संजीव -नी।

संजीव -नी।

कविता,

चलो थोडा मुस्कुराते है।।

चलो थोडा मुस्कुराते है
इस दवा को आजमाते है.

कठिनाई में खिलखिलाते है,
मुसीबत में भी मुस्कुराते हैं।

जिसकी आदत है मुस्कुराना,
वो ही ज़माने को झुकाते है।

मायुसी विषाद की जड़ होती है,
उदासी  मुस्कुराहट से मिटाते है।

मुस्कुराना ही औषधि है बेहतरीन,
चलो इस दवा को भी आजमाते है।

खरीदी न बेचीं जाती मुस्कुराहट,
अनमोल है यह चलो मुस्कुराते है।

बेहतरी के नाम पर मुस्कुराते है,
सुनहरे कल के लिए मुस्कुरातें है।

संजीव ठाकुर

About The Author

स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel