एक बार फिर जंग के मुहाने पर भारत

एक बार फिर जंग के मुहाने पर भारत

भारत एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर है।  ये युद्ध किसी सीमा विवाद की वजह से नहीं बल्कि उस आतंकवाद के खिलाफ होने की अटकलें हैं जो पाकिस्तान से बाबस्ता है।  कश्मीर घाटी के पहलगाम में 26  लोगों की दिन-दहाड़े नृशंस हत्या की वारदात ने भारत को जबरन युद्धोन्मुख किया है।  आसमान में लड़ाकू विमानों की भाग-दौड़  साफ़ दिखाई देने लगी है। हमारे लड़ाकू विमान भी गरज रहे हैं और देश के नेता भी। अब देखना है कि  दोनों के सुर  कब एक होते हैं और बमों की बरसात  कब शुरू होती है।

भारत कृषि प्रधान देश है, युद्ध प्रधान नही।  भारत ने अपनी आजादी से लेकर अब तक जितनी भी जंग लड़ी हैं उनमें शायद एक भी युद्ध ऐसा नहीं है जो भारत ने अपनी तरफ से लड़ा हो। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज के प्रधानमंत्री प्रात: स्मरणीय श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी भी युद्ध के पक्ष में नहीं हैं। सबको पता है कि  जंग से कुछ हासिल नहीं होता। जंग से सिर्फ और सिर्फ बर्बादी होती है। हर जंग में मनुष्यता कराहती है,निर्दोष लोग मारे जाते हैं। फिर भी यदि जंग के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होता तो भारत जंग से पीछे नहीं हटता। आगे भी शायद ऐसा ही हो। मोदी जी ने तो यूक्रेन और रूस की जंग समाप्त करने कि लिए काफी भाग-दौड़ की थी।

बात कोई  चार दशक पुरानी है ,शायद 1984  की ग्वालियर के कैंसर अस्पताल परिसर में माननीय अटलबिहारी की अध्यक्षता में एक कवि सम्मेलन हो रहा था ।  उस कवि सम्मेलन में मै भी एक नवोदित कवि के रूप में मौजूद था ।  उस कवि सम्मेलन में अटल जी ने अपनी चर्चित कविता' हम जंग न होने देंगे ' पढ़ी थी ।  वे जुंग में थे लेकिन कविता आत्मा से पढ़ रहे थे।  उनकी कविता के कुछ अंश आप देखिये - हम   जंग    न    होने    देंगे विश्व  शांति  के  हम  साधक  है ,  जंग  न  होने  देंगे  ! कभी  न  खेतों  मे  फ़िर  खुनी  खाद  फलेगीं, खलिहानों  मे  नहीं  मौत  कि  फसल  खिलेगी
आसमान  फ़िर  कभी  न  अंगारे  उगलेगा, एटम  मे  नागासाकी  फ़िर  नहि  जलेगी, युद्धविहीन  विश्व  का  सपना  भंग  न  होने  देंगे। जंग  न  होने  देंगे।

हथियारों  के  ढ़ेरो  पर  जिनका  है  डेरा, मुँह  में  शांति , बगल  मे  बम, धोके  का  फ़ेरा कफ़न  बेचने  वालों  से  कह  दो  चिल्लाकर दुनियां  जान  गई  है  उनका  असली  चेहरा कामयाब  हो  उनकी  चालें, वह  ढ़ंग  न  होने  देंगे। जंग  न  होने  देंगे। हमें  चाहिए  शांति , ज़िन्दगी  हमको   प्यारी हमें  चाहिए  शांति, सृजन  कि  है  तैयारी हमने  छेड़ी  जंग  भूख  से आगे  आकर हाथ  बँटाए  दूनियां  सारी। हरी - भरी  धरती  को  खुनी  रंग  न  लेने  देन्गे। जंग  न  होने  देंगे। भारत - पाकिस्तान  पडोसी, साथ - साथ रहना  है, प्यार  करे  या  वार  करे , दोनो  को  हि  सहना  है , तीन  बार  लड़  चुके लड़ाई, कितने  महंगा  सौंदा, रुसी  बम  हो  या  अमरीकी , खून  एक  बहना   है जो  हम  पर  गुजरी  बच्चो  के   संग न  होने  देंगे।जंग  न  होने  देंगे।

