देश, धर्म के लड़ो या चूड़ियां पहन लो: वीरांगना अवंती बाई
हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व स्तंभकार

16 अगस्त, वीरांगना रानी जयंती विशेषालेख:
अदम्य साहस की प्रतिमूर्ति, महान वीरांगना रानी अवन्ती बाई ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। अपनी मातृभूमि की रक्षा के खातिर अपने प्राण न्योछावर कर दिए। 1857 की क्रान्ति में रानी अवन्ती बाई का वही योगदान है जो रानी लक्ष्मी बाई का है। इसी कारण रानी अवन्ती बाई की तुलना रानी लक्ष्मी बाई से की जाती है। इतिहास इन दोनों महान वीरांगनाओं का हमेशा ऋणी रहेगा। रानी अवन्ती बाई का अवतरण 16 अगस्त 1831 को ग्राम मनकेहणी जिला सिवनी, मध्यप्रदेश के जमींदार राव जुझार सिंह के यहां हुआ था।
इनकी शिक्षा दीक्षा ग्राम मनकेहणी में हुई। जुझार सिंह ने अपनी कन्या अवंती बाई का विवाह रामगढ़ रियासत के राजा लक्ष्मण सिंह लोधी के पुत्र राजकुमार विक्रमादित्य सिंह लोधी के सांथ तय किया। 1850 में राजा लक्ष्मण सिंह के निधन के बाद राजकुमार विक्रमादित्य ने राजगद्दी संभाली।
विक्रमादित्य वचपन से ही वीतरागी प्रवृत्ति के थे। पूजा पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों में लगे रहते थे। इनके दो पुत्र थे अमान सिंह और शेर सिंह। इनके दोनों पुत्र छोटे ही थे की राजा विक्षिप्त हो गए और राज्य की सारी जिम्मेदारी रानी अवन्तीबाई के कन्धों पर आ गई।
यह समाचार सुनकर अंग्रेजों ने रामगढ राज्य पर ''कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स'' की कार्यवाही की एवं राज्य के प्रशासन के लिए सर बराहकार नियुक्त कर शेख मोहम्मद और मोहम्मद अब्दुल्ला को रामगढ़ भेजा। जिससे रामगढ राज्य ''कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स'' के अधीन चला गया। अंग्रेजों कि इस हड़प नीति को रानी जानती थी और दोनों सरबराहकारों को रामगढ़ से बाहर निकाल दिया।
लार्ड डलहोजी की राजे रजवाड़ों को हडपने की नीति जिसे डलहोजी की हड़प नीति" कहा गया। जिसके कारण सतारा, जैतपुर, संभलपुर, बघाट, उदयपुर, नागपुर, झाँसी सहित कई देशी रियासतों का अंग्रजी साम्राज्य में विलय कर दिया गया। अन्य रियासतों को हडपने का अंग्रजी कुचक्र देश जोर-सोर से चल रहा था।
अंग्रजों के इस कुचक्र का राजे रजवाड़ों ने विरोध किया। जिसका रानी अवन्तीबाई ने भी विरोध किया। पुरवा में आस-पास के राजाओं और जमीदारों का विशाल सम्मलेन बुलाया। जिसकी अध्यक्षता 70 वर्षीय गोंड राजा शंकर शाह ने की। राजा शंकर शाह को मध्य भारत में क्रांती का नेता चुना गया। इस सम्मलेन में प्रचार प्रसार का कार्य रानी अवंतीबाई को सोंपा गया।
प्रचार के लिए एक पत्र और दो काली चूड़ियों की एक पुड़िया बनाकर प्रसाद के रूप में वितरित की गईं। इसके पत्र में लिखा गया -'' अंगेजों से संघर्ष के लिए तैयार रहो या चूड़ियाँ पहनकर घर बैठो "। तुम्हें धर्म, ईमान की सौगंध है, जो इस कागज का सही पता बैरी को दो''। जो राजा, जमींदार और मालगुजार पुड़िया ले तो इसका अर्थ क्रांति में अंग्रेजों के विरुद्ध अपना समर्थन देना था।
इस समय तक मंडला नगर को छोड़कर पूरा जिला अंग्रेजों से मुक्त हो चुका था। 23 नवम्बर 1857 को मंडला के पास अंग्रेजों और रानी अवन्तीबाई के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में मंडला का अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन पूरी शक्ति लगाने के बाद भी कुछ ना कर सका और मंडला छोड़ सिवनी भाग गया। इस प्रकार पूरा मंडला और रामगढ़ स्वतंत्र हो गया। इस प्रकार पूरा मंडला जिला और रामगढ़ राज्य स्वतंत्र हो गया। अंग्रेज अपनी हार से बौखलाए हुये थे और अपनी हार का बदला लेना चाहते थे।
अंग्रेज लगातार अपनी शक्ति सहेजते रहे अंग्रेजों ने 15 जनवरी 1858 को घुघरी पर नियंत्रण कर लिया। मार्च 1858 के दूसरे सप्ताह में रीवा नरेश की सहायता से रामगढ को घेरकर हमला बोल दिया। वीरांगना रानी अवन्तीबाई की सेना जो अंग्रेजों की सेना की तुलना में बहुत छोटी थी फिर भी साहस पूर्वक अंग्रेजों का सामना किया। रानी ने परिस्थितियों को भांपते हुये अपने किले से निकलकर डिंडोरी के पास देवहारगढ़ की पहडियों की ओर प्रस्थान किया। अंगेजों की सेना रानी अवन्ती बाई का पता लगाते हुये देवहारगढ़ की पहडियों तक पहुँच गई। यहां वीरांगना रानी अवन्ती बाई पहले से ही मोर्चा लगाये बैठी थी।
कालगलवित, 20 मार्च 1858 को रानी अवन्ती बाई ने शाहपुर के पास स्थित तालाब के पास बने मंदिर में पूजा अर्चना की और युद्ध मैदान में उतर गई। यहां अंग्रेजों और रानी के बीच घमसान युद्ध हुआ। रानी अवन्ती बाई ने अपने आप को अंग्रेजों से घिरता देख वीरांगना रानी दुर्गावती का अनुकरण करते हुए अपनी तलवार निकाली और कहा “ हमारी दुर्गावती ने जीते जी वैरी के हांथ अंग ना छुए जाने का प्रण लिया था। इसे ना भूलना’’ इतना कहकर रानी ने अपने सीने में मारकर देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे दिया।
शौर्यगाथा, वीरांगना जब मृत्यु सैय्या पर थीं तब उन्होंने अंगेजों को अपना बयान दिया कि '' ग्रामीण क्षेत्र लोगों को मैंने ही विद्रोह के लिए भड़काया, उकसाया था, प्रजा बिलकुल निर्दोष है ''। इस प्रकार वीरांगना ने वीरगति में भी हजारों लोगों को अंग्रेजों द्वारा दी जाने वाली यातनाओं से बचा लिया। वरेण्यं, क्रांति मुक्त आंदोलन की सूत्रधार, आजादी की चिंगारी, वीरांगना रानी अवन्ती बाई के श्री चरणों में जयंती पर शत-शत नमन…!
हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व स्तंभकार
स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।
About The Author
Related Posts
Post Comment
आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel
खबरें
शिक्षा
राज्य

Comment List