोकसभा सीटों में बदलना चाहेगी और कुछ भी ऐसा कदम नहीं उठाएगी जिससे राज्य की लीडरशिप में लड़ाई हो। शिवकुमार के ऊपर ईडी का केस है, जो उनकी दावेदारी को कमजोर करता है। हालांकि भाजपा यह कभी नहीं चाहेगी कि वे मुख्यमंत्री बने क्योंकि वे काफी रिसोर्सफुल हैं और उनमें लड़ने की शक्ति है।
दूसरा कर्नाटक में कांग्रेस के बड़े नेता सिद्धारमैया को फिर से मुख्यमंत्री पद का सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है। साल 1983 में पहली बार कर्नाटक विधानसभा में चुनकर आए। 1994 में जनता दल सरकार में रहते हुए कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री बने। एचडी देवगौड़ा के साथ विवाद होने के बाद जनता दल सेक्युलर का साथ छोड़ा और 2008 में कांग्रेस का हाथ पकड़ा। वे 2013 से 2018 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे चुके हैं। उन्होंने अब तक 12 चुनाव लड़े हैं जिसमें से नौ में जीत दर्ज की है। मुख्यमंत्री रहते हुए गरीबों के लिए चलाई गई उनकी कई योजनाओं की काफी तारीफ हुई, जिसमें सात किलो चावल देने वाली वालाअन्न भाग्य योजना, स्कूल जाने वाले छात्रों को 150 ग्राम दूध और इंदिरा कैंटीन शामिल थीं। वे लिंगायत और हिंदू वोटरों के बीच डी के शिवकुमार से कम लोकप्रिय माने जाते हैं। इसकी वजह मैसूर के शासक टीपू सुल्तान की जयंती को धूमधाम से मनाना और जेल से पीएफआई और एसडीपीआई के कई कार्यकर्ताओं को रिहा करना शामिल है। सिद्धारमैया की दावेदारी को राजनीति के जानकर पहले ही शिवकुमार के मुकाबले कमजोर बता चुके हैं। उनका कहना है कि जितनी मेहनत पिछले पांच सालों में शिवकुमार ने की है उसका मेहनताना उन्हें इस बार मिल सकता है। दोनों के बीच कोल्ड वार पहले से चल रही है और यह आगे भी चलती रहेगी। उनके पास पांच साल मुख्यमंत्री होने का अनुभव है। सिद्धारमैया को पिछले 35 साल से जानने वाले कहते है कि वे डी के शिवकुमार की कैबिनेट में उप-मुख्यमंत्री का पद नहीं लेंगे। सिद्धारमैया शांत नहीं बैठेंगे। वे शिवकुमार के खिलाफ जरूर कुछ न कुछ करेंगे।
दूसरी तरफ कुछ जानकर सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री का सबसे बड़ा दावेदार मानते हैं। वे कहते हैं, "सिद्धारमैया पहले मुख्यमंत्री रह चुके हैं और उनके कांग्रेस लीडरशिप के साथ राजनीतिक कनेक्शन अच्छे हैं। उन्होंने खुद कहा है कि यह उनका आखिरी चुनाव है, ऐसे में कांग्रेस उन्हें पहले मौका दे सकती है।"कुछ कहते हैं, "एक फ़ार्मूले के रूप मे कर्नाटक में कांग्रेस ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री बना सकती है और इस क्रम में सिद्धारमैया को पहले मौका मिल सकता है।" हालांकि कांग्रेस का यह फॉर्मूला छत्तीसगढ़ में कामयाब नहीं हो पाया। दोनों नेताओं के अलावा एक तीसरा नाम है कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का।
चुनाव से पहले कई मौकों पर उनसे यह सवाल बार बार किया गया कि क्या कांग्रेस के चुनाव जीतने पर वे मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे? अप्रैल में कर्नाटक के कोलार में हुई जनसभा में कांग्रेस अध्यक्ष ने साफ कहा था कि वे नीलम संजीव रेड्डी की तरफ मुख्यमंत्री पद की रेस में नहीं है। 1962 में नीलम संजीव रेड्डी कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए मुख्यमंत्री पद की होड़ में शामिल थे। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मुख्यमंत्री न बन पाने की टीस उनके दिल में हमेशा से रही है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक खड़गे तीन बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनने से चुके हैं।
1999 में, हाईकमान ने एस एम कृष्णा को मुख्यमंत्री बना दिया था। दूसरी बार जेडीएस के अध्यक्ष एचडी देवेगौड़ा ने कांग्रेस और जेडीएस की साझा सरकार के नेतृत्व के लिए खड़गे के ऊपर धरम सिंह को तरज़ीह दी और तीसरी बार 2013 में, जब सिद्धारमैया ने विधायकों को अपने पक्ष में करते हुए उन्हें शिकस्त दी थी। हालांकि एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में डी के शिवकुमार, खड़गे के नाम पर कुर्सी का बलिदान देने की बात कह चुके हैं।
सियासी जानकार बताते है कि अप्रैल महीने में बात करते हुए उन्होंने कहा था, "इसमें कोई शक नहीं कि वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठना चाहते हैं, लेकिन अब कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर वो मुख्यमंत्री पद से ऊपर उठ चुके हैं।""वो उससे नीचे नहीं उतरना चाहेंगे। उनका आत्मसम्मान इसकी इजाज़त नहीं देगा।
एक वक़्त वो था जब खड़गे को ग़ुलाम नबी आज़ाद और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल से मिलने के लिए इंतज़ार करना पड़ता था। आज बहुत से नेता उनसे मिलने का इंतज़ार करते रहते हैं।"मल्लिकार्जुन खड़गे के मुख्यमंत्री पद न स्वीकार करने के पीछे कुछ और वजहें भी हैं। कहा जाता हैं कि कर्नाटक की राजनीति तमिलनाडु या तेलंगाना की तरह नहीं है। अगर वो कर्नाटक की राजनीति में वापिस आते हैं तो उन्हें अपने बेटे के राजनीतिक भविष्य को दांव पर लगाना होगा। वो स्टालिन की तरह अपने बेटे को अपनी कैबिनेट में मंत्री नहीं बना सकते। खड़गे का मकसद अपने बेटे को कांग्रेस की राजनीति में आगे लाने का है।कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे के बेटे प्रियांक खड़गे ने चित्तपुर सीट से जीत दर्ज की है। वे सिद्धारमैया कैबिनेट में पहले भी मंत्री रह चुके हैं। बताया जाता है कि इस बार भी उन्हें कैबिनेट में जगह मिलेगी।
दूसरी तरफ कुछ जानकर कहते हैं कि वे हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष बने हैं। इस बार उन्होंने कर्नाटक में खुद को झोंकने का काम किया है, जिसका नतीजा हम सबके सामने है। इस उम्र में भी उनकी डिलीवरी काफी अच्छी है।वे कहते हैं, "भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति का काट कांग्रेस पार्टी ने खोज लिया है। कांग्रेस दलित अध्यक्ष और ओबीसी के झंडे को आगे लेकर बढ़ रही है। जातिगत जनगणना की बात कर रही है। यह रणनीति भाजपा के हिंदुत्व के नेरेटिव को काटने का काम कर रही है और इसे ही कांग्रेस दूसरे चुनावों में अब इस्तेमाल करने जा रही है।
अशोक भाटिया,
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