पैसे छापने की मशीनें बन गये प्राइवेट स्कूल,अभिभावकों की जेबों पर डाला जा रहा डाका

पैसे छापने की मशीनें बन गये प्राइवेट स्कूल,अभिभावकों की जेबों पर डाला जा रहा डाका

धर्मेन्द्र राघव/सत्यवीर सिंह यादव
अलीगढ़,। शिक्षा को पूरी दुनिया में बेहतर और सम्मानित जीवन जीने के लिए बेहद बुनियादी और आवश्यक चीज़ समझा जाता है। इसीलिए, देश अपने यहां विकास के लिए शिक्षा पर ध्यान देना अपनी पहली प्राथमिकता मानते हैं। बचपन से ही हमें सिखाया जाता है कि स्कूल विद्या के मंदिर होते हैं। चूंकि स्कूलों का नैतिक महत्व इतना ज़्यादा है, इसलिए सरकारों का भी ज़ोर रहता है कि जो कोई स्कूल या शिक्षण संस्थान खोलना चाहता है, वह नॉट फॉर प्रॉफिट या गैर-लाभकारी (मुनाफा कमाना जिसका मकसद न हो) संस्थान के तौर पर इन्हें पंजीकृत करवाए न कि कमर्शल इंडस्ट्री के तौर पर।


अधिकतर निजी स्कूलों को सोसाइटी रजिस्ट्रेशन ऐक्ट या फिर ट्रस्ट ऐक्ट के तहत पंजीकृत किया जाता है। मगर गैर-लाभकारी संस्थान होने के बावजूद इस बात में कोई शक नहीं कि ये स्कूल पैसे छापने की मशीनें बन गई हैं जहां पर बच्चों को शिक्षा पाने के लिए भारी-भरकम फीस देनी पड़ती है। हालांकि इस बात की कोई गारंटी नहीं कि इस शिक्षा में गुणवत्ता भी होती है या नहीं। वैसे यह अलग से चर्चा का विषय है।
शिक्षा के मंदिरों में व्यवसाय हावी, लूट के निकाले कई तरीके अलीगढ़,।

शिक्षा सत्र शुरू होते ही मुनाफे की इस दौड़ में शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले अधिकांश निजी स्कूल भी शामिल हो चुके हैं। जहां अभिभावकों की जेब तराशने के लिए नित नए तरीके इजाद किए जा रहे हैं। एक निजी स्कूल के वार्षिकोत्सव में भाग लेने वाले बच्चों से पूछा गया कि आप का स्कूल आप को कैसी जगह लगता है। एक बच्चे का जवाब था कि, हमारा स्कूल ऐसी जगह है, जहां हमारे बाप को लूटा जाता है और हमें कूटा जाता है। दाखिलों के इस मौसम में यह जोक काफी पापुलर हो चुका है और हो भी क्यों ना, क्योंकि किसी भी जानेमाने स्कूल में अपने बच्चों को दाखिला दिलाना अधिकांश अभिभावकों के लिए दिवास्वप्न बनकर रह गया है।


अधिकांश निजी स्कूलों द्वारा अभिभावकों को ठगने के लिए कई तरीके अपनाए जा रहे हैं। दाखिले के समय एडमीशन फीस व रजिस्ट्रेशन के नाम पर मोटा शुल्क वसूला जाता है। पहले से ही स्कूल में पढ़ रहे बच्चों से भी हर वर्ष प्रवेश शुल्क वसूलना स्कूल संचालकों की आय का मुख्य स्त्रोत बना हुआ है। इसके अलावा पुस्तकों व अन्य पाठ्य सामग्री के लिए भी मोटे टेंडर छोड़े जाते हैं। संबंधित पार्टी से पुस्तकें बेचने के लिए एकमुश्त मोटा कमीशन लेकर उसे स्कूल में ही अपनी दुकान लगाने के लिए स्थान उपलब्ध कराकर अभिभावकों को लूटने की खुली छूट प्रदान कर दी जाती है।

इस धंधे में मोटी कमाई होने की वजह से अधिक स्कूल ज्यादातर कक्षाओं में एनसीईआरटी की पुस्तकों की बजाय निजी प्रकाशकों की पुस्तकें लगाते हैं। सीबीएसई से मान्यता प्राप्त इन स्कूलों में एक ही कक्षा में अलग-अगल प्रकाशकों की पुस्तकें देखने को मिल जाती हैं। मोटा कमीशन देने वाली पार्टी मिलते ही कुछ कक्षाओं की पुस्तकें तो हर साल बदल दी जाती हैं। पुस्तकों व शिक्षण सामग्री की ही तरह मोटे कमीशन के चक्कर में स्कूल ड्रेस भी जब तब बदल दी जाती है।

स्कूलों पर नहीं होती कोई कार्रवाईः
राज्य सरकार व शिक्षा विभाग इन स्कूलों को फीस बढ़ाने व 134 ए के तहत गरीब बच्चों को दाखिला न देने के लिए जब तब इन स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करने की धमकी तो देते रहते हैं, मगर किसी भी स्कूल के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं की जाती। इसकी खास वजह यह है कि अधिकांश निजी स्कूल या तो राजनेताओं के अपने हैं या फिर ऐसे स्कूलों में उनकी हिस्सेदारी होती है।

भाग्यशाली गरीब बच्चों को ही मिल पाता है दाखिलाः
शिक्षा अधिनियम के प्रावधान 134 ए के तहत किसी भी नामीगिरामी स्कूल में किसी भाग्यशाली गरीब बच्चे का ही दाखिला हो पाता है। अधिकांश स्कूल इस प्रावधान को मानने को ही तैयार नहीं होते, या फिर सरकार पर ऐसे बच्चों की पूरी फीस चुकाने को दबाव बनाते हैं। इस सब के चलते गरीब बच्चों के दाखिलों की प्रक्रिया को जानबूझकर लटकाया जाता है, जो साल के अंतिम माह तक भी लटकी रह जाती है। इसी वजह से अब अधिकांश गरीब अभिभावकों ने तो इस प्रावधान के तहत आवेदन करना ही छोड़ दिया है।

इनका कहना है..
इस सबंध में जिला विद्यालय निरीक्षक सर्वदानन्द से पूछा गया तो उनका कहना था कि इस तरह की शिकायतें काफी मिल रही हैं। कमीशन का खेल करने वाले स्कूल संचालकों के खिलाफ जांच कर कठोर कार्यवाही अमल में लाई जाएगी।

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