भाषा विवाद के तवे पर राजनैतिक रोटियां 

भाषा विवाद के तवे पर राजनैतिक रोटियां 

क्या आप बता सकते हैं कि आप किस भाषा में हंसते हैं या किस भाषा में रोते हैं? मनुष्य की ये भावनाएं समस्त पृथ्वी पर एक ही तरह व्यक्त की जाती हैं। आप जिस भाषा को नहीं भी समझते परन्तु सामने वाले मनुष्य को हंसता हुआ या रोता हुआ देखकर आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि  उस समय उसकी मनोदशा कैसी है। प्राकृतिक रूप से मनुष्य की इन भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए किसी भाषा की आवश्यकता नहीं पड़ती। परन्तु सभी भावनाएं ऐसी नहीं होती कि उन्हें चेहरे के भावों द्वारा व्यक्त किया जा सके। इसीलिए हमें किसी विशिष्ट भाषा की आवश्यकता पड़ती है। 

भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है। यह वह साधन है जिसके द्वारा हम बोलकर या लिखकर अपने विचार प्रकट कर सकते हैं। दूसरों के समक्ष अपनी भावनाएं प्रकट कर सकते हैं तथा दूसरों की भावनाओं को समझ सकते हैं। भाषा केवल संवाद का साधन नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा और समाज के मूल्यों का भी प्रतिबिंब होती है। यह न केवल हमारे अस्तित्व को परिभाषित करती है, बल्कि हमें समाज से जोड़ने का कार्य भी करती है। विभिन्न भाषाओं का ज्ञान व्यक्ति की विद्वता को दर्शाता है, और इसे एक महान उपलब्धि माना जाता है।

हर भाषा का अपना सौंदर्य होता है, जो उसके बोलने वालों और उसे समझने वालों के व्यवहार में झलकता है। किसी भाषा का ज्ञान होना गर्व की बात होती है। जो व्यक्ति जितनी अधिक भाषाओं का ज्ञान रखता है, वह उतना ही बड़ा विद्वान माना जाता है। लेकिन जब भाषा को विवाद या टकराव का माध्यम बना दिया जाता है, तो यह चिंताजनक हो जाता है। भाषा का उद्देश्य लोगों को जोड़ना होता है, न कि उन्हें अलग करना।

फिर वह कौन सा कारण है, जिसके लिए भाषा को विवाद या झगड़े का माध्यम बनाया जा रहा है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने हिंदी भाषा को लेकर जो विवाद खड़ा किया, वह इसी राजनीति का एक और उदाहरण है। यह प्रश्न उठता है कि क्या वास्तव में यह विवाद तमिल भाषा के सम्मान की रक्षा के लिए है, या फिर इसके पीछे कोई और उद्देश्य छिपा है? क्यों व्यर्थ में भाषा विवाद को हवा देकर वे अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने का काम कर रहे हैं? आखिर इससे वे क्या हासिल करना चाहते हैं?

हर भाषा अपनी संस्कृति, परंपराओं और पहचान को संजोए रखती है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में भाषाई विविधता हमारी ताकत है। देश में 22 अनुसूचित भाषाएँ हैं और सैकड़ों अन्य भाषाएँ और बोलियाँ प्रचलित हैं। हिंदी देश की राजभाषा है, लेकिन यह किसी भी अन्य भाषा के अस्तित्व को खतरे में डालने के लिए नहीं बनी है। संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया, लेकिन इसके साथ-साथ यह भी प्रावधान किया गया कि राज्यों को अपनी क्षेत्रीय भाषाओं को संरक्षित और विकसित करने की पूरी स्वतंत्रता होगी।

ऐसे में जब हिंदी भाषा को जबरन किसी पर थोपने की बात की जाती है, तो यह एक मिथक ही प्रतीत होता है। सरकारें बार-बार यह स्पष्ट कर चुकी हैं कि हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में लागू करने की कोई मंशा नहीं है। इसके बावजूद, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री द्वारा बार-बार हिंदी के विरोध में बयान देना केवल राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा लगता है।

भारत में भाषाई विवाद कोई नई बात नहीं है। 1960 के दशक में जब हिंदी को राजभाषा बनाने का प्रयास किया गया, तब दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु में इसका भारी विरोध हुआ। यह विरोध इतना तीव्र था कि इसने द्रविड़ राजनीति को एक नई दिशा दी। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) जैसी पार्टियों ने इस मुद्दे को भुनाकर अपनी राजनीतिक जड़ें मजबूत कीं।

आज भी यही रणनीति अपनाई जा रही है। तमिलनाडु में हिंदी विरोध का मुद्दा एक भावनात्मक विषय बना दिया गया है। एम.के. स्टालिन इसे समय-समय पर उछालकर अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहते हैं। वे हिंदी भाषा के प्रसार को तमिल संस्कृति के लिए खतरा बताकर राज्य के लोगों की भावनाओं को भड़काते हैं, जिससे उनकी पार्टी को राजनीतिक लाभ मिलता है।

