भाजपा की शीला मौसी की पहचान

भाजपा की शीला मौसी की पहचान

माँ के बाद रिश्तों में या तो मामा महत्वपूर्ण होते हैं या फिर मौसी। मौसी के गुण माँ से भी ज्यादा होते है।  मौसी जिम्मेदार और चपल होती है, इसलिए हमारे यहां यदि चन्दा कोमामा कहा जाता है तो बिल्ली कोमौसी माना जाता है।  हमारे हमनाम किसान नेता राकेश टिकैत ने ईवीएम को भाजपा की मौसी कहकर इसका महत्व एक बार फिर बढ़ा दिया है। भारत में ईवीएम हमेशा से विवादास्पद रही है ।  इसके   साथ विवाद इसके जन्म से ही जुड़े   हैं ,किन्तु भाजपा के शासन में इसे लेकर विवाद और शंकाएं चरम पर है।  हर छोटे  -बड़े चुनाव के बाद ईवीएम पर ऊँगली उठाई जाती है।  हरियाणा और जम्मू-काश्मीर विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद हालाँकि कांग्रेस ने ईवीएम को लेकर कोई गंभीर बात नहीं कही,लेकिन किसान नेता राकेश टिकैत  ने ईवीएम को भाजपा की मौसी  बताकर एक बार फिर पुराणी और मंद पड़ चुकी बहस को दोबारा ज़िंदा कर दिया है।

आपको  याद  होगा  कि एग्ज़िट पोल से लगा कि हरियाणा में कांग्रेस आराम से सरकार बनाने की ओर बढ़ रही है।  फिर नतीजों वाले दिन रुझान आने शुरू हुए तो भी यही लग रहा था कि कांग्रेस राज्य में सरकार बना रही है, लेकिन दोपहर होते-होते पासा पलट गया और बीजेपी ने पिछली बार से भी बेहतर प्रदर्शन करते हुए अपने दम पर बहुमत हासिल कर लिया। लगातार तीसरी बार हरियाणा में एक ही पार्टी की सरकार होना ऐतिहासिक है। राकेश टिकैत टिकाऊ किसान   नेता है।  उनके पिता भी किसान नेता थे । इस तरह आप उन्हें परिवारवादी किसान नेता कह सकते हैं। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि दिल्ली में हुए आंदोलन के दौरान सभी पार्टी की विचारधारा वाले लोग इसमें जुड़े थे , मगर हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों का गणित समझ नहीं आया।अब यदि मतदाता को ही नतीजे समझ में न आये तो ईवीएम पर सवाल खड़े होना लाजमी है । ये सवाल भी किसी राजनीतिक दल ने नहीं बल्कि किसान नेता कि और से उठाये गए हैं ,इसलिए इहें गंभीरता से लेने कि जरूरत है ,लेकिन इन्हें गंभीरता से लेगा कौन ?

 ईवीएम भाजपा कि मौसी है या नहीं ये तो भाजपा जाने,केंचुआ जाने या टिकैत साहब जाने ।  हम तो इतना जानते हैं कि - ' दाल में  कुछ न कुछ तो काला है ,अन्यथा जो चीज सतह पर दिखाई  दे रहीं थी वो मशीन में क्यों नहीं दिखाई दी ? कांग्रेस कि हवा,कांग्रेस कि आंधी और कांग्रेस कि सुआमी भाजपा कि सुनामी कैसे हो गयी ।  मध्यप्रदेश में भी यही हुआ  और छत्तीसगढ़ में भी ।  राजस्थान में भी कमोवेश वैसे ही नतीजे  मिले  जैसा किभाजपा चाहती थी। राजनीतिक शोले फिल्म के नायकों कि तरह भाजपा के नायकों ने भी कहानी को अप्रत्याशित मोड़ दिया है।

आप मने या न मानें लेकिन मै मानता हूँ कि मौसी आखिर मौसी ही होती है ।  माँ लाख साथ न दे किन्तु मौसी अपने भतीजों को असली मा से ज्यादा दुलार देती है। जब तक भाजपा के सर पर ईवीएम मौसी का पल्लू है तब तक भाजपा भाजपा कोई चुनाव हारने वाली नहीं है, फिर चुनाव किसी छात्र संगठन का हो या विश्वविद्यालय का। शुरू में ईवीएम को लेकर कांग्रेस और दूसरे गैर भजपा दलों ने मामले को सुप्रीम कोर्ट तक घसीटा किन्तु जब बात नहीं बनी तो वे भी ईवीएम को कोसना भूल गए।अब हर कोई ईवीएम से निकले हर जनादेश को सर माथे रख रहे हैं। लेकिन मै उस जमात से हूँ जो हर विवादास्पद मशीन के ऊपर आज भी संदेह करती है। शक करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। जिस दिन शक कि सुई बंद हुई ,उस दिन समझ लीजिये कि हम भी हम नहीं  रहेंगे।

दुनिया के अंग्रेज मौसी को मौसी नहीं बल्कि आंटी कहते हैं ,लेकिन हम तो मौसी को मौसी ही कहते है।  जब तक हमारी मौसी ज़िंदा थीं तब तक हम भी अपने आपको महफूज समझते थे। अब हम भी कांग्रेस कि तरह बिना मौसी वाले है।  कांग्रेस के पास मशीन तो है कजिन नौसी ब्रांड नहीं है । मौसी हम  इंसानों को ही नहीं भगवान जगन्नाथ को भी बहुत प्रिय  होतीं है। पद्म पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जताई. तब जगन्नाथ और बलभद्र अपनी लाडली बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े. इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां सात दिन ठहरे. तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है. नारद पुराण और ब्रह्म पुराण  में भी इसका जिक्र है. मान्यताओं के मुताबिक, मौसी के घर पर भाई-बहन के साथ भगवान खूब पकवान खाते हैं और फिर वह बीमार पड़ जाते हैं. उसके बाद उनका इलाज किया जाता है।

ईवीएम मौसी ने भी पिछले दस साल में भाजपा को बहुत ज्यादा खिला-पिला दिया है ।  अब भाजपा भी बीमार है ।  अब उसके  भी इलाज की जरूरत है ।  जनता भाजपा का इलाज करती और कराती भी है लेकिन ईवीएम मौसी झड़े में कचड़ा फैला देतीं है। देश कि सबसे बड़ी अदालत भी मौसी के बारे में न कुछ कहना चाहती है और न सुनना चाहती है। ऐसे में टिकेत खूब गागरोनी गाते रहें सुनता आखिर कौन है। भाजपा ही नहीं किसी भी राजनीतिक दल या नेता का इलाज कोई डाक्टर नहीं बल्कि जनता ही कर सकती है। हमें उम्मीद है कि एक न एक दिन मौसी का इलाज होगा। तब शायद नतीजे दूसरे तरीके से आने लगें । राजनीती में मौसी भी हैं और फूफा भ।  फूफा के बारे में फिर कभी।

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