सखे रे चलो चलें उस पार
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चलो चलें उस पार सखे रे। हम डूबें मझधार सखे रे ।। नेत्र बनो तुम मैं हूँ प्रतिबिम्ब दृश्य बनूँ मैं भी अविलम्ब हिय बिच छवि हो
चलो चलें उस पार सखे रे।
हम डूबें मझधार सखे रे ।।
नेत्र बनो तुम मैं हूँ प्रतिबिम्ब
दृश्य बनूँ मैं भी अविलम्ब
हिय बिच छवि हो छवि में हिय हो।
देखूँ नयन उघार सखे रे।।
चलो चलें उस पार सखे रे।।
मिलन बिछोह समाहित तुममें
उर अम्बर है अम्बर तुममें
विहरण करें सृष्टिमय होकर।
झंकृत मन के तार सखे रे।।
चलो चलें उस पार सखे रे।।
वदन आद्रमय ओस झलक है
गिरती बूँदें मगन अलक है
खेल कुलेल सृष्टि और प्रलय।
देखो अपरम्पार सखे रे।।
चलो चलें उस पार सखे रे।।
भ्रमित व्यष्टि बनी मैं समष्टि
विलग नहीं कुछ केवल दृष्टि
पतझड में रितुराज समाहित।
है अनन्त संसार सखे रे।।
चलो चलें उस पार सखे रे
क्रमशः…………………… .
डॉ फूलकली पूनम
शायरा, कवयित्री
प्रधानाचार्या
व्हाइट हाउस अमेठी
उ.प्र. भारत
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