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अटल जी को इसके बावजूद जंग का समाना करना पड़ा ।  उनके शांति प्रयासों को तत्कालीन पाकिस्तानी प्रशासन ने धता बता दिया था। अटल जी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में पाकिस्तान से जंग हुई और जीती भी गयी।  अटल जी से पहले प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू,लाल बहादुर  शास्त्री, श्रीमती इंदिरा गाँधी  और पंडित अटल बिहारी बाजपेयी ने भी जंग  लड़ी। जंग में पाकिस्तान टूटा और बांग्लादेश बना। 'जंग में हार-जीत होती रहती है किन्तु देश विकास की दौड़ में पिछड़ जाता है। दरअसल जंग  किसी भी लोकतान्त्रिक सरकार का हथियार नहीं होती। जंग तानाशाही प्रवृत्ति के नेतृत्व  का अमोध अस्त्र होता है। मोदी सरकार की नाकामियों और पाकिस्तान की हठधर्मी भावी जंग की आधारशिला हैं।

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जंग के मामले में हम संघ और भाजपा के प्रबल विरोधी होते हुए कविवर पंडित अटल बिहारिके प्रशंसक हैं। अटल जी कवि थे या नहीं ये अलग बात है किन्तु वे बेहतरीन तुकबंद थे और उनका मन कविमन था। लेकिन जब सर पर आगयी तो उनकी सरकार ने भी युद्ध लड़ा ,क्योंकि युद्ध भारत पर थोपा गया था।  इस बार भी युद्ध थोपा जा रहा है। हमारे प्रधानमंत्री  मोदी जी ने भी अटल जी की तर्ज पर पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए कोशिश की थी ,लेकिन उनकी कोशिशें परवान नहीं चढ़ सकीं। वे अटल जी जैसे कवि हृदय नेता नहीं हैं।  उनकी भाषा और कार्य पद्यति अटल जी से भिन्न है। अब उनके सामने भी कोई विकल्प नहीं है जंग का। यदि उन्होंने जंग न लड़ी तो वे राजनीतिक जंग हार जायेंगे। क्योंकि उन्होंने मुसलमानों  के खिलाफ देश में ही नहीं बल्कि  ,दुनिया में भी एक अघोषित ध्रुवीकरण करने की कोशिश की है।

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कोई माने या न माने किन्तु  इस समय देश में सरकार के तमाम फैसलों की वजह से मुस्लिम विरोधी वातावरण है। इस वातावरण को तैयार करने में भाजपा और सत्ता प्रतिष्ठान ने बहुत मेहनत की है। इससे देश की समरसता यानि धर्मनिरपेक्षता खतरे में है लेकिन सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है। सरकार की इसी लापरवाही का नतीजा है कि  देश में पुलवामा के बाद पहलगाम हो गया। खैर जो हुआ सो हुआ। अब आगे भी जो हो वो ठीक ही हो। इस समय मोदी जी की किस्मत है कि आतंकवाद के खिलाफ  फन्हें विश्व व्यापी समर्थन मिल रहा है।  अटल जी के साथ ऐसा नहीं था। जंग कि लिए पहले देश को तैयार किया जाये फिर फौज को ।  फ़ौज तो हमेशा तैयार रहती ही है ,लेकिन जनता नही।  जंग के दौरान देश में सब एकजुट हों ,कोई फिरकापरस्ती न हो ,कोई अनबन न हो। कोई हिन्दू-मुसलमान न हो।कालाबाजारी न हो।   अच्छी बात ये है की पहलगाम हत्याकांड के बाद देश का मुसलमान भी आतकवाद के खिलाफ सड़कों पर हैं।

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