सोना ले  जा रे, चांदी ले जा रे

सोना ले  जा रे, चांदी ले जा रे

दुनिया में सोना और चांदी हिरणी की तरह कुलांचें भर रहा है। कुलांचे इसलिए भर रहा है क्योंकि दुनिया का वातावरण कुलांचें भरने के अनुरूप है। यदि सोना और चांदी जैसी धातुएं कुलांचें भरतीं हैं तो समझ जाइये कि विश्वव्यापी मंदी आपके घर के बाहर दस्तक दे रही है। जो समझदार हैं वे इस दस्तक को पहचानते हैं ,वे संकटकाल के लिए सोना और चांदी जैसी धातुएं ख़रीदकर रख लेते  है। संकट काल में एक सोना और चंडी ही है जो आपकी मदद कर सकता है।

आठवें दशक के आरम्भ में एक फिल्म आयी थी ' मेरा गांव-मेरा देश '।   इसी फिल्म का एक गीत था-
सोना ले जा रे चाँदी ले जा रे, ओ पैसा ले जा रे ओ दिल कैसे दे दू मै जोगी के बड़ी बदनामी होगी
अब दुनिया में योगी की बदनामी तो जो होना थी  ,वो हो ही चुकी है ।  जोगी राज में पहली बार होली पर मस्जिदों को कपडे से ढाँका गया।  लेकिन बात सोने-चांदी की हो रही है। समय सोना और चांदी के भावों में बढ़ोतरी हो रही है. इस कारण दोनों के भावों एक बार फिर अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं. विशेषज्ञों  के अनुसार मार्केट में दोनों कीमती धातुओं की मांग पहले के मुकाबले  दो गुना हो गई है।

महंगी धातुओं के दाम तभी बढ़ते हैं जब दुनिया में मंदी की आहटें सुनाई देने लगती हैं। जाहिर है कि इस बार भी सोना-चांदी यही संकेत दे रहा है।  दुनिया ने २० वीं सदी के आरम्भ से लेकर अब तक अनेक अवसरों पर विश्वव्यापी मंदी का सामना किया है ,1928  से 1934  की मंदी  हो या 1982 ,1991  और 2008  की विश्वव्यापी मंदी ने दुनिया की कमर तोड़ दी थी और इससे उबरने में वर्षों लग  जाते हैं। मंदी के दौर में वे देश और वे लोग ही टिक पाए जिनके पास सोना और चांदी थी ।

दुनिया में जब-जब मंदी आती है तब-तब फांसीवाद बढ़ता है ,दुनिया युद्ध की आग में झुलसने लगती है। इस समय दुनिया में अनेक देशों में युद्ध चल रहे हैं।  रूस यूक्रेन से लड़ रहा है। इस्राइल फिलिस्तीन और लेबनान से लड़ रहे हैं। अमेरिका हो या रूस या भारत या चीन  सभी देशों में फांसीवाद और पूंजीवाद बढ़ता जा रहा है। मंदी आती है तो अपने पीछे बर्बादी लेकर आती है। औद्योगिक विकास रुक जाता है ,बेरोजगारी बढ़ती है। कृषि उत्पादन घटता है। बैंक दीवालिया होने लगते  हैं। हमारा इतिहास बताता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान दुनिया में करोड़ों लोगों कीनौकरी चलाई गयी था। मंदी अपने साथ शस्त्रों की होड़ लेकर आती है।

 भारतीय परिवार हमेशा से संस्कृति से बंधे रहे हैं और चीनी परिवारों का भी कुछ ऐसा ही हाल रहा है। और सबसे बड़ी वजह यही है कि ये दोनों देश सोना खपत करने वाले देशों में अकसर अव्वल रहते हैं। एक बार फिर से चीन और भारत सोना खपत करने वाले देशों में टॉप-2 स्थान में रहे हैं।आपको हर घर में तोला-दो तोला सोना तो आसानीसे मिल जाएगा।चीन  में दो साल पहले 630  तन सोना खप गया जबकि इस मामले में भारत दूसरे स्थान पर रहा। भारत में 575  टन तक सोना खप गया था।

सोने की खपत के मामले में दुनिया पर दादागिरी करने वाले अमेरिका का का नंबर तीसरा है। स्वर्ण के प्रति हमारा आकर्षण सनातनी है।  त्रेता में रामचंद्र के बनवास के समय भी सीता  जी ने जिस हिरण की मांग की थी वो भी सोने का ही था। आज भी हर विवाह में सोना-चांदी का आभूषण अनिवार्य है। सगाई भी सोने कि अंगूठी पहनकर होती है।

सोना शक्ति का प्रतीक है। हितोपदेश की कथाओं में कहा गया है की यदि पोटली में रखकर सोना टांग दिया जाये तो चूहा  बार-बर छलांग लगा सकता है। इसलिए मै कहता हूँ की दुनिया मंदी के गर्त में जाती दिखाई दे रही है। ऐसे में आप सोना-चांदी खरीदने का मौक़ा हाथ से न जाने दें।

1980  में जब मेरी शादी हुई थी तब सोने का भाव शायद 1300  रुपया प्रति 10  ग्राम था और जब मेरी बेटी की शादी 2005  में हुई तब सोने का भाव 6000  रूपये  प्रति 10  ग्राम के आसपास था। आज यही सोना 90  हजार रूपये तोला [ 10  ग्राम ] होने को आतुर है ।  यानी दुनिया में पिछले सौ साल में राजनीती में, समाज में ,चरित्र में गिरावट आयी लेकिन सोना  और चांदी लगातार ऊपर की और उठते रहे। तो जाइये ! जितना सोना-चांदी खरीद सकते हैं ,जाकर खरीद लीजिये ,क्योंकि कोई भी सरकार मंदी के दौर में आपकी मदद नहीं कर सकती।

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