संजीव-नी।।

संजीव-नी।।

संजीव-नी।।
आनंद तो जीवन में चलते जाना ही हैंl
 
मुझे फेके गए पत्थर अपार मिले,
फक्तियाँ,ताने बन कर हार मिले।
 
शौक रखता हूं सब के साथ चलने का,
कही ठोकरे,कही जम कर प्यार मिले।
 
जीवन बीता आपा-धापी में ही यारों,
कभी मीठे बोल या प्रखर प्रहार मिले।
 
आनंद तो जीवन में चलते जाना ही हैं
प्रातःजीत मिले या दोपहर हार मिले।
 
खुशियों से दुशरों की खुश मिले लोग,
पर खुद से बेहद लाचार बेजार मिले।
 
आओ लगे यार से गले प्यार से,
शाम ये शायद न बार बार मिले।
 
भीग लें यादों की गुनगुनी बारिश में,
न ऐसी मदहोश निशा हर बार मिले।
 
संजीव ठाकुर

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