साहित्य/ज्योतिष
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी|

संजीव-नी| आज मेरे दिल का क्या हाल है।     आज न जाने मेरे दिल क्या हाल है, सुर है न ताल है हाल मेरा बेहाल है।     आंखों से क्या जरा ओझल हुए तुम, जिन्दगी की हर चाल ही बेचाल है।     सोते जागते...
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शिक्षा  साहित्य/ज्योतिष 

खजनी के नवल्स नेशनल एकेडमी में महामहिम राज्यपाल हिमांचल प्रदेश ने किया युगल मूर्ति का लोकार्पण, अनुशासन, सादगी और विद्वता के प्रतिमान थे आचार्य सत्यनारायण त्रिपाठी- शिव प्रताप शुक्ल

 खजनी के नवल्स  नेशनल एकेडमी में महामहिम राज्यपाल हिमांचल प्रदेश ने किया युगल मूर्ति का लोकार्पण, अनुशासन, सादगी और विद्वता के प्रतिमान थे आचार्य सत्यनारायण त्रिपाठी- शिव प्रताप शुक्ल ब्यूरो शत्रुघ्न मणि त्रिपाठी   गोरखपुर। आचार्य सत्यनारायण त्रिपाठी अपने सेवाकाल के दौरान गोरखपुर विश्वविद्यालय में अनुशासन प्रियता, सदाचार, सादगी और विद्वता के लिए जाने जाते थे। उनकी तथा उनके धर्म भार्या की जिवंत प्रतिमाओं के अनावरण का सौभाग्य मुझे अध्यक्षता...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी।

संजीव-नी। देशभक्ति का जज्बा।    देश में आतंकवादियों के हमले से हुए  शहीदों की शहादत पर बाकी बचे हुए अस्पताल में पड़े हताहत पर।    एक भिखारी ने  दिया खुलकर दान बढ़ा दी मानवता की आन और बढ़ा दी भिखारियों की शान।   भिखारी...
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भगवती वंदना 

भगवती वंदना  मां भगवती सदैव आपकी शरण रहूँ  भले दुखों का प्रहार हो  भले सुखों की बाहर हो। मां भगवती सदैव आपकी चरणवन्दना करुँ  भले लोग मेरे खिलाफ़ हो भले लोग मेरे साथ हो। मां भगवती सदैव आपका चिंतन मनन करुँ  भले...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। एक दिया इधर भी। एक दिया छत की मुंडेर पर जला आना, जहां साया होता है गहन तमस का।     एक दिया उस बूढ़ी मां के कमरे के आले पर जला आना, जहां बेटे,बहू ,नाती,नातीने जाने से कतराते हों।     एक दिया...
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दीप 

दीप  दीप जलते नहीं  जलाए जाते है। मोहब्बत की नहीं निभाई जाती है। खुशियां आती नहीं  लाई जाती है। अपने बनते नहीं   बनाए जाते है। कर्म दिखाए नहीं किए जाते है। हमसफर दिखाया नहीं  बनाया जाते है। सत्य समझाया नहीं  समझा...
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संजीव-नी। 

संजीव-नी।  वक्त कभी रुकता नहीं संजीव।     बेवफाई मैं किसी से करता नहीं सच्चा प्यार भी कभी मरता नहीं।     जो अपना सुरूरे मिजाज रखता है वो अपनी हद से कभी गुजरता नहीं।     जाम पीकर देखिये सियासत का कभी ता जिंदगी ये नशा...
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संजीव-नीl

संजीव-नीl कौन दस्तक देता है दर पर संजीव।मैं तो अपनी शर्तों पर जीता हूं.पराये दर्द के अश्कों को पीता हूं।रातें तो सितारों संग बीत जाती हैं,दिन के उजालों से बचता रहता हूं।अब चले ना चले कोई...
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संजीव-नी। 

संजीव-नी।  मुझे कोई गम नहीं रहा संजीव।     आरजू आखरी सांस तलक नेकी की शर्त ही थी हर लम्हा पूरा जीने की।     आबरू खुद बचा ली इस तूफ़ां ने  मेरी जिंदगी के टूटे हुए सकिने की।     दिल को तस्कीन सी मिली है...
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कविता

कविता दुनिया आजमाती रही मुझे संजीव।     अपने अंदाज ही बड़े निराले हैं प्यार के जख्म दिल में पाले हैं।     मौज करते हैं मांग मांग कर जो मजबूत हाथ पैर वाले हैं।     जिंदगी में जो रंगीन दिखते हैं दिल के कुछ गोरे...
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संजीव-नी। 

संजीव-नी।  इतनी बे-असर दुआएं क्यों हैं। ?     इतनी खामोश हवाएं क्यों है,  इतनी गमगीन फिजाएं क्यों है।     बीमार ए-दिल में बे-असर दवाएं अब इतनी बे-असर दुआएं क्यों हैं।     दर्द हमारा तो ला- इलाज है, बे-असर इतनी दवाएं क्यों हैं ।    नजरें...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। मस्तियां सी घोल दी बरसात ने।     क्या दिया है मोहब्बत के जज्बात ने कितना पीसा हमको इस हालात ने।     मेरी तकदीर को चांद सा चमका दिया सचमुच् तेरी उस पहली मुलाकात ने ।     तेरी आंखों के हैं जाम तौबा शिकन...
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