खरीफ फसलों की बुआई मेढ़ और नाली बनाकर करें किसानः कुलपति

खरीफ फसलों की बुआई मेढ़ और नाली बनाकर करें किसानः कुलपति

बांदा। खरीफ में बोई जाने वाली विभिन्न फसलों को नाली बनाकर मेढ़ पर बुआई करने से किसान अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकता है। कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने प्रक्षेत्र परीक्षण के द्वारा इस तकनीकि का सफल प्रयोग किया है। कृषि विज्ञान केन्द्रों के द्वारा क्षेत्रानुकूल तकनीकियों, प्रजातियों व कृषि एवं कृषि से सम्बन्धित उपक्रमों पर सराहनीय कार्य किया है। यह बातें प्रसार निदेशालय, बाँदा   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बाँदा द्वारा आयोजित प्रसार परिषद् की चतुर्थ बैठक मे कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रो0 एन0 पी0 सिंह ने कही। प्रो0 सिंह ने कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों को सुझाव दिया कि सभी कृषि विज्ञान केन्द्र पशुपालन के एक नस्ल के लिए जाना जाये, जिससे उस नस्ल के जानवर को क्षेत्र के किसान देखकर उसे अपने प्रक्षेत्र पर अपना सके।

प्रसार परिषद् का आयोजन कुलपति कान्फ्रेन्स सभागार में आज किया गया। निदेशक प्रसार, डा एनके बाजपेयी द्वारा सभी अतिथिगणों का स्वागत किया गया । डा0 बाजपेयी द्वारा विगत वर्ष 2022-23 में माननीय अतिथि सदस्यों द्वारा दिए गए सुझावों की कृत कार्यवाही एवं सभी के० वी० के की वार्षिक प्रगति आख्या प्रस्तुत की गई। जिसमें बताया गया कि इस वर्ष सभी दलहनी 6 किस्म की दलहनी फसलों की उन्नतशील प्रजातियाों का 2670 कु0 बीज उत्पादित किया गया। यह उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 24 से 30 प्रतिशत की वृद्वि के साथ रिकार्ड किया गया। इसी तरह से अन्न एवं तिलहनी फसलों की कुल उत्पादन 1340 कु0 प्राप्त किया गया।

डा0 बाजपेयी ने बताया कि कई जिलों के किसानों ने अपने जिले के अनुकूल वातावरण के हिसाब से एकीकृत फसल प्रणाली को अपनाया है और सभी उपक्रमों से अच्छा आमदनी भी प्राप्त की है। कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों के द्वारा यह संस्तुति की गयी है कि अन्य किसान भी क्षेत्रानुकूल उपक्रम एवं तकनीकि को अपनाकर अपनी आय को बढ़ा सकते हैं। निदेशक प्रसार की प्रस्तुति के पश्चात बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बाँदा के अन्तर्गत संचालित समस्त कृषि विज्ञान केन्द्रों के अध्यक्ष एवं प्रभारी द्वारा वर्ष 2023-24 की प्रगति आख्या प्रस्तुत की गई। इसमें मुख्य रूप से केन्द्र पर आयोजित प्रशिक्षण, प्रदर्शन, प्रक्षेत्र परीक्षण एवं संचालित सभी प्रसार गतिविधियों के बारे में प्रस्तुतिकरण दिया।


निदेशक, अटारी, कानपुर डॉ० शान्तनु कुमार दुबे ने सभी वैज्ञानिकों को निर्देशित किया कि जनपद के स्वयं सहायता समूह व कृषक उत्पादक संगठनों को चयन कर उन्हें तकनीकि ज्ञान के साथ-साथ उत्पाद विपणन में सहायता करें। ज्यादा किसान लाभान्वित हो सकें ऐसे तकनीकि का ही प्रसार करें। दलहन हेतु दलहन शोध संस्थान, कानपुर से संस्तुत बीज का उपयोग करें। पूर्व निदेशक प्रसार आर0 पी0 सिंह ‘रतन’, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, राँची ने विशेषज्ञ के रूप में सुझाव दिया कि जलवायु अनुकूल तकनीकियों का विस्तार आवश्यक है। वैज्ञानिकों को प्रसार शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे अन्य विभाग प्रसार गतिविधियों को किसानों तक पहुँचा सके। हर जिले के लिए एक मॉडल आवश्यक है जो वैज्ञानिकों के द्वारा प्रक्षेत्र परिक्षण के परिणाम पर आधारित हो।

पूर्व निदेशक प्रसार, डा0 ओम गुप्ता, जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर, मध्य प्रदेश प्रसार परिषद की बैठक में विशेषज्ञ के रूप में प्रतिभाग किया। डा0 ओम गुप्ता ने यह सुझाव दिया कि सफलता की कहानी का प्रसार एवं उसे प्रलेखन के रूप में प्रस्तुत करें। फसल की बुआई तिथि का विशेष ध्यान रखें। अजोला को पशु आहार के रूप में भी शामिल करें। बैठक के दौरान नामित महिला कृषक व अन्य कृषकों ने सुझाव दिये। इस बैठक में सभी कृषि विज्ञान केन्द्रों के केन्द्राध्यक्ष, वैज्ञानिकगण, सह निदेशक प्रसार, डा0 नरेन्द्र सिंह व डॉ० आनन्द सिंह, वैज्ञानिक डा0 दीक्षा पटेल, डा0 प्रज्ञा ओझा, डा0 मानवेन्द्र सिंह, डा0 चंचल सिंह व सभी महाविद्यालय के अधिष्ठातागण उपस्थित रहे।

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