प्रह्लाद ने खंभे से भगवान को प्रकट करके सिद्ध कर दिया कि कण कण में भगवान  हैं।

प्रह्लाद ने खंभे से भगवान को प्रकट करके सिद्ध कर दिया कि कण कण में भगवान  हैं।

कोरांव प्रयाग राज । क्षेत्र के अयोध्या गांव में भागवत कथा के तीसरे दिन भक्त प्रह्लाद चरित्र   प्रसंग का वर्णन किया गया।कथावाचक राधा प्रेष्ठ दास जी महराज ने बताया कि  वेदों पुराणों एवं समस्त सनातन ग्रंथों ने बार बार यह उद्घोष किया है कि ईश्वर सदा सर्वदा समस्त विश्व में विद्यमान हैं (ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेर्जुन तिष्ठतिया ईशावास्य मदं सर्वं)किन्तु इस उद्घोष को प्रत्यक्ष प्रमाणित करने का प्रथम श्रेय पांच वर्ष के बालक प्रह्लाद को मिला।
 
 प्रह्लाद का पिता हिरण्यकशिपु महान नास्तिक था वह स्वयं को भगवान घोषित कर चुका था यज्ञ हवन पूजा पाठ समस्त धार्मिक आयोजन बंद करवा दिया था और उसके अत्याचार से समस्त संसार त्राहि-त्राहि कर उठा था।एक सर्व विदित सिद्धांत है कि जब रात्रि का अंधकार गहन हो जाय तो सूर्योदय की भी आशा प्रवल हो जाती है भौतिक वाद जब अपने यौवन पर आ जाता है तो उसी के एक कोने से अध्यात्म वाद भी अंकुरित होने लगता है।
 
निशा का अंधकार गंभीर साथ लाता है सूर्य प्रकाश। परिणाम यह हुआ कि उसी हिरण्यकशिपु के घर में प्रह्लाद के रूप में अध्यात्म प्रकट हो गया।शैशव काल से ही प्रह्लाद जी भगवद्भक्ति में लीन हो गये क्योंकि गर्भ काल में इनकी माता को नारद जी ने नारायण मंत्र का उपदेश दिया था और वह मंत्र गर्भस्थ बालक ने भी सुन लिया था जैसे अभिमन्यु ने गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदन की कला सीख लिया था। हिरण्यकशिपु ने लाख उपाय किए किंतु प्रह्लाद टस से मस नहीं हुए हार कर उसने प्रह्लाद को मारने का प्रयास प्रारंभ कर दिया।
 
 पर्वत से गिराया समुद्र में फेंक दिया जहर पिलाया जहरीले नागों के कुंड में फेक दिया आग में जलाने का प्रयास किया विष पिलाया किंतु भक्त वत्सल भगवान ने सर्वत्र इनकी रक्षा किया। अंततः पुत्र को भरी सभा में खड़ा करके पूछने लगा बोल तेरा परमात्मा कहां है क्या इस स्तंभ में भी है क्या?स्तंभे किं न दृष्यते। बिना हिचक प्रह्लाद ने कहा हां पिता जी इस खंभे में भी भगवान हैं और उसी समय क्रुद्ध राक्षस ने खंभे पर मुष्टिका प्रहार किया।महान आश्चर्य खंभे से प्रचंड आवाज आई समस्त दिशाएं कांप उठीं धरती पर भूकंप आने लगे पर्वत शिखर टूट कर गिरने लगे और भगवान नृसिंह प्रकट हो उठे।
 
चीर फाड़ कर टुकड़े टुकड़े कर दिया हिरण्यकशिपु को बस इसी घटना के बाद संसार में पत्थर की पूजा होने लगी। इससे पूर्व महराज श्री ने ऋषभदेव जड़ भरत वृत्तासुर तथा अन्य कथाओं को सुनाकर विशाल श्रोता समूह को भाव विभोर कर दिया।कथा के मुख्य यजमान मनीराम शुक्ल गंगा कलावती शुक्ला घनश्याम शुक्ल ने सभी आगंतुक अतिथियों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया तथा व्यास पीठ की पूजा संपन्न किया।   भागवत में उपस्थित मुख्य अतिथि रोहणी प्रसाद शुक्ला(पूर्व प्रधानाचार्य), हरि प्रसाद दुबे,विजय लाल शुक्ला, बृजेश कुमार मिश्रा(मुन्ना) अधिवक्ता, सुनील दुबे, गोविन्द दास तिवारी, डॉ राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला, ज्ञान कुमार शुक्ला, विजय पांडेय, विनय तिवारी समस्त क्षेत्रवासियों से अधिकाधिक संख्या में उपस्थित होकर कथामृत पान करने का आग्रह किया है।

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