नारी की यात्रा: प्राचीन गौरव से आधुनिक नवजागरण तक
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नारी, वह अनमोल कृति है जो सृष्टि की जननी, संस्कृति की संरक्षिका और समाज के अस्तित्व की अमर धुरी है। भारतीय परंपरा में नारी को मात्र देवी के रूप में नहीं, बल्कि जीवन की चिरंतन चेतना और सृजनशील ऊर्जा के प्रतीक स्वरूप पूजा जाता है। वह विचार मात्र नहीं, अपितु समाज के उत्कर्ष, विकास और प्रगति का अमिट स्तंभ है। उसकी कोमलता में करुणा का निर्झर बहता है, तो उसकी अडिग दृढ़ता में असीम साहस की अग्नि प्रज्वलित रहती है। नारी अपने अनुपम गुणों से समाज को संवेदनशीलता, सहिष्णुता और मानवीय मूल्यों के प्रकाश से आलोकित करती है।
प्राचीन भारत में नारी का दिव्य और सम्मानित स्थान
प्राचीन भारत में नारी को उच्चतम सम्मान और गरिमा का पद प्राप्त था। वैदिक युग में स्त्रियाँ विद्या, कला, विज्ञान, और राजनीति के विविध क्षेत्रों में निष्णात थीं। गार्गी की प्रखर तर्कशक्ति, मैत्रेयी की वैदिक विद्वत्ता और अपाला के अद्वितीय ज्ञान ने समाज के बौद्धिक परिदृश्य को एक नवीन दिशा प्रदान की। उस काल में नारी स्वतंत्र विचारों की धनी, आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी थी। उसकी उपस्थिति केवल परिवार तक सीमित न होकर समाज के हर निर्णायक मंथन में मुखर थी।
स्त्रियाँ यज्ञों, सभाओं और शास्त्रार्थों में सक्रिय भागीदारी निभाती थीं, जो उनके बौद्धिक अधिकारों और सामाजिक गरिमा के जीवंत प्रमाण थे। परंतु समय के प्रवाह के साथ सामाजिक संरचना में परिवर्तन आया, और रूढ़ियों की जकड़न ने नारी के अधिकारों और स्वतंत्रता को सीमित कर दिया। पितृसत्तात्मक व्यवस्थाओं और परंपरागत बंधनों ने नारी की स्वतंत्र पहचान को बाधित किया।
आधुनिक युग में नारी: नवजागरण और सशक्तिकरण की ओर
समय के चक्र के साथ, नारी ने पुनः अपनी अंतर्निहित शक्ति और अदम्य साहस को स्थापित किया है। आज की नारी मात्र घरेलू सीमाओं में बंधी नहीं है; वह राजनीति, विज्ञान, खेल, व्यापार, और कला के हर आयाम में अपनी अमिट छाप अंकित कर रही है। इंदिरा गांधी की करिश्माई नेतृत्व क्षमता, किरण बेदी का निर्भीक साहस, कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स की आकाशगामी उपलब्धियाँ, तथा पी.वी. सिंधु और मिताली राज की खेल जगत में गौरवशाली विजय इस सत्य के प्रमाण हैं कि नारी शक्ति असीमित है।
आधुनिक राजनीति में द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति पद पर आरूढ़ होना और सुमित्रा महाजन की प्रखर संसदीय नेतृत्व क्षमता यह दर्शाती है कि नारी अब सीमाओं को लांघ चुकी है और समाज के हर निर्णायक क्षेत्र में प्रभावी भूमिका निभा रही है। आज की नारी वैज्ञानिक अनुसंधान, उद्यमिता, पर्यावरण संरक्षण, तकनीकी नवाचार, और वैश्विक कूटनीति में भी अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित कर रही है।
नारी: संस्कारों की चिरंतन वाहक और समाज की आत्मा
नारी शक्ति का महत्व केवल उसकी व्यक्तिगत उपलब्धियों में ही नहीं निहित है, अपितु वह समाज में सहिष्णुता, करुणा, समानता और प्रेम के चिरस्थायी मूल्यों की वाहक है। एक सशक्त नारी परिवार की रीढ़ होती है और उसकी शिक्षित सोच पूरे समाज को प्रगति के पथ पर अग्रसर करती है। नारी की शिक्षा, स्वास्थ्य, और आर्थिक स्वावलंबन किसी भी राष्ट्र के सतत विकास का मूलाधार हैं।
