कुंभ से उपजते युवा पीढ़ी के लिए शोध के विषय
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कुंभ सनातनियों के लिए आस्था और विश्वास का सबसे बड़ा मेला सिद्ध हुआ। इसमें युवा पीढ़ी को भी विविध अखाड़ों के साधु-संतों, ऋषि-मुनियों , कथावाचकों आदि को निकट से देखने, विविध पूजा पद्धतियों, तप, साधना आदि को करीब से जानने तथा वेद, पुराण , उपनिषद, भागवत, गीता, रामायण आदि सनातन ग्रंथों के गुंढ रहस्यों से साक्षात्कार करने के साथ साथ शासन, प्रशासन, समाजिक संस्थाओं तथा मठ, मंदिर, अखाड़ों, आश्रमों की व्यवस्था तथा क्रिया कलापों को समझने का अवसर भी प्राप्त हुआ।
महाकुंभ 2025 ने युवाओं के मन से इस विचार को मुक्ति दिलाने में सफलता प्राप्त की जिसमें यह कहा जाता रहा है कि स्नान , ध्यान, पूजा, पाठ, धर्म,दान,पुण्य, तीर्थाटन आदि जैसे धार्मिक आयोजनों में सहभागिता के लिए जीवन का उत्तरार्ध समय सबसे उपयुक्त है। सनातन धर्म के तीज त्योहार,वृत अवैज्ञानिक है। कुंभ 2025 में युवाओं की बढ़ती सहभागिता से ऐसा लगा कि आज की युवा पीढ़ी में न सिर्फ अपने सनातन धर्म और उससे जुड़े संस्कार, संस्कृति, रीति, रिवाज के प्रति आस्था और विश्वास बढ़ा है अपितु वह उससे जुड़े सभी पक्षों को करीब से जानना चाहती है।
वह उस विचार से भी बाहर निकलना चाहती हैं जिसमें कहां जाता रहा है कि सनातन विज्ञान को न मानने वालों का धर्म है, ढोंग और पाखंडियों का धर्म है, पंडित । कुंभ ने यह बता दिया कि देश की सनातन युवा पीढ़ी का झुकाव देश के तीर्थ स्थलों, मेलों, तीज़-त्यौहारों की ओर बढ़ रहा है,वह भी इस विश्वास के साथ कि उनकी अधिक से अधिक धार्मिक आयोजनों में सहभागिता धर्म के नाम पर किए जानें वाले पाखंड और अवैज्ञानिक कृत्यों से छुटकारा दिला सकती है। सनातन को सर्व ग्राह्य बना सकती है।
प्रयाग महाकुंभ ने युवाओं के मन में कई प्रश्नों को जन्म दिया है, शायद यह वर्ग शोध के माध्यम से उन प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास भी करें जैसे (1) क्या कुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजन देश में चली आ रही विभिन्न समस्याओं जैसे भुखमरी, बेरोजगारी , मंदिरों के प्रबंधन, जलस्रोतों के प्रदूषण , शहरों की साफ, सफाई, स्वच्छता, विकास के साथ स्थानीय लघु और कुटीर उद्योगों आदि की समस्याओं को और जटिल बनाते हैं या समाधान कारक बनते हैं ?(2) क्या इस तरह के आयोजनों में विभिन्न साधु-संतों, महात्माओं, महापुरुषों आदि से मिलना, उनके विचारों को सुनना और योग, प्रणायाम,ध्यान-साधना आदि में में भाग लेने से जीवन में स्थिरता आती है, आत्मिक शांति मिलती है?
(3) क्या इस तरह के आयोजन उन्हें अपनी सनातन संस्कृति और परंपराओं को करीब से जानने, जुड़ने और सहजने के लिए प्रेरित करते हैं?(4) क्या युवाओं को अपने इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर के प्रति गर्व होता है?(5) क्या इस तरह के आयोजन से उन्हें सामाजिक समरसता को करीब से जानने और अनुभव करने का अवसर मिलता हैं!लिंग, जाति, भाषा, ऊंच-नीच ,अमीर & गरीब के मध्य भेद दिखाई देता?(6) क्या इस तरह के आयोजन सही अर्थों में एकता और समानता के महत्व को समझने में मदद करते हैं ?(7) क्या इस तरह के आयोजन समाज में भाईचारे और सद्भावना को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करते हैं?
