संजीव-नी।
On
ईमानदारी और ईमानदार।
हां सचमुच यह सच है,
कि वह इमानदार है
यह भी सच है
वह गरीब और फटे हाल है,
आपदाओं से घिरा हुआ,
आफतों का साथी,
परेशानियां उसे छोड़ती नहीं,
पर वह परेशान नहीं,
मायूस भी नहीं, थका हुआ है,
पर हारा हुआ कतई नहीं,
हां यह सच है वह ईमानदार है,
आज के मायनों में नहीं
सत्य के मायनों में,
यह भी सच है कि
उसके तीन बच्चे हैं
एक बेरोजगार, एक अविवाहित
एक पालिका स्कूल का विद्यार्थी
सब ईमानदारी के सताए हुए हैं,
पत्नी इलाज के अभाव में
संसार से चल बसी,
लौट कर ना आने के लिए,
यह सच है कि वह इमानदार है,
परेशान भी है फटे हाल भी है,
थका है हारा हुआ नहीं,
ईमानदारी का मारा हुआ है,
अकेला नहीं है वह,
बरगद की तरह अपने में
सभी को समेटे हुए।
संजीव ठाकुर
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