वह संस्कारों की आधारशिला है, जो परिवार और समाज के मध्य संतुलन और सामंजस्य स्थापित करती है। नारी में मातृत्व की कोमलता के साथ ही नेतृत्व की अडिग दृढ़ता समाहित होती है। वह प्रेम, अनुशासन, त्याग और धैर्य के अद्भुत समन्वय का मूर्त स्वरूप है, जो समाज के सर्वांगीण विकास का आधार है।
नारी संघर्ष: चुनौतियाँ और उनकी अविचल विजय
आज की नारी को अनेक विकट चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे लिंग भेदभाव, उत्पीड़न, शिक्षा का अभाव और आर्थिक पराधीनता। परंतु नारी शक्ति का मूल मंत्र है - साहस, आत्मबल और आत्मनिर्भरता। नारी में वह अद्वितीय ज्वाला है, जो विषम परिस्थितियों को भी अपने धैर्य और प्रखरता से परास्त कर देती है। समाज में जागरूकता और संवेदनशीलता का संचार कर इन बाधाओं का उन्मूलन संभव है। घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर उत्पीड़न, और बाल विवाह जैसी कुप्रथाएँ आज भी समाज के कुछ कोनों में व्याप्त हैं, जिनसे संघर्ष हेतु कठोर विधियों के साथ-साथ जन-जागरण भी अनिवार्य है।
नारी सशक्तिकरण: एक व्यापक सामाजिक संकल्प
नारी सशक्तिकरण केवल सरकारी अभियानों जैसे 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' तक सीमित नहीं रह सकता। यह एक व्यापक सामाजिक संकल्प है, जो तभी साकार होगा जब समाज की सोच में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा। नारी को उसकी प्रतिभा और क्षमता के अनुरूप समान अवसर और प्रतिष्ठा प्रदान करना आवश्यक है। शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के क्षेत्र में समानता ही नारी सशक्तिकरण का सच्चा प्रतिरूप है।
साथ ही, समाज में लैंगिक समानता की चेतना जाग्रत करना और पारंपरिक बंधनों को तोड़ना अनिवार्य है। महिलाओं को उद्यमिता, नेतृत्व और नवाचार के क्षेत्रों में प्रोत्साहित करना सशक्तिकरण के मूल स्तंभ हैं। नारी के अधिकारों की सुरक्षा हेतु विधायी सुधार, सुदृढ़ सुरक्षा उपाय और सामाजिक सहयोग तंत्र की आवश्यकता है।
नारी शक्ति का सम्मान - प्रगति का सत्य पथ
नारी शक्ति मात्र एक विचारधारा नहीं, बल्कि समाज की चेतना है। नारी के बिना समाज अधूरा और राष्ट्र अपूर्ण है। नारी का सम्मान और सशक्तिकरण न केवल उसका मौलिक अधिकार है, बल्कि समाज का परम कर्तव्य भी है। जब नारी सशक्त होगी, तभी समाज और राष्ट्र उन्नति के शिखर पर आरूढ़ होंगे। नारी शक्ति के मर्म को आत्मसात करना और उसे जीवन में उतारना ही वास्तविक प्रगति का प्रतीक है। नारी का सम्मान समाज के नैतिक मूल्यों की असली पहचान है।
नारी सशक्तिकरण का उद्देश्य केवल अधिकार प्रदान करना नहीं, बल्कि उसकी गरिमा, स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को सुनिश्चित करना है। नारी के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, शिक्षा और समान अवसर प्रदान कर हम एक समृद्ध, न्यायपूर्ण और प्रबुद्ध समाज के निर्माण की आधारशिला रख सकते हैं। जब नारी आगे बढ़ेगी, तभी उज्ज्वल और प्रगतिशील भविष्य की परिकल्पना साकार होगी।
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