hindi kavita kahani
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Read More... कविता
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By Swatantra Prabhat UP
प्रभु पता बता सका न कोई। बीत जाती है सदियां बदल जाते हैं युग पर नहीं विस्मृत हो रहा प्रभु रूप अनोखा तुम्हारा। झर जाती पंखुरियाँ उड़ उड़ जाती सुगंध रूप ,सौंदर्य जिसका हमें घमंड मिट जाते हैं सदैव काल...
Read More... कुवलय
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By Swatantra Prabhat UP
कला का पुरस्कार अब मिलता नहीं है चित्र विचित्र होकर भी कोई बिकता नहीं। घर की वापसी अब कोई करता नहीं प्रजातंत्र के लिए कोई लड़ता नहीं। सभ्यता व संस्कृति से अब कोई डरता नहीं श्रमिक के लिए किसी से...
Read More... संजीवनी।
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By Swatantra Prabhat UP
इससे पहले कि हवाएं , इससे पहले कि हवाएं शब्द भंडार ले जाएं चलिए मधुर गीत लिख लेते हैं। इससे पहले कि हिम श्रृंखलाओं की बर्फ पिघल जाए, उससे कुछ ठंडी छुअन ले लेते हैं। इससे पहले कि लंबी वृक्ष...
Read More... संजीव-नी।
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By Swatantra Prabhat UP
पृथ्वी पर न करो इतना अत्याचार,पृथ्वी पर न करो इतना अत्याचार,मानव जीवन,वन करे चित्कार।वनों का विनाश मानवीय भविष्यके लिए खतरनाक, विनाशकारीअब उसे संवारने की हमारी बारी।क्यूं और कैसे हो गए हम,प्रकृति के इतने...
Read More... संजीव-नी।
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By Swatantra Prabhat UP
प्रकृति,पर्यावरण पर कविताlप्रकृति की लीला कितनी न्यारीहम सबको लगती कितनी प्यारी बहती नदिया कितनी न्यारीजल, नदिया और लताएं प्यारीइन की रक्षा करना जिम्मेदारी हमारीlभालू ,हिरण और बंदर कितने मासूम प्यारे.हम सबके करीबी दोस्त सब...
Read More... वोटवा हम काहे के डालीं
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By Office Desk Lucknow
पालटी आपन जीतत वा तौ, वोटवा हम काहे के डालीं।एक वोट से फरक क पड़िहै, ई सोचके हम परवाह न कइलीं। पालटी आपन जीतत वा तौ, वोटवा हम काहे के डालीं।अबकी नेतवा घर न अइले, न हम ऊके...
Read More... लोकतंत्र के खातिर भैया चलो चले मतदान करें
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By Office Desk Lucknow
लोकतंत्र के खातिर भैया चलो चले मतदान करें सारे कामों से पहले अपना यह पहला काम करे लोकतंत्र की जड़ को पानी वोट से अपनी से दे आए लोकतंत्र के मीठे फल मिलकर हम सब खाए लोकतंत्र की रक्षा में...
Read More... संजीव-नी।। तेरे मायके जाने के बाद।
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By Office Desk Lucknow
तेरे मायके जाने के बाद।तेरे मायके जाने के बाद,पूरा घर एक कोने मेंसिमट के रह गया है,सीढीया ऊपर जाने वालीऊपर नहीं जाती,नीचे आने वाली,नीचे नहीं आती,यूं तो बिस्तर डबल बेड का है,...
Read More... संजीव-नी। आप जग जाहिर होने लगे हो।
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By Swatantra Prabhat Desk
संजीव-नी।आप जग जाहिर होने लगे हो।आप अपने हो या बेगाने हो,आप जग जाहिर होने लगे हो।जालिम ये जमाना,ना-समझ नही ।रंजिशों में आप भी माहिर होने लगे हो।न जाने किस की सोहबत में रहते हो,...
Read More... संजीव-नी।
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By Office Desk Lucknow
आकृती ऐसी बनाना चाहता हूं। आकृती ऐसी बनाना चाहता हूं जो सीधी भी, सादी भी, बोल दे सारी मन की व्यथा भी। फूलों की दीपमाला सी धूप दीप सी मंत्रोचार सी। जिसे चाह ना हो माया की, खुली हर पीड़ित...
Read More... संजीवनी। पृथ्वी का बचा रहना कितना अहम।
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By Office Desk Lucknow
स्वतंत्र प्रभात संजीवनी। पृथ्वी का बचा रहना कितना अहम। मैं चाहता हूं पृथ्वी बची रहे और बची रहे मिट्टी आग नदिया चिड़िया झरने पहाड़ हरे हरे पेड़ रोटी चावल मक्का बाजरा समंदर पुस्तकें मनुष्य के लिए जी बची रहे पृथ्वी...
Read More... संजीव-नी। लंबी उम्र की ना दुआ किया करो।
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By Office Desk Lucknow
संजीव-नी। लंबी उम्र की ना दुआ किया करो। मोहब्बत में दर्द छुपा लिया करो, दर्द के छालों को छुपा लिया करो। आशिकी छुपाना होती नहीं आसां, जमाने को मेरा नाम बता दिया करो। हर दर्द की दास्तां होती है जुदा...
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