तालियों की गड़गड़ाहट बनाम तानों की बौछार

तालियों की गड़गड़ाहट बनाम तानों की बौछार

जनवरी की कंपकंपाती हवा के साथ देश में एक नया जोश उमड़ने लगता हैएक नई हलचल करवट लेती है। सत्ता के गलियारों में गहमागहमी तेज़ हो जाती हैअर्थशास्त्रियों की पेशानी पर शिकन गहरी होने लगती हैविपक्ष स्वर तेज़ करता हैऔर जनतावह फिर से उम्मीदों की गठरी सिर पर उठाए बजट के पन्ने पलटने का इंतज़ार करती है। वित्त मंत्रालय के विशेषज्ञ अपनी टाई कसते हुए आँकड़ों की ऐसी जादूगरी में जुट जाते हैं कि हर घोषणा सुनहरी प्रतीत होभले ही वह मात्र संख्याओं का छलावा हो।

फिर आता है वह बहुप्रतीक्षित दिन—फरवरी! संसद भवन के भव्य गलियारों में लाल कालीन बिछ चुके होते हैंकैमरों की चमक आसमान छूने लगती हैटीवी एंकर ऊर्जावान स्वरों में अपनी भूमिका निभाने को तैयार होते हैं। वित्त मंत्रीजिनके चेहरे पर इस दिन विशेष आत्मविश्वास झलकता हैडिजिटल टैबलेट हाथ में लिए प्रवेश करती हैं। सत्ता पक्ष के सांसद उल्लास से सराबोर हैंविपक्षी खेमा बेचैनी से कुछ बड़ा पकड़ने की फिराक में हैऔर जनता?—वह अब भी गूगल पर खंगाल रही होती है, "बजट में मेरे लिए क्या है?"

जैसे ही वित्त मंत्री अपना भाषण प्रारंभ करती हैंसत्ता पक्ष के सांसदों में तालियाँ बजाने की होड़ मच जाती है। हर नई घोषणा के साथ तालियों का शोर मानो आसमान चीर देने को आतुर हो—"गरीबों के लिए नई योजना!"—गर्जनापूर्ण ताली। "किसानों के लिए ऐतिहासिक राहत!"—गूँजती ताली। "मध्यम वर्ग के लिए विशेष प्रावधान!"—सबसे ज़ोरदार ताली! लेकिन मध्यम वर्गवह इन घोषणाओं के बीच अपनी जेब टटोलते हुए मोबाइल पर टैक्स स्लैब खंगालने में व्यस्त हो जाता है!

इसी बीच विपक्षी नेता अपनी सीटों पर बेचैनी से करवटें बदलने लगेंगे। बजट चाहे जितना भी तर्कसंगत होउनका एक ही ध्येय रहेगा—निर्विवाद विरोध! जैसे ही वित्त मंत्री गर्वोन्मत्त स्वर में उद्घोषणा करेंगी कि अर्थव्यवस्था "नए शिखरों को छू रही है"विपक्ष की बेंचों से व्यंग्यपूर्ण ठहाकों की गूंज उठेगी। एक वरिष्ठ नेता व्यंग्य बाण छोड़ते हुए कहेंगे, "महंगाई रॉकेट की तरह उछल रही हैबेरोजगारी अपने चरम पर हैऔर सरकार आत्ममुग्ध होकर विकास के स्वर्णिम सपने दिखा रही है! यह ऊँचाई नहींजनता की जेब से निकला आखिरी सिक्का है!" सत्ता पक्ष इस पर ठहाके लगाएगावित्त मंत्री मुस्कुराते हुए आंकड़ों की नई बाजीगरी पेश कर देंगीऔर बजट की गाड़ी फिर आश्वासनों के पथ पर आगे बढ़ जाएगी।

बजट भाषण के दौरान सत्ता पक्ष के चेहरे यूं दमकेंगेमानो गरीबी मिट चुकी होकिसान मालामाल होंऔर हर युवा के पास दो-दो नौकरियाँ हों। वहींविपक्ष जनता को समझाने में जुट जाएगा कि "यह सब छलावा हैआंकड़ों की कलाबाजी हैअसली राहत तो हमारी सरकार में ही आएगी!" लेकिन जनतावह अब भी अपने टैक्स स्लैब का गणित लगाने में उलझी होगी।

