उ0प्र0 जातीय गणना के पीछे क्यों पड़े हैं छोटे दल
जातीय गणना क्या होगा फायदा किसे होगा नुकसान

जितेन्द्र सिंह पत्रकार
उ0प्र0 में सपा बसपा जैसे बड़े दलों के साथ साथ तमाम छोटे दल जातीय गणना कराये जाने की मांग काफी समय से कर रहे हैं परन्तु सरकार ने इस पर अपनी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। लेकिन कुछ विपक्ष के साथ साथ एन डी ए में शामिल कुछ नेताओं का मानना है कि प्रदेश में जातीय गणना होना चाहिए।
ये वो राजनीति दल हैं जो चुनाव में जातीय आधार पर प्रत्याशियों का संयोजन करते हैं जिस क्षेत्र में जिस जाति की संख्या अधिक होती है उसी को आधार बनाकर प्रत्याशियों का चयन होता है। इन क्षेत्रीय और छोटे दलों के साथ साथ भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी जैसे बड़े दलों को भी इसी तरह से संयोजन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
उ0प्र0 के पड़ोसी राज्य बिहार में नितीश सरकार ने बिहार में जातीय गणना का काम शुरू कर लिया है इसे लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। पहले पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के जातीय गणना के फैसले को हरी झंडी दिखाई तो हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी पटना हाईकोर्ट की हां में हां मिलाते हुए कहा कि जब एक पड़ोसी दूसरे पड़ोसी की जाति जानता है तो यह जातीयता पर हनन कैसे। आखिरकार बिहार सरकार को वहां भी जीत हासिल हुई। और बिहार सरकार ने जातीय गणना का काम जारी रखा है
बिहार की तर्ज पर उ0प्र0 में भी यही मामला है कि जातीय गणना होना चाहिए लेकिन यहां सरकार भारतीय जनता पार्टी की है। और भाजपा कभी नहीं चाहेगी जातीय गणना हो । क्यों कि उ0प्र0 की राजनीति पूरी तरह से जाति पर आधारित है और सपा बसपा के बाद औम प्रकाश राजभर, अनुप्रिया पटेल, कृष्णा पटेल, दारा सिंह चौहान, पश्चिम में जाट नेता के रूप में जयंत चौधरी जैसे नेता अपनी अपनी जातियों की संख्या बल के कारण ही राजनीति में ऊपर आ पाए हैं और इनका मानना है कि जिस जाति की जितनी संख्या हो सरकार में उसे उसी के अनुसार जगह मिलनी चाहिए।
हालांकि जब तक उ0प्र0 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है तब तक इस प्रकार की गणना होना मुश्किल है क्योंकि कि यह उनके लिए नुकसानदायक साबित होगी। सरकार में शामिल छोटे राजनीतिक दल भी फिर मुखर होकर अपना हिस्सा मांगेंगे जिसके लिए भाजपा बिल्कुल तैयार नहीं होगी।
यहां अगर विपक्ष की बात की जाये तो उ0प्र0 में राजनीति और चुनाव पूरी तरह से जातीय रंग में रंगे हुए होते हैं। यहां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को भी जातिगत संतुलन बनाना पड़ता है यहां मायावती अगर दलितों की राजनीति करती हैं तो अखिलेश यादव यादव और मुस्लिम समीकरण को बनाकर राजनीति करते हैं यह बात अलग है कि पिछले कुछ चुनावों में भाजपा ने उ0प्र0 में जातीय राजनीति करने वाले नेताओं के इस भ्रम को तोड़ दिया है कि केवल दलित, और यादव मुस्लिम वोटों के समीकरण से ही सरकार बनाई जा सकती है क्योंकि अब हर पार्टी में हर वर्ग के नेता शामिल हैं और वो जातिगत वोटों का ध्रुवीकरण कर देते हैं जिससे एक जाति का वोट बट जाता है और जीत दूसरे व्यक्ति की तय हो जाती है।
यूपी में सिर्फ बहुजन समाज पार्टी का वोटर ऐसा है जो 80 फीसदी एक तरफ गिरता है।
एक समय यादव और मुस्लिम वोटों का भी यही हाल था इसी के बल पर चार वार समाज वादी पार्टी की सरकार बनी। कुछ इसी तरह सोशल इंजीनियरिंग करके चार वार बहुजन समाज पार्टी ने भी अपनी सरकार बनाई। परन्तु उसके बाद तमाम जातियों के छोटे छोटे दलों ने वोटों का बिखराव शुरू कर दिया। ये जातिगत आधार पर राजनीति कर लेंगे। जाति के इस समीकरण को भारतीय जनता पार्टी ने बड़े ही अच्छे तरीके से किया तमाम जाति के उन छोटे छोटे नेताओं को या तो भाजपा में शामिल कर लिया या एन डी ए में शामिल किया जिससे उनको फायदा भी मिला और जातियों का बिखरा हुआ वोट भजपा की तरफ शिफ्ट हो गया।
जातीय गणना पर पटना हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड की सरकार के हौंसले बुलंद हैं लेकिन देखना यह होगा कि गणना पूरी होने के बाद वे विभिन्न जातियों के नेताओं को कैसे साध पातीं हैं। क्यों कि रामविलास पासवान के भाई और बेटा और उधर एक वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले जीतनराम मांझी एन डी ए के साथ हैं। मुस्लिम वोटों का खेल कहीं कहीं असुद्दीन ओवेशी बिगाड़ देते हैं जो नितीश और उनकी सरकार के लिए अच्छा संदेश नहीं है।
यहां उ0प्र0 में भी विरोधी पार्टी पुरजोर कोशिश कर रही हैं कि जातीय गणना हो लेकिन पहले तो भाजपा सरकार के रहते ऐसा असंभव है और अगर यूपी में जातीय गणना होती भी है तो उससे जाति गत दलों को बढ़ावा मिलेगा और सारे बड़े दल उन्हें साधने की पूरी कोशिश करेंगे। पूर्वांचल की बात की जाये तो यहां अनुप्रिया पटेल, ओम प्रकाश राजभर, धारासिंह चौहान और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे तमाम नेता कई सीटों पर प्रभाव रखते हैं जिसमें से ज्यादातर भारतीय जनता पार्टी के साथ हैं पश्चिम का जाटलैंड का हिस्सा जयंत चौधरी के प्रभाव में है
लेकिन वहां भारतीय जनता पार्टी ने भूपेंद्र चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर काफी कुछ भरपाई कर ली है। और ऐसा समझा जा रहा है कि भूपेंद्र चौधरी के कारण ही जयंत चौधरी का एन डी ए में हिसाब नहीं बैठ पा रहा है। वैसे भी वहां भाजपा इतनी कमजोर नहीं है कि उन्हें हर कीमत पर जयंत चौधरी से समझौता करना पड़े ।
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