"आठ साल बेमिसाल" से 27 के चुनाव तक
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उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने आठ वर्ष पूरे कर लिए हैं। इस ख़ुशी में एक नारा दिया गया था "आठ साल बेमिसाल" और इस नारे को लेकर प्रदेश के प्रत्येक जनपद में मंत्रियों, विधायकों, सांसदों व जिलाध्यक्षों ने जमकर प्रचार प्रसार कि और सरकार के कामों को गिनाया, कहीं लैपटॉप, कहीं टैबलेट्स तो कही विश्वकर्मा योजना तो कहीं मुद्रा लोन बांटे गए। कुल मिलाकर सरकार ने अपनी खूबियां गिनाईं।
2027 में योगी सरकार के दस वर्ष पूरे हो रहे हैं और फिर चुनाव होना है, नई सरकार चुनी जाएगी। अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश विधानसभा के उपचुनाव में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा। यहां तक की लोकसभा चुनाव में जिस अयोध्या सीट को भारतीय जनता पार्टी हार गई थी, विधानसभा उपचुनाव में उसी अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट को भारतीय जनता पार्टी ने अच्छे अंतर से जीत लिया। लेकिन क्या यह प्रदर्शन 27 तक बरकरार रह सकेगा ? इसके लिए भारतीय जनता पार्टी ने अभी से ही तैयारी शुरू कर दी है और वह अब जनता को अपने कार्यों को गिनानें में लग गई है।
उत्तर प्रदेश में यदि विपक्ष को देखें तो इस समय केवल समाजवादी पार्टी ही विपक्ष के रुप में दिखाई दे रही है। कांग्रेस और सपा में बयान बाजी यह प्रश्न उठा रही है कि क्या 27 के विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ सकेंगे ? बहुजन समाज पार्टी शांत है। राष्ट्रीय लोकदल एनडीए में शामिल हो चुका है। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा ने अब तक का अपना शानदार प्रदर्शन किया था। और 37 सीटों पर विजय हासिल की थी लेकिन उसके बाद हुए विधानसभा उपचुनाव में सपा का यह भ्रम टूट गया कि वह विधानसभा चुनाव में भी इसी तरह का प्रदर्शन दोहरायेगी।
प्रदेश में मुद्दे तो बहुत हैं लेकिन जो मुद्दा जबरदस्त काम कर रहा है वह है हिंदुत्व का मुद्दा। और भारतीय जनता पार्टी समय-समय पर हिंदुत्व का मुद्दा उठाती रहती है। अभी एक पॉडकास्ट में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक प्रश्न के जबाब में कहा था कि त्योहार मनाने के मामले में मुस्लिम समुदाय को हिंदुओं से सीख लेनी चाहिए। दरअसल इस बार ईद के मौके पर राज्य सरकार ने सड़कों पर नमाज अदा करने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
कुल मिलाकर योगी आदित्यनाथ सरकार बीच-बीच में कुछ ऐसे कार्य करती आ रही है जिसे हिंदू पसंद कर रहा है और यही इस सरकार की कामयाबी का राज है। हालांकि विपक्ष इसपर खूब कटाक्ष कर रहा है लेकिन योगी आदित्यनाथ सरकार अपने मिशन से पीछे नहीं हट रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो यहां तक कह दिया कि हम आज जो कार्य कर रहे हैं इसका सकारात्मक परिणाम आगे आने वाले समय में दिखाई देगा। कुल मिलाकर हिंदू ख़ुश हैं, हिंदुत्व चल रहा है।
यहां सवाल यह उठता है कि फिर लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश में इतनी सफलता कैसे प्राप्त हुई। तो इसका सीधा मतलब है कि सपा ने सीटों का संयोजन बहुत अच्छा किया था और उसी वज़ह से दलित वर्ग काफी हदतक सपा की झोली में गया। यदि आज भी देखा जाए तो सपा और और भाजपा दोनों दलितों को साधने में कोई कमी नहीं छोड़ रहीं हैं। भाजपा हिंदुत्व के साथ साथ दलितों की बस्ती में पहुंच रही है। क्यों 2027 के चुनाव में दलित वोट निर्णायक होने वाला है। सपा ने तो पहले ही घोषणा कर दी है कि वह आगे के चुनाव पीडीए के दम पर ही लड़ेगी।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी सपा के साथ थी, जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल ने भी सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था जिसका लाभ निश्चित रूप से समाजवादी पार्टी को मिला था। हालांकि कांग्रेस वोट दिलवा तो नहीं सकती लेकिन वोटों का बंटवारा रोक सकती है। इसलिए सपा को हर हाल में कांग्रेस को साथ रखना होगा। भाजपा जानती है कि बहुत सारे छोटे छोटे दल जो उसके साथ हैं भले ही वह अकेले अच्छा प्रदर्शन न कर सकें लेकिन भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से उनकी ताकत बढ़ जाती है।
अपना दल सोने लाल, निषाद पार्टी,सुभासपा जैसे छोटे-छोटे तमाम दल भाजपा के साथ हैं। लेकिन वहीं विपक्ष बिखरा हुआ है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का एक साथ आना मुश्किल लग रहा है। सपा चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी को साथ में रखना नहीं चाहती। वहीं कांग्रेस से अनबन चल रही है। ऐसे में सपा के लिए 2027 का चुनाव संकट में नजर आ रहा है। वही भारतीय जनता पार्टी लगातार अपने आप को मजबूत कर रही है।
लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों के चयन में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की पसंद नहीं चली थी। सभी नाम ऊपर से तय हुए थे। लेकिन 2027 के विधानसभा चुनाव में निर्णय पूरी तरह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों में होगा। प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया पूरी तरह से वो ही देखेंगे जिसका काफी लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता है। लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश भाजपा में काफी हलचल मची थी। इसको लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्पष्ट कर दिया था कि प्रत्याशी चयन के कारण ही ये परिणाम आए हैं। बीच में केशव प्रसाद मोर्या की जो नाराज़गी चल रही थी वह भी अब दूर होती दिखाई दे रही है। और अब उपमुख्यमंत्री मुख्यमंत्री के साथ ही दिखाई दे रहे हैं। कुल मिलाकर भारतीय जनता पार्टी के लिए 2027 भी आसान ही दिखाई दे रहा है।
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