बजट समाप्त होते ही सत्ता पक्ष के नेता बाहर आकर ऐसे वक्तव्य देंगेमानो उन्होंने सिर्फ वित्तीय घोषणा नहींबल्कि सृष्टि के गूढ़तम रहस्यों को सुलझा दिया हो। प्रधानमंत्री जी का ट्वीट आएगा—"ऐतिहासिक बजट! आत्मनिर्भर भारत की दिशा में क्रांतिकारी कदम!" समर्थकों की डिजिटल सेना इसे रीट्वीट करने में जुट जाएगी। पत्रकारों के तीखे सवालों का सामना करते हुए मंत्रीगण आत्मविश्वास भरी मुस्कान के साथ कहेंगे, "हमने जनता को अभूतपूर्व तोहफे दिए हैं!" पत्रकार फौरन पूछेंगे, "सरटैक्स स्लैब में कोई राहत?" मंत्रीजी क्षणभर को अटकेंगेफिर राजनीतिक चातुर्य से कहेंगे, "देखिएदीर्घकालिक दृष्टिकोण के तहत..." और जवाब अधर में लटक जाएगा।

उधरविपक्ष अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में गरज उठेगा—"यह बजट किसानोंगरीबों और युवाओं के साथ एक छलावा है! यह सिर्फ बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाया गया है!" वे यह भूल जाएंगे कि जब उनकी सरकार थीतब सत्ता पक्ष के लोग भी ऐसे ही आरोप लगा रहे थे। एक नेताजो वादों की बरसात करने में सिद्धहस्त हैंदहाड़ेंगे—"अगर हमारी सरकार होतीतो हर नागरिक के खाते में हर महीने 10,000 - 15,000 रुपये आतेबेरोजगारी नाम की कोई चीज़ नहीं रहतीऔर रोज़मर्रा की जरूरतें हर किसी की पहुंच में होतीं!" जनता तालियां तो बजाएगीलेकिन अगली ही सांस में गूगल पर "क्या सच में पहले महंगाई इतनी कम थी?" सर्च करने लगेगी।

मीडिया इस महाकाव्यात्मक नाटक में सबसे अधिक उत्साहित योद्धा की तरह कूद पड़ेगा। न्यूज़ चैनलों पर 'बजट विशेषके नाम पर बहस के अखाड़े सज जाएंगे—"आम आदमी की जेब पर सीधा वार?" "किसानों की किस्मत बदलेगी या फिर ठगे जाएंगे?" "मध्यम वर्ग के लिए सौगात या सदमा?" ब्रेकिंग न्यूज़ की बौछार होगी—"बजट के बाद सेंसेक्स में उथल-पुथल!" कुछ चैनल इसे "अर्थव्यवस्था के संकट का संकेत" बताएंगेतो कुछ इसे "निवेशकों की क्षणिक घबराहट" कहकर दिलासा देंगे—"चिंता न करेंजल्द ही सब पटरी पर आ जाएगा!"

बजट खत्म होते ही सोशल मीडिया पर मीम्स की सुनामी आ जाएगी। सत्ता पक्ष के समर्थक इसे "मास्टरस्ट्रोक" कहकर विजय पताका लहराएंगेजबकि विपक्ष इसे "आर्थिक आपदा" घोषित कर देगा। X (ट्विटर) पर ट्रेंडिंग युद्ध छिड़ जाएगा— #HistoricBudget बनाम #AntiPoorBudget! जनता अपनी भड़ास भी निकालेगीव्यंग्य भी कसेगी और कहीं-कहीं प्रशंसा की धारा भी बहेगी।

दिन ढलते-ढलते जनता फिर अपनी पुरानी दिनचर्या में लौट आएगी। अगले कुछ दिनों तक अखबारों में बजट की जय-जयकार और कटाक्ष का सिलसिला जारी रहेगा। सत्ता पक्ष इसे "आर्थिक क्रांति" का प्रतीक बताएगाविपक्ष इसे "महाघोटाला" करार देगाअर्थशास्त्री इसे जटिल संख्याओं के तराजू में तोलेंगेऔर जनतावह फिर से अगले साल के बजट का इंतज़ार करेगीउम्मीदों की वही पुरानी गठरी सिर पर उठाए हुए। क्योंकि बजट बदलता हैभाषण बदलते हैंआंकड़े बदलते हैं... पर जनता की उम्मीदें और हकीकतें हमेशा वैसी ही रहती हैं!

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