swatantra prabhat kavita sangrah
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी। 

संजीव-नी।  जाते ही माँ के सारे दिल भी बट गए।     पर्दे रिश्तों के भी सारे परे हट गए जाते ही माँ के दिल भी सारे बट गए।     मुद्दतों बाद मिलनें से संभला नही जुनूँ देखा मुझे तो दौड़ गले से लिपट...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। व्यंग।     हिंदी दिवस l     नेशनल हिन्ढी डे ? एक अंग्रेज नुमा नेता जी हिंदी दिवस पर  आये,करने भाषण बाजी । बोले, लेट अस सेलिब्रेट एन एन्जॉय हिंदी डे, मुझे हिंदी अच्छी नही आती मेरे पूरे परिवार को नही भाती, मेरा...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी|

संजीव-नी| हिंदुस्तान की सच्ची तस्वीर। नल पर अकाल की व्यतिरेक ग्रस्त जनानाओं कीआत्मभू मर्दाना वाच्याएं।एक-दूसरे के वयस की अंतरंग बातों,पहलुओं कोसरेआम निर्वस्त्र करती,वात्या सदृश्य क्षणिकाएं,चीरहरण, संवादों सेआत्म प्रवंचना, स्व-स्तुति,स्त्रियों के अधोवस्त्रों में झांकती...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

कविता

कविता प्रभु पता बता सका न कोई।    बीत जाती है सदियां बदल जाते हैं युग पर नहीं विस्मृत हो रहा प्रभु रूप अनोखा तुम्हारा।    झर जाती पंखुरियाँ उड़ उड़ जाती सुगंध रूप ,सौंदर्य जिसका हमें घमंड मिट जाते हैं सदैव काल...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

कुवलय

कुवलय कला का पुरस्कार  अब मिलता नहीं है  चित्र विचित्र होकर भी कोई बिकता नहीं।    घर की वापसी  अब कोई करता नहीं  प्रजातंत्र के लिए  कोई लड़ता नहीं।    सभ्यता व संस्कृति से अब कोई डरता नहीं श्रमिक के लिए किसी से...
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संजीव-नी|

संजीव-नी| कैलेंडर चुप क्यों है, चिथडी दीवारों    पर, रूआंसे उधडे पलस्तर, और केलेंडर आमने सामने, एक दूसरे को फूटी आंखों भी नहीं सुहाते, साथ रहना, रोना, खासना, मजबूरी थे सब, वैसे भी...
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संजीव-नी।

संजीव-नी।    ईश्वर सब तेरी मेहरबानीl     वह दूसरों की खुशहाली से परेशान है, दुनिया की चमक धमक से हैरान हैl     खुद ने कभी ईमान का पसीना बहाया नहीं, बिना श्रम के कोई नहीं बना धन वान हैl     धन की लिप्सा चाहत किसे...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। प्रभु साथ दो मेराl    प्रभु साथ दो मेराl जहां भी हो अंधेरा राह में सत्य की  सदैव साथ हो तेराl       जहां लोभ का डेरा पथ में न्याय के चलूं मैं अकेला प्रभु साथ दो मेराl    वासना के प्रबल आंधी तूफान...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

कविता,

कविता, मोमिता हम शर्मिंदा है।     क्या हम कहीं खो गए हैं क्या हम कहीं सो गए हैं  या नपुंसकता की हद तक हम सब मजबूर हो गए हैं? क्या ऐसा तो नहीं कि  हम हृदयहीन हो गए हैं  गुड़िया और चिड़िया...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। युग निर्मात्री नारी।     कम ना आंको नारियों की शक्ति को, मां दुर्गा के प्रति  इनकी भक्ति को।     दुश्मनों का नाश  करती मां भवानी अलौकिक अद्भुत है  नारी हिंदुस्तानी। घर परिवार मुख्य  धुरी है देश की नारी, उसे कभी मत  समझो...
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संजीवनी।

संजीवनी। (रक्षाबंधन का पवित्र पर्व)यह पवित्र रेशमी बंधन।भेज रही हूं तुम्हें सीमा परयह पवित्र रेशमी बंधनऔर मांग रही हूं एकअटूट और साहसिक वचन,इसे केवल रेशमी धागाना समझना मेरे भैयायह हर बहन की, हर...
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संजीव-नीl

संजीव-नीl कविता, भोले चेहरे कितने मगरूर हो गए हैं।    रिश्ते अब अपने रिश्तों से दूर गए है, लोग आज कितने निष्ठुर हो गए हैं l    दुश्मनो से दोस्त कर रहें गुजारिश, भोले चेहरे कितने मगरूर हो गए हैं।    ज़माने की कैसी...
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