इस जिद्दी डायरेक्टर की वजह से भारतीय सिनेमा को कुछ महान फिल्में मिली

दिलीप कुमार की शोहरत इसी डायरेक्टर की वजह से बनी

इस जिद्दी डायरेक्टर की वजह से भारतीय सिनेमा को कुछ महान फिल्में मिली

इस आदमी को पगला डायरेक्टर भी कहते है। जिसकी जिद की वजह से कुछ फिल्मों ने नायाब रिकार्ड बनाया

स्वतंत्र प्रभात-सिनेमा

बॉलीवुड के इतिहास में ये ऐसा डायरेक्टर था जो अपनी सिर्फ एक फिल्म के लिए जाना जाता है. इस आदमी को फिल्म बनाने की कोई खास ट्रेनिंग नहीं थी. पर अपने वक्त के सबसे बड़े लोगों को अपने हाथ में ले के घूमता था ये शख्स. नाम था के आसिफ. पूरा नाम करीमुद्दीन आसिफ. फिल्म बनाई थी ‘मुग़ल-ए-आज़म’. उत्तर प्रदेश के इटावा में से निकले आसिफ बंबई में अपने नाम का डंका बजा आये.

 

जिद्दी आदमी थे. मंटो इनके बारे में लिखते हैं कि कुछ खास किया तो नहीं था, पर खुद पर भरोसा इतना था कि सामने वाला इंसान घबरा जाता था. बड़े गुलाम अली खान से अपने बतरस से लेकर अपनी फिल्म में बड़े-बड़े गीतकारों से ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के लिए 72 गाने लिखवाने की कहानियां हैं आसिफ की.


9 मार्च 1971 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से आसिफ की मौत हो गई थी. उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में केवल दो फ़िल्में बनाईं ‘फूल'(1945) और ‘मुग़ल-ए-आज़म’ (1960). उनकी पहली फिल्म तो कुछ खास कमाल नहीं कर सकी लेकिन दूसरी फिल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ ने इतिहास बना दिया. ‘मुग़ल-ए-आज़म’ को बनाने में 14 साल लगे थे. ये फिल्म उस वक़्त बननी शुरू हुई जब हमारे यहां अंग्रेजों का राज था. शायद ये एक कारण भी हो सकता है।

 

जिसके चलते इसको बनाने में इतना वक़्त लगा. ये उस दौर की सबसे महंगी फिल्म थी, इस फिल्म की लागत तक़रीबन 1.5 करोड़ रुपये बताई जाती है. जब फिल्में 5-10 लाख रुपयों में बन जाती थीं. भारतीय सिनेमा के इतिहास में ये फिल्म कई मायनों में मील का पत्थर साबित हुई.

1. सोहराब मोदी की ‘झांसी की रानी'(1953) भारतीय सिनेमा की पहली रंगीन फिल्म थी. पर 1955 आते-आते रंगीन फ़िल्में बनने लगी थीं. इसी को देखते हुए आसिफ ने भी ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के गाने ‘प्यार किया तो डरना क्या’ सहित कुछ हिस्सों की शूटिंग टेक्निकलर में की जो उन्हें काफी पसंद आई. इसके बाद उन्होंने पूरी फिल्म को टेक्निकलर में दोबारा शूट करने काफैसला लिया ।

 


2. इस फिल्म में अकबर के रोल के लिए आसिफ उस वक्त के मशहूर अभिनेता चंद्रमोहन को लेना चाहते थे. पर चंद्रमोहन आसिफ के साथ काम करने के लिए तैयार नहीं थे. आसिफ को उनकी आंखें पसंद थीं. कह दिया था कि मैं दस साल इंतजार करूंगा पर फिल्म तो आपके साथ ही बनाऊंगा. पर कुछ समय बाद एक सड़क हादसे में चंद्रमोहन की आंखें ही चली गईं.


3. फिल्म के एक सीन में पृथ्वीराज कपूर को रेत पर नंगे पांव चलना था. उस सीन की शूटिंग राजस्थान में हो रही थी जहां की रेत तप रही थी. उस सीन को करने में पृथ्वीराज कपूर के पांव पर छाले पड़ गए थे. जब ये बात आसिफ को पता चली तो उन्होंने भी अपने जूते उतार दिए और नंगे पांव गर्म रेत पर कैमरे के पीछे चलने लगे. अब कोई कुछ नहीं कह पाया था.

 

 

4. नौशाद फिल्म के लिए बड़े गुलाम अली साहब की आवाज़ चाहते थे, लेकिन गुलाम अली साहब ने ये कहकर मना कर दिया कि वो फिल्मों के लिए नहीं गाते. लेकिन आसिफ ज़िद पर अड़ गए कि गाना तो उनकी ही आवाज में रिकॉर्ड होगा. उनको मना करने के लिए गुलाम साहब ने कह दिया कि वो एक गाने के 25000 रुपये लेंगे. उस दौर में लता मंगेशकर और रफ़ी जैसे गायकों को एक गाने के लिए 300 से 400 रुपये मिलते थे. आसिफ साहब ने उन्हें कहा कि गुलाम साहब आप बेशकीमती हैं ,ये लीजिये 10000 रुपये एडवांस. अब गुलाम अली साहब के पास कोई बहाना नहीं था. उनका गाना फिल्म में सलीम और अनारकली के बीच हो रहे प्रणय सीन के बैकग्राउंड में बजता है.


5.इस फिल्म का आइडिया आसिफ को आर्देशिर ईरानी की फिल्म ‘अनारकली’ को देखकर आया था. इस फिल्म को देखने के बाद उन्होंने अपने अपने दोस्त शिराज़ अली हाकिम के साथ एक फिल्म बनाने का फैसला किया. शिराज़ उनकी फिल्म प्रोड्यूस कर रहे थे. फिल्म में चंद्रबाबू, डी.के सप्रू और नरगिस को साइन किया गया. 1946 में फिल्म की शूटिंग बॉम्बे टाकीज स्टूडियो में शुरू हुई. अभी शूटिंग शुरू ही हुई थी कि पार्टीशन की प्रक्रिया शुरू हो गयी जिसके कारण फिल्म के प्रोड्यूसर शिराज़ को हिंदुस्तान छोड़कर जाना पड़ा. 1952 में फिल्म को दोबारा नए सिरे से नए प्रोड्यूसर और कास्टिंग के साथ शुरू किया गया. 

 

 

 


6.फिल्म के म्यूजिक को लेकर आसिफ बड़े ही गंभीर थे. उन्हें इस फिल्म के लिए बेहद ही उम्दा संगीत की दरकार थी. नोट से भरे ब्रीफ़केस को लेकर आसिफ मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद के पास पहुंचे और ब्रीफ़केस थमाते हुए कहा कि उन्हें अपनी फिल्म के लिए यादगार संगीत चाहिए, ये बात नौशाद साहब को बिलकुल नहीं भाई. उन्होंने नोटों से भरा ब्रीफ़केस खिड़की से बाहर फ़ेंक दिया और कहा कि म्यूजिक की क्वालिटी पैसे से नहीं आती. बाद में आसिफ ने नौशाद से माफी मांग ली. वो अंदाज भी ऐसा था कि नौशाद हंस के मान गए.


 

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