कम मतदान : गर्मी का असर या नेताओं से नाराज़गी 

कम मतदान : गर्मी का असर या नेताओं से नाराज़गी 

  - जितेन्द्र सिंह पत्रकार 
 
 
देश में लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण का मतदान हो चुका है और दूसरे चरण का मतदान होना है। जिला प्रशासन, केन्द्र और राज्य सरकारें तथा तमाम समाजसेवी संगठन जनता से आग्रह कर रहे हैं कि अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करें। क्यों कि यही समय है जब हम अपनी मनपसंद सरकार चुन सकते हैं। लेकिन यदि वोट प्रतिशत गिरा तो ऐसे में कोई भी सरकार बन सकती है। हमें अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। पहले चरण में 102 संसदीय सीटों पर मतदान पूर्ण हो चुका है 
 
लेकिन यदि पिछले चुनाव से तुलना की जाए तो इस बार पांच से नौ फीसदी मतदान कम हुआ है। अब सवाल उठता है ऐसा क्यों। क्या यह अत्यधिक गर्मी का असर है या नेताओं के प्रति लोगों के रुझान में कमी आ रही है। इसमें दोनों तरह की बातें निकल कर सामने आ रही हैं। एक तो मतदान का समय ऐसा है जब उत्तर भारत समेत देश के तमाम हिस्सों में प्रचंड गर्मी पड़ रही है। और अपने स्वास्थ्य कारणों से व्यक्ति घर से बाहर नहीं निकल रहा है। यहां युवा मतदाताओं में जोश देखा जा रहा है जो चुनाव में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं।
 
                  दूसरा कारण यह भी है कि हमारे तमाम जनप्रतिनिधियों ने अपनी लोकप्रियता खो दी है। तमाम क्षेत्रों से यही शिकायतें आ रही हैं कि चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि उनके क्षेत्र में एक बार भी नहीं आए और जब दुबारा चुनाव आता है तो फिर से वोट मांगने चले आते हैं। यहां पर हम यही कहना चाहते हैं कि आप देश के एक जिम्मेदार नागरिक हैं इसलिए आपको अपने गुस्से का इजहार वोट देकर करना चाहिए। न कि घर पर बैठ कर। अगर आपका क्षेत्र में जनप्रतिनिधि नहीं आता है तो आप उसके विरोध में वोट करिए लेकिन वोट अवश्य करिए। क्यों कि यदि हम वोट करने से चूक गए तो। उस प्रतिनिधि को हमें पांच साल और सहना होगा। 
 
                अप्रैल, मई और जून में देश में उत्तर भारत समेत तमाम हिस्सों में प्रचंड गर्मी पड़तीं है। ऐसे में लोग बहुत ही आवश्यक कार्य के लिए ही घर से बाहर निकलते हैं। दिन में मार्केट में सन्नाटा पसरा रहता है। तमाम दुकानदार भी दोपहर में सन्नाटे को देखते हुए अपनी दुकानें बंद रखते हैं। और फिर शाम को खोल लेते हैं। मतदान को बहुत से लोग एक आवश्यक रूप में नहीं ले रहे हैं और यही लोग फिर पांच साल तक पछताते हैं। दूसरी बात सरकार और चुनाव आयोग को कुछ ऐसे कदम उठाना चाहिए कि मतदान ऐसे समय में हो कि न ज्यादा गर्मी हो और न ही ज्यादा सर्दी हो। क्यों कि यह दोनों परिस्थितियां मतदान के लिए अनुकूल नहीं हैं। इसके लिए कुछ न कुछ उपाय जरूर निकालने होंगे। नहीं तो हम कितनी भी कोशिश कर लें कितनी भी अपील कर लें इस पर असर पड़ना नामुमकिन दिखाई दे रहा है। 
 
                  अभी कुछ माह पहले देश के चार राज्यों में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुए हैं उस समय मौसम बहुत ही अच्छा था न तो अत्यधिक सर्दी थी और न ही गर्मी तब मतदान का प्रतिशत बहुत अच्छा गया था। उन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने तीन और कांग्रेस ने चार राज्यों पर कब्जा किया था। मतदान यदि सत्तर फीसदी से ऊपर रहता है तो वह संतोषजनक माना जाता है लेकिन जब पचास से साठ फीसदी के आसपास रहता है तो देश में मनपसंद सरकार नहीं चुनी जा सकती क्योंकि आधे लोगों ने तो मताधिकार का प्रयोग किया ही नहीं। कम मतदान को लेकर राजनैतिक दल भी चिंतित रहते हैं और उनको लगता है कि हमारा मतदाता तो घरों से निकला ही नहीं। मतदान बढ़ाने में पार्टियों के बूथ मैनेजमेंट की अच्छी खासी जिम्मेदारी होती है क्योंकि वह मतदाताओं को घरों से बूथ तक निकाल कर लाता है।
 
               पहले फेज में कम मतदान को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने अपने बड़े नेताओं को बूथ मैनेजमेंट सम्हालने की जिम्मेदारी दी है। क्यों कि यदि मतदाता घरों से निकला ही नहीं तो यह बहुत बड़ी परेशानी बन सकती है। अन्य पार्टियां भी कम मतदान को लेकर चिंतित दिखाई दे रही हैं।‌ लेकिन कभी इस पर ध्यान नहीं दिया गया कि चुना हुआ जनप्रतिनिधि जीतने के बाद कितनी बार अपने क्षेत्रों में गया है। बहुत से जनप्रतिनिधि तो ऐसे भी हैं जिनका चेहरा तक मतदाताओं ने नहीं देखा होता है और वह पांच साल बाद फिर से टिकट मिलने पर चुनाव में खड़े हो जाते हैं। कुल मिलाकर यह राजनैतिक दलों का भी दायित्व है कि वह इस बात पर निगाह रखे कि हमने जिसको टिकट दिया है वह जीतने के बाद जनता के बीच में कितना रुका है और उसने अपने क्षेत्र को लेकर कितने मुद्दे विधानसभा या लोकसभा में उठाए हैं। कभी कभी इन नेताओं की निरंकुशता से पब्लिक ऊब जाती है और वह मतदान केंद्र पर जाना भी उचित नहीं समझती। लेकिन यह गलत है हमें मतदान अवश्य करना चाहिए फिर चाहे हम किसी भी दल की सपोर्टर क्यों न हों। चुनाव आयोग को इस बात पर नजर रखनी होगी कि आखिर मतदाता घरों से क्यों नहीं निकल रहा है। इसके उपायों को ढूंढ निकालना होगा। ताकि हमारे देश का मजबूत लोकतंत्र और मजबूत हो।
 
                   यदि मतदाता पचास-साठ फीसदी ही मतदान कर रहा है तो इसका मतलब देश लोकप्रिय सरकार को नहीं चुन पा रहा है। इसमें राजनैतिक दलों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी कि वे अपने बूथों को मजबूत करें और मतदान करने के लिए मतदाताओं को उनके घरों से निकालें और उन्हें मतदान करने के लिए प्रोत्साहित करें। इसके लिए एक उपाय और किया जा सकता है कि मतदान के लिए शाम का समय और बढ़ाया जा सकता है क्योंकि अक्सर गर्मी के दिनों में मतदाता सुबह और शाम को ही ज्यादा निकलता है। दोपहर में मतदान केन्द्रों पर सन्नाटा पसर जाता है।
                            
 
 
 

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