डिबुलगंज अस्पताल में मंत्री जी का 'दानोत्सव': सवालों के घेरे में सरकारी तंत्र

मंत्री जी के दानोत्सव में कूलर, कुर्सी को लेकर चर्चाओं का दौर जारी रहा, लोगों ने उठाया सवाल

डिबुलगंज अस्पताल में मंत्री जी का 'दानोत्सव': सवालों के घेरे में सरकारी तंत्र

सरकारी अस्पतालों की खुली पोल

अजयंत कुमार सिंह (संवाददाता) 

अनपरा/ सोनभद्र-

ओबरा विधानसभा क्षेत्र के डिबुलगंज स्थित संयुक्त चिकित्सालय में समाज कल्याण राज्य मंत्री संजीव गोंड द्वारा आयोजित एक उद्घाटन समारोह ने क्षेत्र में तहलका मचा दिया है। दरअसल, मंत्री जी ने यहां दो कूलर और दो कुर्सियों का उद्घाटन किया, जो एक स्थानीय राख ट्रांसपोर्टर द्वारा दान किए गए थे।

इस घटना ने सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और राजनीतिक प्रचार के नए तरीकों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि जिस विधानसभा क्षेत्र के सरकारी अस्पताल में मरीजों के बैठने के लिए कुर्सियां तक उपलब्ध न हों और गर्मी से राहत के लिए कूलर भी निजी दान पर निर्भर हों, वहां की स्वास्थ्य व्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है।

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लोगों ने सवाल उठाया कि क्या सरकारी तंत्र इतना भी सक्षम नहीं है कि वह अपने अस्पतालों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करा सके।इस घटना ने एक और विवाद को जन्म दिया है। दान करने वाले राख ट्रांसपोर्टर पर नदी-नालों को पाटकर प्रदूषण फैलाने के गंभीर आरोप हैं। ऐसे में, लोगों का मानना है कि मंत्री जी द्वारा उनके दान का उद्घाटन करना न केवल अनैतिक है, बल्कि सरकारी तंत्र की विश्वसनीयता पर भी सवालिया निशान लगाता है।

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लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि क्या यह 'दान' सरकारी तंत्र का सहयोग है या फिर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का एक प्रयास,अस्पताल के कर्मचारियों ने बताया कि महीनों से इन्वर्टर बैटरी में पानी न होने के कारण बंद पड़ा था, और इस पानी को डालने का खर्च भी उसी राख ट्रांसपोर्टर ने उठाया। इससे अस्पताल की वित्तीय स्थिति और प्रबंधन पर भी सवाल खड़े होते हैं।उद्घाटन समारोह को जिस भव्यता से आयोजित किया गया, उससे लोगों को लगा कि अस्पताल के कायाकल्प के लिए कोई बड़ी योजना शुरू होने वाली है।

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लेकिन जब उन्हें पता चला कि मंत्री जी केवल कूलर और कुर्सियों का उद्घाटन करने आए हैं, तो वे निराश हो गए और तरह-तरह की चर्चाएं करने लगे। लोगों का मानना है कि यह एक राजनीतिक स्टंट था, जिसका मकसद मंत्री जी की लोकप्रियता बढ़ाना था।इस घटना ने सरकारी अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं की कमी और निजी व्यक्तियों के हस्तक्षेप को लेकर स्थानीय लोगों में आक्रोश पैदा कर दिया है। लोग अब सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह सरकारी तंत्र की विफलता है या फिर जनता को राहत पहुंचाने का प्रयास? यह घटना सरकारी तंत्र और राजनीतिक प्रचार के बीच की धुंधली रेखा को भी उजागर करती है।

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