(8) क्या इस तरह के आयोजन सम्पन्न लोगों को गरीबों के लिए दान और सेवा भाव के लिए प्रेरित करते हैं?(9)क्या महाकुंभ के दौरान ध्यान, प्रणायाम,योग, आर्युवेद और प्राकृतिक चिकित्सा आदि को वैश्विक पहचान मिलती है?(9 10) क्या कुंभ जैसे आयोजन युवाओं को एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं?(11) क्या कुंभ जैसे आयोजन पर्यावरण का महत्व, संसाधनों के संरक्षण का संदेश,पवित्र नदियों को प्रवाहमान एवं प्रदूषण से मुक्त रखने की सीख दे पाने में सफल होते हैं?(12) क्या कुंभ जैसे मेले सहभागियों को स्वच्छता के प्रति जागरूक बना पाते हैं?(13) क्या कुंभ से युवा पीढ़ी नेतृत्व, टीम वर्क, अनुशासन ,और समाज सेवा का महत्व समझ पाती है?
(14) क्या इस तरह के आयोजन युवा पीढ़ी के व्यक्तित्व विकास में सहायक हो सकते हैं?(15)महाकुंभ जैसे आयोजन देशवासियों के साथ ही विदेशियों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र रहते हैं और उन्हें सहभागिता प्रदान करने का अवसर प्रदान करते हैं। क्या विदेशियों की उपस्थिति भारतीय युवाओं को विभिन्न विदेशी संस्कृतियों और विचारधाराओं को समझने का मौका देती है?या फिर भारतीय दृष्टिकोण में व्यापक बदलाव का कारण बनती है?(16) क्या कुंभ जैसे धार्मिक मेलों से मिलने वाले आध्यात्मिक अनुभवों का मानव मस्तिष्क और मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है?
(17) क्या महाकुंभ जैसे आयोजन युवाओं को जीवन के उच्चतर लक्ष्यों के प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं?(18) क्या कुंभ समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा देता है?(19)क्या महाकुंभ से स्थानीय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है?(20) क्या महाकुंभ के जरिए भारत में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलता है?(21) क्या इस तरह के आयोजनों से लोक साहित्य,लोक संगीत, लोक नृत्य और लोक कलाओं को बढ़ावा और नवाचार के अवसर मिलते हैं?(22)क्या इस तरह के आयोजन शोध, नवाचार और स्टार्टअप के लिए एक अवसर हैं?
(23) क्या कुंभ जैसे मेले जहां भीड़ अनुमान से अधिक पहुंचती है से करोड़ों लोगों को क्वालिटी आधार भूत सुविधाओं (जैसे भीड़ प्रबंधन,आवागमन, निवास, भोजन, स्वास्थ्य,उर्जा एवं शुद्ध पेयजल आपूर्ति, स्वच्छता, कचरा प्रबंधन, मल-मूत्र त्याग स्थान की व्यवस्था तथा इनके निष्पादन की उचित प्रक्रिया आदि)बेहतर रूप में भविष्य में किस प्रकार उपलब्ध कराई जा सकती है?किस प्रकार श्रेष्ठ प्रबंधन किया जा सकता है की जानकारी मिलती है? (24)कुंभ जैसे आयोजनो में महिलाओं, ट्रांसजेंडर, गरीबों और हाशिए पर रहने वाले वर्गों की भागीदारी और उनके अनुभवों पर भी शोध होना चाहिए।
(25)महाकुंभ जैसे आयोजनों में डिजिटल,सोशल मीडिया की सकारात्मक भूमिका, संचार प्रबंधन को और सशक्त कैसे बनाया जा सकता है?इस पर कार्य किया जाना चाहिए।(26) यदि संभव हो तो कुंभ के पहले,कुंभ के दौरान और कुंभ के वाद आयोजन स्थल पर हवा, पानी, मृदा पर प्रदूषण की दृष्टि से क्या असर रहा? नदियों के जल (गंगा, यमुना) की क्या स्थिति रही?(27) कितना कचरा जनरेट हुआ? क्या उसमें कमी लाई जा सकती थी?इन प्रश्नों के समाधान इस लिए भी आवश्यक है क्योंकि भारत जैसे देश में इस तरह के विविध आयोजन समय समय पर विविध शहरों में होते ही रहते हैं।
और जो थोड़ी बहुत असुविधा महाकुंभ में रही उसकी पुनरावृत्ति से आगामी आयोजनों को दूर रखा जा सके तथा आगामी आयोजनों को और बेहतर, और आकर्षक, और सुविधा युक्त बनाया जा सके। विज्ञान तो कभी किसी शोध को अंतिम मान्यता ही नहीं उसके अनुसार हर क्षेत्र में हमेशा शोध, नवाचार और सुधार की संभावना बनी ही रहती है।
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