सफलता में उम्र कोई मायने नहीं रखता

प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती 

सफलता में उम्र कोई मायने नहीं रखता

मन में सच्ची लगन हो तो मंजिल दूर नहीं होती, सफलता जरूर मिलती है। उम्र कोई मायने नहीं रखती। जी हां ऐसा ही कर डाला 18 वर्षीय शतरंज खिलाड़ी युवा डी गुकेश ने. भारत के डी गुकेश इंडिया के यंगेस्ट नम्बर 1 चैस प्लेयर बन गए है। उन्होंने चीन के खिलाड़ी को हरा, ये खिताब अपने नाम किया। गुनेश डी का पूरा नाम डोमाराजू गुकेश है और वह चेन्नई के रहने वाले हैं. गुनेश का जन्म चेन्नई में 7 मई 2006 को हुआ था. गुकेश के पिता डॉक्टर हैं तो वहीं मां पेश से माइक्रोबायोलोजिस्‍ट हैं. गुकेश ने 7 साल की उम्र में ही शतरंज खेलना शुरू कर दिया था. इसके बाद उन्हें शुरू में भास्कर ने कोचिंग दी. इसके बाद विश्वनाथन आनंद ने उन्हें चेस के खेल की जानकारी देने के साथ उन्हें कोचिंग दी।
 
साल 2015 में गुकेश ने एशियाई स्कूल शतरंज चैंपियनशिप में अंडर-9 के खिताब जीतने के साथ कैंडिडेट मास्टर बने थे. गुकेश ने अब तक 5 गोल्ड एशियाई यूथ चैंपियनशिप जीती हैं. साल 2019 में गुकेश ने अपने नाम एक बड़ा कारनामा दर्ज कराया जब वह भारत के सबसे युवा वह वर्ल्ड के दूसरे सबसे युवा ग्रैंडमास्टर बने थे।
 
सिंगापुर में चीनी खिलाड़ी डिंग लीरेंग को हरा करके विश्व रिकॉर्ड बनाया। भारत में अनेकों प्रतिभाशाली शतरंज खिलाड़ी हुए विश्वनाथन आनंद ने विश्व मे अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और सबसे कम उम्र में डी गुकेश ने भारत का नाम रोशन किया। बचपन में ही गुकेश ने यह ठाना था, कि मुझे सबसे कम उम्र का शतरंज खिलाड़ी बनना है। शतरंज की शुरुआत भारत में छठी  सातवीं सदी के करीब माना जाता है। भारत में अनेकों प्रतिभाशाली शतरंज खिलाड़ी हुए जैसे कोनेरू हम्पी, आर प्रज्ञानंदा, वैशाली, दिव्या देशमुख, डी हरिका आदि। विश्वनाथन आनंद 1988 में पहले विश्व की ग्रैंड मास्टर बने।
 
खेल जगत में अनेकों प्रतिभाशाली खिलाड़ी हुए। सचिन तेंदुलकर 16 वर्ष की उम्र में क्रिकेट के खेल में अपनी प्रतिभा का परचम लहराया और वही 13 वर्षीय वैभव सूर्यवंशी जिन्होंने सच्ची लगन और प्रतिभा के बल पर अपनी यह कर दिखाया कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। माता पिता के सहयोग की भी दाद देनी होगी। उनके सकारात्मक सहयोग के कारण बच्चों ने यह सफलता हासिल की।
 
मनोज कौशल 

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