आवास से वंचित गरीब घास फूस की झोपड़ी में 3 बच्चों व बीबी संग व्यतीत कर रहा जीवन

आवास से वंचित गरीब घास फूस की झोपड़ी में 3 बच्चों व बीबी संग व्यतीत कर रहा जीवन

आवास से वंचित गरीब घास फूस की झोपड़ी में 3 बच्चों व बीबी संग व्यतीत कर रहा जीवन


स्वतंत्र प्रभात 
 

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शुकुल बाजार अमेठी-

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 आजाद भारत विकसित भारत की यह तस्वीर देखकर ह्रदय द्रवित हो जाता है। मामला है अमेठी जनपद के विकासखंड शुकुल बाजार के मवैया रहमतगढ़ का जहां मुकेश कुमार कौशल पुत्र बाबूलाल कौशल पत्नी प्रीति कौशल पुत्र नारायण, वशिष्ठ नारायण, अभीष्ट नारायण, के साथ एक टूटी फूटी घास की झोपड़ी में जंगल के किनारे सिवान के बीच रहने को मजबूर है उसके पास अपनी 1 इंच जमीन भी नहीं। ऐसे स्थान पर रहने को मजबूर है जहां ना पीने को पानी है ना आने जाने के लिए रास्ता है

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ना सर के ऊपर छत है घास फूस की झोपड़ी वह भी टूटी-फूटी। जबकि पंचायतों के विकास के लिए पंचायती राज विभाग द्वारा शासन द्वारा सरकार द्वारा गरीबों के उद्धार के लिए अनेकानेक योजनाएं चलती हैं जिसमें प्रधानमंत्री आवास योजना भी है। लेकिन इस गरीब के पास ना आवास है ना गौशाला है ना आने जाने के लिए रास्ता है और ना ही रहने के लिए छत। इन मासूम बच्चों की मानें तो उन्हें यही नहीं पता कि देश ने कितनी तरक्की कर ली है और आखिर पता भी कैसे होगा करोड़ों रुपए के बजट प्रत्येक पंचवर्षीय में खर्च हो जाते हैं और गरीबों के हालात ज्यों के त्यों बने हैं

इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि अधिकारी जमीन पर उतर कर ग्रामों में भ्रमण करके हकीकत को नहीं परखते ऑफिस में बैठकर ही गरीबी और अमीरी की रूपरेखा तय करने वाले आलीशान लग्जरी कारों के मालिक ग्राम विकास अधिकारी खंड विकास अधिकारी और पूर्व प्रधान तथा मौजूदा प्रधान आलीशान बंगलों में रहते हुए मनमाने ढंग से विकास की योजनाएं चला रहे हैं। जबकि गरीब अमीर पात्र अपात्र का चयन अधिकारी और ग्राम प्रधान जनप्रतिनिधि अपने ढंग से करते हैं इनके लिए आदमियों की अर्थव्यवस्था मायने नहीं रखती इनके लिए मायने रखता है चुनावी सियासत और कौन कितना करीबी है तथा कितना धन खर्च कर सकता है।

उन्हीं आदमियों को विकास की सौगाते दी जाती है। अन्यथा आजादी के 73 साल बाद आखिर एक गरीब परिवार पर ग्राम प्रधान ग्राम विकास अधिकारी या जनपद के अन्य बड़े बड़े अधिकारियों की नजर क्यों नहीं पड़ी। यह अकेले मुकेश कौशल की कहानी नहीं है आपको विकासखंड शुकुल बाजार के अंतर्गत कई ग्राम सभाओं में ऐसे गरीब व्यक्ति मिल जाएंगे जो घास फूस की झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं आज तक आवास नहीं मिला जबकि कई पंचवर्षीय बीत गए और हर पंचवर्षीय योजना में ग्राम सभाओं को सैकड़ों कालोनियां मिलती लेकिन यह कॉलोनी मनमाने ढंग से ग्राम प्रधान और अधिकारी अपने चयनित पात्रों तक ही पहुंचाते हैं।

जिसके चलते आजादी के 73 साल बाद भी कई ऐसे परिवार हैं जो आवाज से वंचित हैं जिनके सर पर छत नहीं किसी दूसरे की छत का सरल लिए हैं या फिर घास फूस की झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं। जबकि कुछ ऐसे भी परिवार हैं जिनके घर में परिवार में एक नहीं दो नहीं बल्कि कई लोगों को आवास मिल चुका है यानी आवास का बटवारा भी मनमाने ढंग से किया जाता है।

फिलहाल यह तस्वीर देख कर किसी का भी हृदय द्रवित हो सकता है कि आजाद भारत की तस्वीर है विकसित भारत की तस्वीर है अमेठी की तस्वीर है जिसकी चर्चा भारत ही नहीं दुनिया में होती है क्योंकि अमेठी का प्रतिनिधित्व सांसद स्मृति ईरानी के पहले एक दिग्गज राजनीतिक परिवार के कई सदस्य और दिग्गज नेता कर चुके हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री पद का नेतृत्व करने वाले लोग भी अमेठी से सांसद रह चुके हैं गांधी परिवार का गढ़ रहा अमेठी आज दीदी स्मृति ईरानी का गढ़ बन चुका है।

लेकिन गरीब के हालात ज्यों के त्यों बने हुए हैं।मुकेश के छोटे-छोटे बच्चे कहते हैं रात में जंगली जानवर आसपास बोलते हैं बहुत डर लगता है उसकी बीवी कहती है बरसात में सब कुछ भीग जाता है कैसे जिंदगी जी रहे हैं क्या बताएं और आखिर बच्चों को डर भी क्यों ना लगे झोपड़ी में ना कोई पल्ला है ना दरवाजा झोपड़ी भी जंगल और सिवान के बीच। गांव में भी नहीं इस परिवार के पास 1 इंच जमीन भी नहीं है यह है हमारे आजाद भारत की तस्वीर।

फिलहाल मुकेश को उम्मीद है कि बात जब उच्च अधिकारियों तक पहुंचेगी तो मुझे भी छत नसीब होगी अब देखना यह है अमेठी जिला प्रशासन मुकेश को छत मुहैया करा पाता है या नहीं। फिलहाल एडीओ पंचायत ने बताया कि जांच कराई जाएगी अगर पात्र व्यक्ति है तो आवास मुहैया कराया जाएगा।

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