kavya darshan
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Read More... संजीव-नी।
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By Swatantra Prabhat Desk
जाते ही माँ के सारे दिल भी बट गए। पर्दे रिश्तों के भी सारे परे हट गए जाते ही माँ के दिल भी सारे बट गए। मुद्दतों बाद मिलनें से संभला नही जुनूँ देखा मुझे तो दौड़ गले से लिपट...
Read More... संजीव-नी।
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By Swatantra Prabhat Desk
व्यंग। हिंदी दिवस l नेशनल हिन्ढी डे ? एक अंग्रेज नुमा नेता जी हिंदी दिवस पर आये,करने भाषण बाजी । बोले, लेट अस सेलिब्रेट एन एन्जॉय हिंदी डे, मुझे हिंदी अच्छी नही आती मेरे पूरे परिवार को नही भाती, मेरा...
Read More... संजीव-नी|
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By Swatantra Prabhat Desk
हिंदुस्तान की सच्ची तस्वीर। नल पर अकाल की व्यतिरेक ग्रस्त जनानाओं कीआत्मभू मर्दाना वाच्याएं।एक-दूसरे के वयस की अंतरंग बातों,पहलुओं कोसरेआम निर्वस्त्र करती,वात्या सदृश्य क्षणिकाएं,चीरहरण, संवादों सेआत्म प्रवंचना, स्व-स्तुति,स्त्रियों के अधोवस्त्रों में झांकती...
Read More... संजीव-नीl
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By Swatantra Prabhat UP
उनके अंदाज ही अलहदा निराले हैंlउनके अंदाज ही अलहदा निराले हैंइश्क के जख्म हमने दिल में पालें हैं।मौज करते हैं भीख मांग-मांग करजो मजबूत साबुत हाथ पैर वाले हैं।जिंदगानी की उमंग में उड़ते पंछीकुछ...
Read More... कुवलय
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कला का पुरस्कार अब मिलता नहीं है चित्र विचित्र होकर भी कोई बिकता नहीं। घर की वापसी अब कोई करता नहीं प्रजातंत्र के लिए कोई लड़ता नहीं। सभ्यता व संस्कृति से अब कोई डरता नहीं श्रमिक के लिए किसी से...
Read More... संजीव-नी|
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कैलेंडर चुप क्यों है, चिथडी दीवारों पर, रूआंसे उधडे पलस्तर, और केलेंडर आमने सामने, एक दूसरे को फूटी आंखों भी नहीं सुहाते, साथ रहना, रोना, खासना, मजबूरी थे सब, वैसे भी...
Read More... संजीव-नी।
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प्रभु साथ दो मेराl प्रभु साथ दो मेराl जहां भी हो अंधेरा राह में सत्य की सदैव साथ हो तेराl जहां लोभ का डेरा पथ में न्याय के चलूं मैं अकेला प्रभु साथ दो मेराl वासना के प्रबल आंधी तूफान...
Read More... कविता,
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मोमिता हम शर्मिंदा है। क्या हम कहीं खो गए हैं क्या हम कहीं सो गए हैं या नपुंसकता की हद तक हम सब मजबूर हो गए हैं? क्या ऐसा तो नहीं कि हम हृदयहीन हो गए हैं गुड़िया और चिड़िया...
Read More... संजीव-नी।
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युग निर्मात्री नारी। कम ना आंको नारियों की शक्ति को, मां दुर्गा के प्रति इनकी भक्ति को। दुश्मनों का नाश करती मां भवानी अलौकिक अद्भुत है नारी हिंदुस्तानी। घर परिवार मुख्य धुरी है देश की नारी, उसे कभी मत समझो...
Read More... संजीव-नीl
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कविता, भोले चेहरे कितने मगरूर हो गए हैं। रिश्ते अब अपने रिश्तों से दूर गए है, लोग आज कितने निष्ठुर हो गए हैं l दुश्मनो से दोस्त कर रहें गुजारिश, भोले चेहरे कितने मगरूर हो गए हैं। ज़माने की कैसी...
Read More... संजीव नी।
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कविता तू खुदा नहीं पर कमतर भी नहीं । तेरे सामने मेंरा वजूद बेहतर भी नहीं , तू खुदा नहीं पर कमतर भी नहीं । यारों ने आईना दिखाया मुझे बार बार जानता हूँ वो फकत आईना तेरा भी नहीं।...
Read More... संजीवनी।
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इससे पहले कि हवाएं , इससे पहले कि हवाएं शब्द भंडार ले जाएं चलिए मधुर गीत लिख लेते हैं। इससे पहले कि हिम श्रृंखलाओं की बर्फ पिघल जाए, उससे कुछ ठंडी छुअन ले लेते हैं। इससे पहले कि लंबी वृक्ष...
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