एम.के. स्टालिन और उनकी पार्टी का आरोप है कि केंद्र सरकार हिंदी को जबरन थोपने का प्रयास कर रही है। लेकिन वास्तविकता इससे काफी अलग है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में त्रिभाषा सूत्र की बात कही गई है, जिसका अर्थ है कि छात्रों को कम से कम तीन भाषाएँ सीखने का अवसर मिलना चाहिए। इसमें किसी भी भाषा को अनिवार्य नहीं किया गया है। राज्यों को पूरी स्वतंत्रता दी गई है कि वे अपनी क्षेत्रीय भाषा को प्राथमिकता दें। 

 संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) परीक्षाएँ अंग्रेजी और हिंदी दोनों में उपलब्ध हैं, और हाल के वर्षों में क्षेत्रीय भाषाओं में भी इनका विस्तार हुआ है। संविधान के अनुसार कोई भी भारतीय नागरिक अपनी पसंद की भाषा में संवाद कर सकता है। हिंदी केवल राजभाषा है, न कि राष्ट्रीय भाषा।  ऐसे में यह दावा करना कि हिंदी को जबरन थोपा जा रहा है, वास्तविकता से परे लगता है। 

तमिल एक अत्यंत समृद्ध और प्राचीन भाषा है। यह दुनिया की सबसे पुरानी जीवित भाषाओं में से एक मानी जाती है और इसे शास्त्रीय भाषा का दर्जा भी प्राप्त है। तमिल साहित्य, संस्कृति और इतिहास अत्यंत गौरवशाली हैं। तमिल भाषा की मजबूत स्थिति को देखते हुए यह कहना कि हिंदी के कारण इसका अस्तित्व खतरे में है, एक अनुचित भय पैदा करने जैसा है। 

आज की दुनिया में बहुभाषावाद एक ताकत है। जो व्यक्ति जितनी अधिक भाषाओं का ज्ञान रखता है, उसकी ज्ञान की सीमा उतनी ही विस्तृत होती है। तमिल भाषियों को हिंदी या अन्य भाषाएँ सीखने से परहेज नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास में सहायक होगा।

जब दुनिया वैश्वीकरण की ओर बढ़ रही है, तब भारत में भाषा के नाम पर विभाजन दुर्भाग्यपूर्ण है। हमें यह समझना होगा कि कोई भी भाषा दूसरी भाषा की दुश्मन नहीं होती। भाषाएँ एक-दूसरे को समृद्ध करती हैं। हिंदी का विरोध करने से तमिलनाडु को क्या लाभ मिलेगा? क्या इससे राज्य की प्रगति तेज होगी? क्या इससे बेरोजगारी कम होगी? क्या इससे आर्थिक स्थिति सुधरेगी? उत्तर स्पष्ट है—नहीं। यह केवल एक भावनात्मक मुद्दा है, जिसका राजनीतिक लाभ उठाया जा रहा है।

भाषा विवाद का समाधान टकराव में नहीं, बल्कि समावेशी दृष्टिकोण अपनाने में है। छात्रों को अपनी मातृभाषा में पढ़ने का अवसर मिलना चाहिए, लेकिन उन्हें अन्य भारतीय भाषाओं का भी ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। 

केंद्र और राज्य सरकारों को भाषा के मुद्दे पर टकराव की बजाय संवाद और सहयोग का रास्ता अपनाना चाहिए। भाषा को राजनीति से अलग रखना होगा। इसे केवल चुनावी लाभ का साधन नहीं बनने देना चाहिए।

भारत की ताकत उसकी विविधता में है, और भाषाई विविधता इसका महत्वपूर्ण हिस्सा है। हिंदी हो या तमिल, दोनों ही भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं। किसी भी भाषा का विरोध करना, उसे खतरा बताना या उसके खिलाफ आंदोलन करना देश की एकता और अखंडता के लिए उचित नहीं है।

एम.के. स्टालिन जैसे नेता यदि वास्तव में तमिलनाडु की प्रगति चाहते हैं, तो उन्हें भाषा विवाद से ऊपर उठकर विकास के मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए। शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, और आर्थिक सुधार जैसे विषय अधिक महत्वपूर्ण हैं। भाषा को विवाद का नहीं, बल्कि सेतु का माध्यम बनाना चाहिए ताकि भारत और अधिक सशक्त हो सके।

About The Author

Post Comment

Comment List

No comments yet.

अंतर्राष्ट्रीय

जाफर एक्सप्रेस हाईजैकिंग के बाद, एक के बाद एक आतंकी हमलो से हिली सरकार, पाकिस्तान में गृहयुद्ध के हालात जाफर एक्सप्रेस हाईजैकिंग के बाद, एक के बाद एक आतंकी हमलो से हिली सरकार, पाकिस्तान में गृहयुद्ध के हालात
जाफर एक्सप्रेस हाईजैकिंग- पाकिस्तान में हिंसा अपने चरम पर पहुंच चुकी है। जाफर एक्सप्रेस हाईजैकिंग के बाद तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP)...

Online Channel