माँ की ममता:जवान बेटे को किडनी देकर माँ ने बचाई बेटे की जान

मां ने न केवल बेटे को किडनी देकर उसकी जिंदगी बचाई, बल्कि दिन-रात उनकी सेवा करके नई पीढ़ी के लिए उदाहरण पेश किया है।

माँ की ममता:जवान बेटे को किडनी देकर माँ ने बचाई बेटे की जान

स्वतंत्र प्रभात- 
 
गोंडा-सायरुन निशा जी हां यही नाम है एक विधवा लाचार बेबस मां का। उम्र यही कोई 48 वर्ष के आसपास होगी। एक साल से रोजाना 22 साल के जवान बेटे की खिदमत अंजाम दे रही है। आप कह सकते हैं एक मां का फर्ज है वो निभा रही है। बुजुर्गों ने सच कहा है कि दुनिया की सबसे महफूज जगह मां की गोद है। उन बेटे व बहुओं के मुंह पर तमाचा है जो अपने मां-बाप की कद्र नहीं करते। मां अपनी औलाद के लिए अपनी जान तक दे सकती है। इस समय में जब तमाम बेटे अपने मां-बाप की जान लेने पर तुले हों,मारपीट कर रहे हों, घर से निकाल रहे हों, इस युग के बेटों के लिए यह एक जबरदस्त मिसाल है। मां से बड़ा शुभचिंतक कोई अन्य नहीं हो सकता, वजीरगंज थाना क्षेत्र की एक मां ने इस कथन को सच साबित कर दिया है। इस मां ने न केवल बेटे को किडनी देकर उसकी जिंदगी बचाई, बल्कि दिन-रात उनकी सेवा करके नई पीढ़ी के लिए उदाहरण पेश किया है।
 
वजीरगंज थाना क्षेत्र के दुर्जनपुर निवासी मोहम्मद नसीम लंबे समय से बीमार चल रहे थे। एक साल पहले उन्हें डाक्टरों ने किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी थी। लेकिन उस समय घर की माली हालत ठीक न होने से उन्होंने ट्रांसप्लांट नहीं कराया। कुछ महीने से उनकी हालत लगातार बिगड़ रही थी। इसके बाद भी पैसे की तंगी के चलते मोहम्मद नसीम किडनी ट्रांसप्लांट के लिए हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। इस बीच उनकी विधवा मां सायरुन निशा जो गृहणी हैं आगे आई। वह जिद करके बेटे को लखनऊ रेजीडेंसी हास्पिटल खुर्रमनगर रिंगरोड लखनऊ में दिखाने ले गई। जहां चिकित्सकों ने किडनी ट्रांसप्लांट बेहद जरुरी बताया।
 
हाईब्लड प्रेशर के कारण खराब हो गई थी किडनी-
 
वजीरगंज थाना क्षेत्र के दुर्जनपुर निवासी मोहम्मद नसीम एक साल से बीमार चल रहे थे। डाक्टरों ने उन्हें किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी। लेकिन पैसे की तंगी आड़े आ रही थी। इस बीच गांव के प्रधान मोहम्मद इलियास ने गांव के हिंदू और मुसलमान दोनों समुदायों के लोगों से चंदा इकठ्ठा किया और मोहम्मद नसीम की मां आगे आई। उन्होंने डाक्टरों के समक्ष प्रस्ताव रखा कि उनकी एक किडनी निकाल कर बेटे को लगा दें। मां की ममता देख डाक्टरों ने जरुरी जांचे शुरु कीं। मां का ब्लड ग्रुप भी बेटे से मैच कर गया। जिसके बाद बीते 25 मार्च को आपरेशन करके चिकित्सकों ने सायरुन निशा की एक किडनी उसके बेटे के शरीर में ट्रांसप्लांट कर दी।
 
रेजीडेंसी हास्पिटल सीनियर ट्रांसप्लांट सर्जन डा० दीपक दीवान ने बताया कि गोंडा के दुर्जनपुर के मरीज मोहम्मद नसीम की जांच करने पर उनमें क्रानिक किडनी रोग पाया गया। उन्हें रीनल एलोग्राफ्ट ट्रांसप्लांट के लिए भर्ती किया गया। किडनी ट्रांसप्लांट की सर्जरी सफल रही। इस अस्पताल के वरिष्ठ किडनी रोग विशेषज्ञ डा० दीपक दीवान, डा० आलोक पाण्डेय व डा0 राजीव  ने कहा कि 22 साल के मोहम्मद नसीम की किडनी लगातार हाईब्लड प्रेशर के कारण खराब हो गई थी। जिसे ट्रांसप्लांट करना जरुरी हो गया था। अब दोनों की सेहत ठीक है। मां की छुट्टी कर दी गई है, बेटे को 11 अप्रैल को हास्पिटल से डिस्चार्ज किया जायेगा।
 
मां ने कहा बेटे से बड़ा कोई नहीं-
 
मां सायरुन निशा पढ़ी-लिखी नहीं है। वह कहती है कि बेटा कोई गलती करे तो नाराज नही होना चाहिए बल्कि प्यार से उसे समझाना चाहिए, बेटे के सुख-दुख में साथ नहीं छोड़ना चाहिए। वैसे भी यदि हमारे खून देने व किडनी देने से किसी की जिंदगी बचाई जा सकती है तो अपनी जिंदगी दांव पर लगाई जा सकती है। एक साल पहले से ही मेरे बेटे की किडनी खराब थी, लेकिन वो नहीं बदलवा रहा था। अब वो एकदम ठीक हैं।
 

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