यौन अपराध: मानसिक विकृति या कानूनी चूक?

यौन अपराध: मानसिक विकृति या कानूनी चूक?

बाल अपराध और यौन हिंसा की घटनाएँ न केवल समाज के नैतिक पतन की भयावह तस्वीर पेश करती हैंबल्कि कानून व्यवस्था की गंभीर चूक को भी उजागर करती हैं। हाल ही में तीन महिला पत्रकारों और दो मनोवैज्ञानिकों द्वारा जेल में बंद दुष्कर्मियों पर की गई गहन पड़ताल ने समाज को झकझोर देने वाले तथ्य सामने रखे हैं। अपराधियों के बयान यह साबित करते हैं कि उनमें न तो अपने कृत्यों के प्रति कोई पश्चाताप की भावना है और न ही अपराधबोध।

वे अपनी घृणित सोच को सामान्य और स्वीकार्य मानते हैं। उनके उत्तरों में मानसिक विकृतियों और यौन विक्षिप्तता की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। यह समस्या केवल कुछ व्यक्तियों के दुष्कर्म तक सीमित नहींबल्कि एक गहरे सामाजिक संकट का संकेत हैजो हमारी सामूहिक चेतना और नैतिक मूल्यों पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।

समाज की वास्तविक उन्नति केवल आर्थिक और तकनीकी प्रगति से नहींबल्कि नैतिकतासंस्कार और सुरक्षा के मजबूत स्तंभों पर टिकी होती है। जब मासूम बच्चों की सुरक्षा खतरे में पड़ती हैतो यह केवल किसी एक परिवार की त्रासदी नहीं होतीबल्कि पूरे समाज की सामूहिक विफलता होती है। अपराधियों की मानसिकता के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि उनके भीतर पनपी हिंसक प्रवृत्तियाँ इतनी गहरी जड़ें जमा चुकी हैं कि वे इसे अपना अधिकार तक समझने लगे हैं। ऐसे अपराध केवल प्रशासनिक कमजोरी की उपज नहीं हैंबल्कि सामाजिक मूल्यों में आई गिरावट और नैतिक दुर्बलता का जीवंत प्रमाण भी हैं।

बाल सुरक्षा का प्रश्न केवल कठोर कानूनों के निर्माण तक सीमित नहीं रह सकताबल्कि इसके लिए संपूर्ण समाज की मानसिकता में आमूलचूल परिवर्तन आवश्यक है। यह समझना होगा कि अपराधी समाज की ही उपज होते हैंऔर उनके विकृत विचार बचपन से ही पनपने लगते हैं। शोध दर्शाते हैं कि अधिकांश अपराधी अपने प्रारंभिक जीवन में ही विकृत यौन व्यवहार प्रदर्शित करने लगते हैं और इसे सहज व स्वाभाविक मान बैठते हैं। ऐसे मेंसमय रहते उनकी मानसिकता को पहचानकर सुधारात्मक उपाय अपनाना नितांत आवश्यक हो जाता है।

परिवार इस परिवर्तन की आधारशिला है। बच्चों को नैतिक मूल्यों से सशक्त बनानाउन्हें अच्छे और बुरे के भेद से अवगत कराना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। आत्मरक्षा के उपायों के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि बच्चे किसी भी असहज स्थिति में माता-पिता या किसी विश्वसनीय व्यक्ति से बिना झिझक अपनी बात कह सकें। माता-पिता और शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों के व्यवहार में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों पर सतर्क रहेंउनसे सतत संवाद बनाए रखें और उनके मन में सुरक्षा व विश्वास की भावना विकसित करें।

शिक्षा प्रणाली को भी इस दिशा में मजबूती से आगे बढ़ाना होगा। नैतिक शिक्षा को केवल पाठ्यक्रम का एक हिस्सा नहींबल्कि जीवन जीने की अनिवार्य सीख बनाया जाना चाहिए। समाज का वास्तविक विकास तब होगा जब ज्ञान के साथ संवेदनशीलतानैतिकता और आत्मरक्षा का बोध भी बच्चों में समाहित होगा। विद्यालयों में जागरूकता अभियान चलाए जाएँजहां बच्चों को उनकी सुरक्षाअधिकारों और सतर्कता के बारे में शिक्षित किया जाए।

सामाजिक जागरूकता अपराध रोकथाम का सबसे सशक्त माध्यम बन सकती है। जब पूरा समाज अपराध के विरुद्ध एकजुट होकर खड़ा होगातब अपराधी भयभीत होंगे और उनकी आपराधिक प्रवृत्तियों पर अंकुश लगेगा। प्रत्येक नागरिक का यह दायित्व बनता है कि वह अपने आसपास सतर्क दृष्टि बनाए रखे और संदेहास्पद गतिविधियों की अनदेखी न करे।

पड़ोसियोंमित्रों और समुदाय के अन्य सदस्यों को जागरूक और सतर्क रहकर सुरक्षा की इस लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभानी होगी। डिजिटल और सोशल मीडिया जैसे प्रभावशाली साधनों का उपयोग न केवल जागरूकता बढ़ाने के लिए किया जा सकता हैबल्कि पीड़ितों को न्याय दिलाने और अपराधियों को बेनकाब करने के लिए भी प्रभावी रूप में किया जाना चाहिए।

कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन अत्यंत अनिवार्य है। केवल कठोर कानून बना देना पर्याप्त नहींबल्कि उनका कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना आवश्यक है। अपराधियों को शीघ्र एवं कठोर दंड मिलना चाहिए ताकि समाज में एक स्पष्ट और सख्त संदेश जाए कि अपराध सहन नहीं किया जाएगा। हाल के शोध यह संकेत देते हैं कि कई अपराधी पुनरावृत्ति की मानसिकता से ग्रस्त होते हैंजिससे यह सिद्ध होता है कि त्वरित न्याय और सुधारात्मक उपायदोनों समान रूप से आवश्यक हैं।

न्यायिक प्रक्रियाओं को तीव्रगति से संचालित करना होगा ताकि पीड़ितों को शीघ्र न्याय मिल सके। इसके साथ हीअपराधियों के सुधार के लिए प्रभावी पुनर्वास कार्यक्रमों की भी व्यवस्था की जानी चाहिए। अपराधियों की मानसिक दशा को समझकर उनके लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श और काउंसलिंग की ठोस व्यवस्था होनी चाहिएजिससे वे समाज के लिए स्थायी खतरा न बनें। अपराध की जड़ों को समाप्त करने के लिए केवल दंड देना पर्याप्त नहींबल्कि उनके मूल कारणों को समझकर उन्हें समाप्त करना भी आवश्यक है।

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हमें एक संवेदनशीलजागरूक और सतर्क समाज का निर्माण करना होगा। केवल सरकार और कानून व्यवस्था पर निर्भर रहने से यह समस्या समाप्त नहीं होगीबल्कि प्रत्येक नागरिक को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। यदि हम बच्चों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दें और उनके प्रति संवेदनशील बने रहेंतो इस सामाजिक विकृति को जड़ से मिटाया जा सकता है। हर नागरिक की भागीदारी अनिवार्य हैक्योंकि जब पूरा समाज एकजुट होकर अन्याय के खिलाफ खड़ा होगातभी हम एक भयमुक्तसुरक्षित और नैतिक रूप से सुदृढ़ समाज का निर्माण कर पाएंगेजहाँ हर बच्चा बेखौफ अपने सपनों को साकार कर सके।

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