बाबा रामदेव की बढ़ती मुश्किलें 

बाबा रामदेव की बढ़ती मुश्किलें 

पतंजलि आयुर्वेद के निदेशक और योग गुरु बाबा रामदेव की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। पहले भ्रामक प्रचार ने सुप्रीम कोर्ट ने माफी नामा मांगा जिसको बाबा रामदेव ने देश के सभी बड़े अखबारों में प्रकाशित करवाया और देश से माफी मांगी। और कल पतंजलि की 14 आयुर्वेद दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया। दरअसल बाबा रामदेव ने देश को इतना गुमराह किया है जो कि मेडिकल साइंस के लिए बहुत ही हानिकारक है। बाबा रामदेव ने मेडिकल साइंस को भी चुनौती दे डाली। बाबा रामदेव ने मुश्किलों का सामना पहली बार नहीं किया है। कांग्रेस सरकार के समय भी जब अन्ना हजारे की भूक हड़ताल पर बाबा रामदेव ने मंच शेयर किया था।तब रामदेव को मंच से भागना पड़ा था।‌ बाब रामदेव पतंजलि आयुर्वेद के निदेशक हैं और जाने माने योग गुरु हैं। लेकिन बीच-बीच में राजनीति कार भी बन जाते हैं।‌ ऐसा वह अपने बचाव के लिए करते हैं या कोई अन्य कारण है यह तो वह स्वयं जानते होंगे। लेकिन आम बिजनेस मैन को राजनैतिक पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए।
 
 कोरोना काल में जब पूरा विश्व महामारी से लड़ रहा था तब भी बाबा रामदेव ने देश को गुमराह किया था। योग तक तो ठीक है लेकिन ऐसी आयुर्वेद दवा जो एक दम से बनाकर उसको ऐसे प्रचारित करना बहुत ही हानिकारक था। हालांकि जो कोरोना वैक्सीन लगी थीं उस पर भी सवाल उठने लगे हैं। लेकिन वह उस समय की एक वैकल्पिक व्यवस्था थी। फिर भी यदि वैक्सीन पर सवाल उठे हैं तो उसके लिए कारगर कदम भी उठाने चाहिए। लेकिन बाबाजी ने तो उस समय चैलेंज किया था कि हमारी दवा से कोरोना पास नहीं फटकेगा और हम महामारी को पूरी तरह से काबू कर सकते हैं। आपातकाल में बाबा रामदेव ने अपने व्यापार को खूब चमकाया। और जनता से झूठ बोलकर दवा की बिक्री की। मेडिकल साइंस कभी किसी इलाज की गारंटी नहीं लेता है वह केवल ठीक करने का प्रयत्न करता है और उसके साइड इफेक्ट्स के लिए पहले ही सूचित कर देता है। लेकिन बाबा जी मेडिकल साइंस से भी आगे निकल गए। बाबा ने इसी तरह अपने कारोबार को चमकाया है।
 
हम जानते हैं कि आयुर्वेद में बहुत ऐसा खजाना छुपा है जो कि हमें बीमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। अंग्रेजी दवाओं के साइड के कारण लोगों में आयुर्वेद और होमियोपैथी की तरफ रुझान बढ़ा है। और इसी का फायदा ये मेडिकल कंपनियां उठा रहीं हैं। यदि ठीक से जांच की जाए तो 90 प्रतिशत ऐसी आयुर्वेद की कंपनियां ऐसी निकलेंगी जो केवल व्यापार कर रही हैं। उनकी दवाओं में और शीरप में शाय़द ही ऐसा कुछ हो जो फायदा पहुंचाता हो। तगड़े कमीशन को देखते हुए डाक्टर भी ऐसे शीरप का प्रयोग जनता से करवा रहे हैं। वर्तमान समय में देश में अंग्रेजी दवाओं से अधिक आयुर्वेद की दवाइयां बाजार में हैं। और लोग भी बड़े ही विश्वास से इन दवाइयों को खरीद रहे हैं। दो- दो कमरों में आयुर्वेद दवाओं की फैक्ट्रियां चल रहीं हैं। और अपनी मार्केटिंग द्वारा सारे देश में अपना जाल फैलाए हुए हैं।
 
आयुर्वेद दवाओं के मामले में बाबा रामदेव ने डाबर, वैधनाथ, हिमालया और झंडू जैसी पुरानी कंपनियों को पीछे छोड़ दिया है। हर चीज को आयुर्वेद के नाम पर बेच हैं। यदि यह जांच बाबा रामदेव से शुरू हुई है तो देश की अन्य आयुर्वेद दवा बनाने वाली कंपनियों तक पहुंचनी चाहिए। क्यों कि जनता के स्वस्थ्य से खिलवाड़ करना बहुत ही अनुचित है। यदि इस दिशा में जांच आगे बढ़े तो देश में बहुत बड़ा आयुर्वेद घुटाला सामने आ सकता है। यह सत्य है कि बाबा रामदेव ने अपनी योग विद्या के द्वारा करोड़ों लोगों को लाभ पहुंचाया है। और इनकी पहचान भी योग से ही बनी है। लेकिन इन्होंने पतंजलि द्वारा लोगों को भ्रमित भी बहुत किया है जो कि किसी तरह से सही नहीं है। बाबा रामदेव आज योग गुरु न होकर बड़े बिजनेस मैन बन चुके हैं कई क्षेत्रों में उन्होंने बड़ी बड़ी कंपनियों को पीछे छोड़ दिया है। लोगों के विश्वास को रामदेव ने ठेस पहुंचाई है इसके लिए वह पूरी तरह से जिम्मेदार हैं।
 
आयुर्वेद एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जो अंग्रेजी दवाओं से भी कठिन है। इसको बड़े ही शोध के द्वारा तैयार कर मार्केट में उतारा जाता है। बहुत से लोगों को आयुर्वेद से फायदा पहुंचा है। लेकिन अब इस व्यवसाय से बहुत ही दोहन हो रहा है। मार्केट में आयुर्वेद के नाम पर तमाम ऐसे उत्पाद हैं जो आयुर्वेद को बदनाम कर रहे हैं। जब कि यह हमारे देश की ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसे प्राचीन काल में जब इलाज के आधुनिक साधन नहीं थे तब इसे ऋषि मुनियों द्वारा प्रयोग में लाया जाता था। हमारे देश के जंगल और पहाड़ ऐसी जड़ी बूटियों से भरे पड़े हैं लेकिन अब वह पहचानने वाले हमारे बीच नहीं हैं जो इसका प्रयोग समाज के लिए कर सकें। बाबा रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण भी कई बार इन चर्चाओं में घिरे हैं। क्या वास्तविक बालकृष्ण हिमालय में घूम घूम कर इन जड़ी बूटियों को इकट्ठा कर के लाते हैं। लेकिन जनता को गुमराह करने के लिए ऐसा ही प्रचारित किया जाता है। 
                  -- जितेन्द्र सिंह 
                      वरिष्ठ पत्रकार 

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