संजीव-नी। आप जग जाहिर होने लगे हो।

 संजीव-नी। आप जग जाहिर होने लगे हो।

संजीव-नी।

आप जग जाहिर होने लगे हो।

आप अपने हो या बेगाने हो,
आप जग जाहिर होने लगे हो।

जालिम ये जमाना,ना-समझ नही ।
रंजिशों में आप भी माहिर होने लगे हो।

न जाने किस की सोहबत में रहते हो,
तमाम शाजिशों में शुमार होने लगे हो।

परवरिश ऐसी तो ना थी तुम्हारी,
खंजर पीछे हजार चलाने लगे हो।

तुम ना तो फरेबी ना सियासतदार हो।
क्यों दिल से ऐसे शातिर होने लगे हो।

क्या मिला लूट कर खुद का आशियाना,
क्यों खूबसूरत जिंदगी वीरान बनाने लगे हो ।

संजीव ठाकुर,

आप जग जाहिर होने लगे हो।

आप अपने हो या बेगाने हो,
आप जग जाहिर होने लगे हो।

जालिम ये जमाना,ना-समझ नही ।
रंजिशों में आप भी माहिर होने लगे हो।

न जाने किस की सोहबत में रहते हो,
तमाम शाजिशों में शुमार होने लगे हो।

परवरिश ऐसी तो ना थी तुम्हारी,
खंजर पीछे हजार चलाने लगे हो।

तुम ना तो फरेबी ना सियासतदार हो।
क्यों दिल से ऐसे शातिर होने लगे हो।

क्या मिला लूट कर खुद का आशियाना,
क्यों खूबसूरत जिंदगी वीरान बनाने लगे हो ।

संजीव ठाकुर,

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संजीव-नी।
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