समस्या और चुनौतीयां में लोकतंत्र

समस्या और चुनौतीयां में लोकतंत्र

पत्रकार व लेखक: प्रशांत तिवारी विविधता के देश में राजनीति ने हर पहलू को इतना कर्कश बना दिया है कि इससे राष्ट्र को वैश्विक स्तर पर राष्ट्र के लिए खतरा बताया जाने लगा है। वैश्विक स्तर पर भारत की छवि सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में है। इसके साथ ही भारत को दुनिया भर में इस

पत्रकार व लेखक: प्रशांत तिवारी

विविधता के देश में राजनीति ने हर पहलू को इतना कर्कश बना दिया है कि इससे राष्ट्र को वैश्विक स्तर पर  राष्ट्र के लिए खतरा बताया जाने लगा है। वैश्विक स्तर पर भारत की छवि सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में है। इसके साथ ही भारत को दुनिया भर में इस बात के लिए सम्मान दिया जाता है कि वह दुनिया की पहली ऐसी विकासशील अर्थव्यवस्था है जिसने स्वयं को आधुनिक बनाने और निखारने के लिए शुरुआत से ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सहारा लिया। हर देश की अपनी आंतरिक समस्याएं और चुनौतियां बढ़ते परिदृश्य में होती हैं। लेकिन भारत में उन चुनौतियों और समस्याओं को इतना बड़ा राजनीतिकरण कर दिया गया है कि अंतरराष्ट्रीय  छवि में बदलाव होने लगी हैं। देखा जाए तो लोकतांत्रिक देशों में भारत ही इकलौता देश नहीं है जहां ध्रुवीकरण या राजनीतिक  कर्कशता देखी जा रही है।

दुनिया की महाशक्ति के रूप में अमेरिका अपने आप को बिल्कुल ही सुरक्षित महसूस करता है अमेरिकी संस्थान भी अमेरिका को उतनी ही सुरक्षा प्रदान करती है फिर भी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को अपने ऊपर लगे आरोपों से अपने को बरी कराने के लिए अमेरिकी सीनेट में जूझना पड़ा।वही भारत को हमेशा लोकतंत्र की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भारतीय तंत्र अधिकारों पर तो जोर देता है लेकिन उसके साथ जिम्मेदारियां जवाबदेही तय नहीं कर पाता।  विकासशील देशों में भारत सबसे स्वतंत्र और मजबूत देशों में से एक बना हुआ है विश्व स्तर पर होने वाली राजनीति का प्रभाव भारत पर सीधा पड़ता है। वैसे तो नाकामीयों को पर्दा डालकर उसे दबंग बनाने का जो दर्जा भारत ने अमेरिका की तर्ज पर दे रखा है वह राजनीतिक छवि को और चमकाने का काम कर रहा है।

आज भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती विस्तारवादी चीन या शातिर पाकिस्तान की नापाक गतिविधियां नहीं बल्कि ध्रुवीकृत भारतीय राजनीत हो गई है। जब भारत के आंतरिक मुद्दे ही भारत को नुकसान पहुंचाने लगी है तो क्या चीन क्या पाकिस्तान हर तरफ जटिलता के समुंदर में गोते लगाने जैसा माहौल  उत्पन्न होने लगा है। फिर अगर हम सोच रहे हैं कि क्षेत्रीय सामरिक चुनौतियों से निपटने में हम सक्षम हो सकेंगे तो यह शायद हमारी भूल होगी। ध्रुवी कृत्य राजनीति की दलदल में फंसा भारत स्वयं को एक चौराहे पर खड़ा देख रहा है।

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