संपत्तियों का विध्वंस पर: सुप्रीम कोर्ट ने अखिल भारतीय दिशा-निर्देश जारी किए।
कहा- कार्यपालिका न्यायाधीश नहीं बन सकती।
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अफसर जज नहीं बन सकते। वे तय न करें कि दोषी कौन है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने ये भी कहा कि 15 दिन के नोटिस के बगैर निर्माण गिराया तो अफसर के खर्च पर दोबारा बनाना पड़ेगा।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका आरोपी को दोषी घोषित नहीं कर सकती और उसके घर को ध्वस्त नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान और आपराधिक कानून के तहत आरोपी और दोषी को कुछ अधिकार और सुरक्षा मिली हुई है। राज्य द्वारा इस तरह की मनमानी का लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है तथा इससे सख्ती से निपटा जाना चाहिए।
अदालत ने 15 गाइडलाइंस भी जारी की।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (13 नवंबर, 2024) को निजी संपत्ति, आरोपी व्यक्तियों के घरों के अवैध विध्वंस पर कड़ी फटकार लगाई और कहा कि अवैध विध्वंस के पीड़ितों को मुआवजा दिया जाना चाहिए।
इससे पहले, निर्णय के लिए स्वत: संज्ञान लेते हुए न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने वादा किया था कि वे दोषी अपराधियों को भी उनकी वैध निजी संपत्ति के राज्य प्रायोजित दंडात्मक विध्वंस से बचाएंगे।सर्वोच्च न्यायालय ने 17 सितंबर को एक आदेश में देश भर में अवैध ध्वस्तीकरण पर रोक लगा दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य न्यायिक कार्यों में हस्तक्षेप करके किसी व्यक्ति को न्यायालय में मुकदमा चलाए जाने से पहले ही दोषी ठहराने के लिए न्यायाधीश नहीं बन सकता।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक औसत नागरिक के लिए घर का निर्माण वर्षों की आकांक्षा, सुरक्षा के सपनों का प्रतीक है। अभियुक्तों के निजी घरों को अवैध रूप से गिराना एक मनमानी कार्रवाई है और “जो ताकत है वही अधिकार है” की नीति का खुला प्रदर्शन है।
पीठ ने आगे कहा कि निर्णय का संरक्षण सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण या अनधिकृत संरचनाओं तक विस्तारित नहीं होगा।पीठ ने कहा, "नागरिकों की सुरक्षा के लिए बाध्य कार्यपालिका और उसके पदाधिकारी स्वयं को न्यायाधीश नहीं मान सकते जो किसी आरोपी को दोषी ठहराते हैं और मनमाने, अत्याचारी और भेदभावपूर्ण तरीके से उसके घर और संपत्ति को ध्वस्त कर देते हैं।"
जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि बच्चों, महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों को बेघर नहीं किया जाना चाहिए।” उन्होंने आगे कहा कि “विध्वंस की वीडियोग्राफी की जानी चाहिए और इसकी वैधता को चुनौती दिए जाने की स्थिति में इसे सबूत के तौर पर पेश किया जाना चाहिए।”
सर्वोच्च न्यायालय ने अनधिकृत ढांचों को ध्वस्त करने से पहले उचित प्रक्रिया का पालन करने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए, जिनमें निवासियों को रहने के लिए दूसरा स्थान ढूंढने के लिए 15 दिन का नोटिस देना भी शामिल है । दिशा-निर्देशमें कहा गया है कि-
1. अगर बुलडोजर एक्शन का ऑर्डर दिया जाता है तो इसके खिलाफ अपील करने के लिए वक्त दिया जाना चाहिए।
2. रातोंरात घर गिरा दिए जाने पर महिलाएं-बच्चे सड़कों पर आ जाते हैं, ये अच्छा दृश्य नहीं होता। उन्हें अपील का वक्त नहीं मिलता।
3. हमारी गाइडलाइन अवैध अतिक्रमण, जैसे सड़कों या नदी के किनारे पर किए गए अवैध निर्माण के लिए नहीं है।
4. शो कॉज नोटिस के बिना कोई निर्माण नहीं गिराया जाएगा।
5. रजिस्टर्ड पोस्ट के जरिए कंस्ट्रक्शन के मालिक को नोटिस भेजा जाएगा और इसे दीवार पर भी चिपकाया जाए।
6. नोटिस भेजे जाने के बाद 15 दिन का समय दिया जाए।
7. कलेक्टर और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को भी जानकारी दी जाए।
8. डीएम और कलेक्टर ऐसी कार्रवाई पर नजर रखने के लिए नोडल अफसर की नियुक्ति करें।
9. नोटिस में बताया जाए कि निर्माण क्यों गिराया जा रहा है, इसकी सुनवाई कब होगी, किसके सामने होगी। एक डिजिटल पोर्टल हो, जहां नोटिस और ऑर्डर की पूरी जानकारी हो।
10. अधिकारी पर्सनल हियरिंग करें और इसकी रिकॉर्डिंग की जाए। फाइनल ऑर्डर पास किए जाएं और इसमें बताया जाए कि निर्माण गिराने की कार्रवाई जरूरी है या नहीं। साथ ही यह भी कि निर्माण को गिराया जाना ही आखिरी रास्ता है।
11. ऑर्डर को डिजिटल पोर्टल पर दिखाया जाए।
12. अवैध निर्माण गिराने का ऑर्डर दिए जाने के बाद व्यक्ति को 15 दिन का मौका दिया जाए, ताकि वह खुद अवैध निर्माण गिरा सके या हटा सके। अगर इस ऑर्डर पर स्टे नहीं लगाया गया है, तब ही बुलडोजर एक्शन लिया जाएगा।
