एम्बुलेंस असली, मरीज फर्जी जांच में क्यों हो रही देरी 

आंकड़ा के अनुसार जिले में प्रतिदिन होता है 700 एक्सीडेंट 

एम्बुलेंस असली, मरीज फर्जी जांच में क्यों हो रही देरी 

एम्बुलेंस सरकार से लेती है प्रति फेरा 3300 रूपए 

अम्बेडकरनगर। जिला चिकित्सालय एवं जिले में चल रहे सरकारी अस्पतालों पर एम्बुलेंस असली, मरीज फर्जी का मामला पिछले एक पखवाड़ा से चल रहा है इस मामले को दैनिक समाचार पत्र स्वतंत्र प्रभात की टीम ने  उठाया ,परन्तु जिले के अधिकारियों सहित जीवीके कम्पनी द्वारा कार्रवाई में देरी कर रहे है ,यह बात समझ से परे है। बताना चाहते हैं कि एम्बुलेंस की खबर को प्रमुखता से प्रकाशित करने के बाद मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ राजकुमार ने कारवाई की रिपोर्ट आज से लगभग 10 दिन पूर्व देने की बात कही परन्तु जब मुलाकात के दौरान जब कुछ सीक्रेट साक्ष्यों को दिखाया गया तो उन्होंने जांच प्रक्रिया को और आगे बढ़ा दिया और जांच की खबर कुछ अन्य मीडिया द्वारा प्रकाशित की गई।
 
जिसमें स्पष्ट हो गया एम्बुलेंस चालक अपने ऊपरी अधिकारियों के दबाव में किस तरीके से फर्जी काल करके मरीजों की संख्या बढ़ाते है और इससे कम्पनी को क्या फायदा होता है अंत में बताते हैं इससे पहले यह जानना जरूरी है स्वतंत्र प्रभात की टीम द्वारा मुख्य चिकित्सा अधिकारी को क्या साक्ष्य दिखाया गया जिसको संज्ञान में लेकर मुख्य चिकित्सा अधिकारी की टीम ने दूसरे एम्बुलेंस कर्मचारियों के बयान में सही पाया।
 
ऊपरी अधिकारियों के दबाव में होता है फर्जी काल
जब स्वतंत्र प्रभात की टीम ने असली एम्बुलेंस में फर्जी मरीज का सत्यापित कर दिया और अन्य एम्बुलेंस जांच में मुख्य चिकित्सा अधिकारी की टीम ने सही पाया और स्वास्थ्य विभाग की टीम ने यहां तक दावा किया गया प्रत्येक एम्बुलेंस को कम से कम 30 मरीज दिखाना पड़ता है यह जांच तो मुख्य चिकित्सा अधिकारी की टीम ने किया ,उससे पहले ही मीडिया द्वारा यह चलाया गया और सभी साक्ष्यों साबूत को दिखाया गया फिर भी मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्य वाही में देरी कर रहे हैं।
 
मुख्य चिकित्सा अधिकारी को साक्ष्य में  क्या दिखाया गया
मुख्य चिकित्सा अधिकारी से मुलाकात के दौरान दिखाया गया किस तरीके एम्बुलेंस अस्पताल से निकलती है कहां रूकती है और मीडिया में क्या अनाप-शनाप बयान करती है, मुख्य चिकित्सा अधिकारी को दिखाया गया , अम्बेडकर नगर के प्रोग्राम मैनेजर अमित वर्मा किस तरीके से कह रहे 2017 से पहले इससे भी ज्यादा स्कैम होता था, एम्बुलेंस प्रभारी विनोद मिश्रा अपने कर्मचारियों को बचाने के लिए किस तरीके फोन पर बचाव कर रहे हैं आडियो से ही स्पष्ट हो गया था कि चालक की मजबूरी है फर्जी मरीज दिखाना इतना सब साक्ष्य देने के बाद भी कार्य वाही में देरी क्यों , बसखारी एम्बुलेंस में फर्जी केस करवाते हुए आडिटर अभय खुद गाड़ी पर मीडिया के निगाह में आये थे,यह सब साक्ष्य  मुख्य चिकित्सा अधिकारी को दिखाया गया है और अब भी बात करने में मुख्य चिकित्सा अधिकारी बता रहे अभी जांच  पूरी होने में एक दो दिन का समय लगेगा।
 
