पुनर्जन्म झूठ नहीं है, लेकिन...

मरने के बाद हम कहाँ जाते हैं?" इस सवाल के बारे में हम सबने सोचा है। लेकिन कोई गहरा उत्तर कभी नहीं मिला।

पुनर्जन्म झूठ नहीं है, लेकिन...

 पुनर्जन्म एक बहुत ऊँचे तल पर होता है, तुम्हारे तल पर नहीं होता। तुम, जो तुम्हारी व्यक्तिगत सत्ता थी . तुम, तुम्हारा जीवन, तुम्हारे अनुभव, तुम्हारी यादें, यह सब तुम्हारे साथ ही नष्ट हो जाना है। तुम्हारा चेहरा अब लौटकर के नहीं आएगा। तुम्हारी यादें अब लौटकर के नहीं आएँगी। तुम्हारा जो व्यक्तिगत अहंकार है, वह लौटकर के नहीं आएगा।

स्वतंत्र प्रभात-

"मरने के बाद हम कहाँ जाते हैं?" इस सवाल के बारे में हम सबने सोचा है। लेकिन कोई गहरा उत्तर कभी नहीं मिला।चलिए आज इस विषय को गहराई से समझेंगे।आचार्य जी के सामने जब किसी ने यही सवाल रखा तो देखिए उन्होंने क्या उत्तर दिया।

संयम से पढ़िएगा:

 मरने के बाद तुम्हारा कुछ नहीं होगा, तुम मिट्टी हो जाओगे। तुम्हें क्यों लग रहा है कि तुम इतनी बड़ी चीज़ हो कि तुम्हारा मरने के बाद भी कुछ होगा? मरने से पहले तो तुम्हारा कुछ हो नहीं पाया! मरने के बाद क्या होगा? ये हमारा अजीब ग़ुमान है। 

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 पुनर्जन्म झूठ नहीं है: हमारा जो व्यक्तिगत अस्तित्व है, उसे राख हो जाना है। व्यक्तिगत अस्तित्व को कहते हैं व्यष्टि। और प्रकृति में ये जो कुल अस्तित्व है, सब कुछ, इसे कहते हैं — समष्टि। समष्टि का पुनर्जन्म चलता रहता है लगातार। तो पुनर्जन्म झूठ नहीं है। यह मत कह देना कि मैं पुनर्जन्म से इंकार करता हूँ, नहीं। मैं व्यष्टि के पुनर्जन्म से इंकार करता हूँ। पुनर्जन्म समष्टि का होता है। 

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  समष्टि माने समझ लो सागर, और व्यष्टि माने समझ लो सागर की एक लहर। तो सागर बार-बार लहराता रहेगा। लहरों का बार-बार सागर में जन्म होता रहेगा। लहर उठेगी, लहर गिरेगी। लेकिन जो व्यष्टि है, जो एक विशिष्ट लहर है, वह नहीं लौटकर आने वाली। 

 

 तो अगर तुम पूछ रहे हो, मान लो तुम्हारा कुछ नाम है राजू, "राजू का क्या होगा मरने के बाद?" तो जवाब है राजू खत्म हो गया। राजू का कोई पुनर्जन्म नहीं है। हाँ, समष्टि का पुनर्जन्म ज़रूर है। मैं पुनर्जन्म से इंकार नहीं करता। मैं राजू के पुनर्जन्म से इंकार करता हूँ। तो राजू महाराज इस धोखे में बिलकुल ना रहें कि वह कहीं लौटकर के आएँगे कि आगे कुछ होने वाला है। मैं कह रहा हूँ कि जैसे जीना है अभी जी लो। तुम्हारा कुछ नहीं बचने वाला मृत्यु के बाद। 

 

 पुनर्जन्म एक बहुत ऊँचे तल पर होता है, तुम्हारे तल पर नहीं होता। तुम, जो तुम्हारी व्यक्तिगत सत्ता थी . तुम, तुम्हारा जीवन, तुम्हारे अनुभव, तुम्हारी यादें, यह सब तुम्हारे साथ ही नष्ट हो जाना है। तुम्हारा चेहरा अब लौटकर के नहीं आएगा। तुम्हारी यादें अब लौटकर के नहीं आएँगी। तुम्हारा जो व्यक्तिगत अहंकार है, वह लौटकर के नहीं आएगा। 

 

 हाँ, अहंवृत्ति अपना खेल खेलती रहेगी। उसका पुनर्जन्म बार-बार होता रहेगा, अहंवृत्ति का। तुम्हारे व्यक्तिगत अहंकार का नहीं।अहंवृत्ति का पुनर्जन्म होता रहेगा माने क्या? जो अहंवृत्ति तुममें आज पाई जाती थी वही कल किसी और में पाई जाएगी। कुछ और होगा जो ख़ुद के होने का अनुभव करेगा। वह बार-बार आती रहेगी। लेकिन जो चीज़ तुममें थी, जो तुम बने बैठे थे वह नहीं लौटकर के आने वाली, उसका कुछ नहीं है।

 

 

हमने बड़ी भूल करी है! जो पुनर्जन्म की बात को ठीक से समझे नहीं। और ठीक से ना समझने का भुगतान सनातन धर्म ने और भारत देश ने खूब चुकाया है। बहुत ऊँचा है पुनर्जन्म का सिद्धांत, बहुत गहरी बात कही गई है जब कहा जाता है कि पुनर्जन्म है।

 

लेकिन हमने उस गहरी बात को व्यक्ति के तल पर लाकर के बिलकुल छिछला बना दिया। हमने कहना शुरू कर दिया कि राजू है, राजू का पुनर्जन्म होगा तो वह काजू बन जाएगा। वह बात बिलकुल बेकार है। पुनर्जन्म बिलकुल दूसरी बात है उसे अच्छे से समझ लीजिए।

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