13. निर्माण गिराए जाने की कार्रवाई की वीडियोग्राफी की जाए। इसे सुरक्षित रखा जाए और कार्रवाई की रिपोर्ट म्युनिसिपल कमिश्नर को भेजी जाए।
14. गाइडलाइन का पालन न करना कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी। इसका जिम्मेदार अधिकारी को माना जाएगा और उसे गिराए गए निर्माण को दोबारा अपने खर्च पर बनाना होगा और मुआवजा भी देना होगा।
15. हमारे डायरेक्शन सभी मुख्य सचिवों को भेज दिए जाएं।
कोर्ट ने कहा कि आरोपी के मामले में पूर्वाग्रह में ग्रसित नहीं हो सकते। सरकारी ताकत का बेवजह इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। कोई भी अधिकारी मनमाने तरीके से काम नहीं कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने कवि प्रदीप की एक कविता का हवाला दिया और कहा कि घर सपना है, जो कभी न टूटे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में हमने सभी दलीलों को सुना है। लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर विचार किया। न्याय के सिद्धांतों पर विचार किया। इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण, जस्टिस पुत्तास्वामी जैसे फैसलों में तय सिद्धान्तों पर विचार किया। सरकार की जिम्मेदारी है कि कानून का शासन बना रहे, लेकिन इसके साथ ही नागरिक अधिकारों की रक्षा संवैधानिक लोकतंत्र में जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मनमाने तरीके से काम करने वाले अधिकारियों को इस काम के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। अधिकारियों को यह दिखाना होगा कि संरचना अवैध है और अपराध को कम करने या केवल एक हिस्से को ध्वस्त करने की कोई संभावना नहीं है। कोर्ट ने कहा कि नोटिस में बुलडोजर चलाने का कारण, सुनवाई की तारीख बताना जरूरी होगी। इस कार्रवाई के लिए 3 महीने में एक डिजिटल पोर्टल भी बनाया जाएगा जिसमें नोटिस की जानकारी और संरचना के पास सार्वजनिक स्थान पर नोटिस प्रदर्शित करने की तारीख बताई गई है। कोर्ट ने साफ कहा कि अगर अवैध तरीके से इमारत गिराई गई है तो अधिकारियों पर अवमानना की कार्रवाई की जाएगी और इसके लिए उन्हें हर्जाना भी देना होगा। नोटिस में अधिकारियों को बुलडोजर एक्शन की वजह का भी जिक्र करना होगा। किसी भी इमारत को लेकर तब गिराया जा सकता है जब अनधिकृत संरचना सार्वजनिक सड़क/रेलवे ट्रैक/जल निकाय पर हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुद्दा आपराधिक न्याय प्रणाली में निष्पक्षता से संबंधित है, जो यह अनिवार्य करता है कि कानूनी प्रक्रिया आरोपी के अपराध के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित न हो। ऐसे मामले में आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए या नहीं? ऐसे तमाम सवालों पर हम फैसला देंगे, क्योंकि यह अधिकार से जुड़ा मसला है। सुप्रीम कोर्ट राजस्थान और मध्य प्रदेश में राज्य सरकार द्वारा किए गए मकानों को गिराए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। दोनों मामलों में, मुस्लिम किरायेदारों द्वारा कथित तौर पर अपराध किए जाने के बाद मकानों को गिराया गया, जिससे सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ।
इन आवेदनों को जमीयत-उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर याचिका के साथ टैग किया गया था, जिसमें 2022 में दिल्ली के जहांगीरपुरी में किए गए विध्वंस को चुनौती दी गई थी। तब से, अन्य राज्यों में किए गए विध्वंस अभियानों को भी चुनौती दी गई है। इन राज्यों में स्थानीय कानून विध्वंस के बारे में यही कहते हैं।
इसके पहले सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि -
-17 सितंबर : सुप्रीम कोर्ट ने 17 सितंबर को कहा था 1 अक्टूबर तक बुलडोजर एक्शन नहीं होगा। अगली सुनवाई तक देश में एक भी बुलडोजर कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। जब केंद्र ने इस ऑर्डर पर सवाल उठाया कि संवैधानिक संस्थाओं के हाथ इस तरह नहीं बांधे जा सकते हैं तब जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा- अगर कार्रवाई दो हफ्ते रोक दी तो आसमान नहीं फट पड़ेगा।
-12 सितंबर: सुप्रीम कोर्ट कहा था कि बुलडोजर एक्शन देश के कानूनों पर बुलडोजर चलाने जैसा है। मामला जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच में था। दरअसल, गुजरात में नगरपालिका की तरफ से एक परिवार को बुलडोजर एक्शन की धमकी दी गई थी। याचिका लगाने वाला खेड़ा जिले के कठलाल में एक जमीन का सह-मालिक है।
-2 सितंबर: कोर्ट ने कहा था कहा था कि भले ही कोई दोषी क्यों न हो, फिर भी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना ऐसा नहीं किया जा सकता। हालांकि पीठ ने यह भी स्पष्ट किया था कि वह सार्वजनिक सड़कों पर किसी भी तरह अतिक्रमण को संरक्षण नहीं देगा।
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