एम्बुलेंस कम्पनी भी इन बड़े अधिकारियों में क्यों कार्यवाही करने में कर रही आनाकानी
बताना चाहते हैं इसके लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी के आलावा जीवीके कम्पनी से बकायदा वार्ता किया गया और सारे साक्ष्य कम्पनी के व्हाट्सएप्प नम्बर पर उपलब्ध कराया गया और कम्पनी ने जल्द कार्रवाई करने का भरोसा दिलाया फिर भी अभी कम्पनी के तरफ से अभी भी कोई कार्रवाई नहीं की गई, यह भी सोचने वाली बात कही इसके पीछे किसी सफेदपोश का हाथ तो नहीं है। 
 
आखिर क्यों कराई जाती है फर्जी काल और कम्पनी को कितना फायदा
 कुछ समाचार पत्रों ने यह दावा किया  गाड़ी के फेरों की संख्या कम से कम तीस करनी होती है यह कम्पनी का टारगेट होता है परन्तु एम्बुलेंस चालकों के अनुसार यह संख्या 35 से 40 के बीच में होती है जबकि हकीकत मरीज 4-5 का एवरेज रहता है फिलहाल हम मुख्य चिकित्सा अधिकारी के अनुसार बताने जा रहे हैं कम्पनी एम्बुलेंस से अम्बेडकर से कितना फर्जी धन लूट कर ले जाती है। जिले में 102 और 108 की कुल 56 एम्बुलेंस हैं जिससे 26 की संख्या में 108 और उतनी ही संख्या में 102 है , वर्तमान  रिकार्ड से हटकर थोड़ा पीछे ले जा रहे हैं विगत वर्ष तराई के जिलों में ऐसे मामलों का खुलासा हुआ था और देश के टाप टेन के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर आंकड़ा बताया गया, उसमें जो आंकड़ा बताया गया था उसके अनुसार 108 एम्बुलेंस प्रति फेरा सरकार से 3300 वसूल करती है  और एक गाड़ी 30 एक्सीडेंट के केस को अस्पताल पहुंचाती है अब सवाल यह उठता है जब एक एम्बुलेंस 30 केस के आस पास करती है।
 
108 के 26 एम्बुलेंस मिलाकर लगभग 700 से  800 एक्सीडेंटल केस हैंडल करती है यह सोचने वाली बात है जिस जिले में 700 से 800 एक्सीडेंट रोज हो उस जिले की हालत क्या होगी जबकि चालकों के अनुसार 4-5 केस ओर्जिनल होते हैं  यह आंकड़ा छोटे बड़े और रेफर की संख्या मिलाकर है ,अगर एम्बुलेंस चालक द्वारा बताये गये ओर्जिनल केस की संख्या और मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा फेरो की संख्या पर बात की जाए तो प्रत्येक 108 एम्बुलेंस गाड़ी अपने कम्पनी को लगभग प्रतिदिन 80,000 रूपए फर्जी तौर पर देती है इसका जीता जागता उदाहरण है अगर 700 एक्सीडेंट प्रतिदिन हो कितने की मृत्यु हो सकती है और हां-हांकार मच सकता है यह आंकड़ा केवल 108 एम्बुलेंस सेवा की है जैसे ही 102 एम्बुलेंस का आंकड़ा मिलता है हम शीघ्र ही बतायेंगे। फिलहाल सभी साक्ष्य उपलब्ध कराने के बाद भी मुख्य चिकित्सा अधिकारी और जीवीके कम्पनी बड़े स्तर के कर्मचारियों के ऊपर कार्यवाही करने में देरी कर रही है यह अपने आप में एक प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है।

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