प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मिस्र यात्रा नया इतिहास रचेगी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मिस्र यात्रा नया इतिहास रचेगी

 

मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मिस्र की दो दिवसीय राजकीय यात्रा  हैं. यह यात्रा बहुत महत्वपूर्ण है, बता दें कि ये यात्रा 1997 के बाद से किसी भी भारतीय प्रधान मंत्री की पहली आधिकारिक मिस्र की द्विपक्षीय यात्रा है. मिस्र के साथ भारत के संबंध हमेशा से ही सौहार्दपूर्ण रहे हैं। 15 अगस्त, 1947 को भारत को आजादी मिलने के अगले तीन दिनों में दोनों देशों ने औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर के बीच गहरे दोस्ताना संबंध थे। दोनों नेताओं ने यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज टीटो के साथ मिलकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी। रणनीतिक स्तर पर भी दोनों देशों के बीच गहरे संबंध थे। नासिर के कार्यकाल में 1956 के अभूतपूर्व स्वेज संकट के दौरान भारत का मिस्र के प्रति सहयोगात्म रुख रहा। कुल मिलाकर कहे तो 50 और 60 का दशक भारत-मिस्र संबंधों का स्वर्ण काल था।

लेकिन 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध से जब काहिरा ने सोवियत संघ के नेतृत्व वाले गुट से दूरी बनाते हुए अमेरिका के करीब जाना शुरू किया तो भारत-मिस्र संबंधों में भी शून्यता का भाव भरने लगा। घरेलू मुद्दे और जूदा भू-राजनीतिक विचारों की वजह से शून्यता का यह भाव अगले कुछ दशकों तक बरकरार रहा। कमोबेश यही स्थिति होस्नी मुबारक के शासनकाल में रही। कहा जाता है कि होस्नी जब तक सत्ता में रहे तब तक काहिरा-नई दिल्ली संबंध ठंडे बस्ते में ही रहे। हालांकि, शीतयुद्ध के दौरान आए इस ठंडेपन ने रिश्तों की खाई को अधिक गहरा नहीं होने दिया और अलग-अलग दौर के भू-राजनीतिक परिदृश्यों के बीच भारत-मिस्र संबंध कमोबेश आगे बढ़ते रहे। कोविड-19 और उसके बाद आए डेल्टा लहर के भयानक दौर ने द्विपक्षीय संबंधों को ठंडे बस्ते से बाहर निकालने में उत्प्रेरक के तौर पर काम किया। डेल्टा लहर के उस भयावह वक्त में मिस्र उन चंद देशों में से एक था जिसने भारत को मेडिकल ऑक्सीजन की सप्लाई मुहैया करवाई।

 हाल ही में 74वें गणतंत्र दिवस के मौके पर मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सीसी को मुख्य अतिथि के रूप में भारत आमंत्रित किया गया था। यह पहली बार था जब मिस्र के किसी राष्ट्रपति को यह सम्मान दिया गया।अब्देल फतेह अल-सीसी की भारत यात्रा ने दोनों देशों के बीच दोस्ती की नींव को और मजबूत किया है। यात्रा की शुरुआत में पीएम उच्च स्तरीय मंत्रियों की एक विशेष सभा से रणनीतिक बातचीत करेंगे। इस रणनीतिक बातचीत के बाद मिस्र में रहने वाले भारतीय समुदाय के साथ एक बैठक होगी। 

इसके बाद प्रधानमंत्री  मोदी राजधानी काहिरा में स्थित 1000 साल पुराने मशहूर अल हकीम मस्जिद में भी गए । जहां प्रधानमंत्री  दाऊदी बोहरा समुदाय से मुलाकात की ;एक रिपोर्ट के मुताबिक, अल हकीम मस्जिद दाऊदी बोहरा समुदाय के लिए एक बेहद ही अहम सांस्कृतिक स्थल है। देश की चौथी सबसे पुरानी ऐतिहासिक मस्जिद को हाल ही में मिस्र सरकार ने बोहरा समुदाय के सहयोग से पुनर्निर्मित किया था।गौरतलब है कि मोदी के भारतीय दाऊदी बोहरा समुदाय के साथ सालों से गर्मजोशी भरे संबंध रहे हैं। राष्ट्रपति कार्यालय में आधिकारिक कार्यक्रम प्रधानमंत्री  मोदी की मिस्र यात्रा का अहम हिस्सा है। यहां पर प्रधानमंत्री  मोदी राष्ट्रपति अल-सीसी के साथ द्विपक्षीय वार्ता में शामिल हो रहे है ।इस वार्ता के दौरान दोनों देशों के बीच कई समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है, जो अलग-अलग डोमेन में सहयोग की नींव को मजबूत करेगा।

भारतीय समुदाय के साथ भी एक बैठक करेंगे। साथ ही प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी मिस्र की राजधानी काहिरा में स्थित 1000 साल पुरानी मशहूर अल हकीम मस्जिद भी जाएंगे। यहां पर प्रधानमंत्री  मोदी दाऊदी बोहरा समुदाय से मुलाकात करेंगे। एएनआई की रिपोर्ट की मानें तो अल हकीम मस्जिद दाऊदी बोहरा समुदाय के लिए अहम सांस्कृतिक स्थल है। देश की चौथी सबसे पुरानी ऐतिहासिक मस्जिद को बोहरा समुदाय के सहयोग से हाल ही में मिस्र सरकार ने पुनर्निर्मित किया था। द्विपक्षीय वार्ता में शामिल होंगे मोदी यात्रा के दौरान यहां प्रधानमंत्री  मोदी राष्ट्रपति अल-सीसी के साथ द्विपक्षीय वार्ता में शामिल होंगे। दोनों देशों के बीच कई समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है। प्रधानमंत्री  मोदी की यात्रा से उम्मीद प्रधानमंत्री  मोदी काहिरा में द्विपक्षीय वार्ता करेगें। मिस्र सरकार के वरिष्ठ नेताओं और मिस्र की प्रमुख हस्तियों के साथ के बातचीत के अलावा प्रवासी भारतीयों से भी मुलाकात करेंगे। दरअसल, प्रधानमंत्री  मोदी की इस यात्रा को अहम इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि प्रधानमंत्री  मोदी की इस यात्रा की घोषणा ऐसे समय में की गई थी जब मिस्र द्वारा ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) की सदस्यता के लिए कुछ दिनों पहले ही औपचारिक रूप से आवेदन किया गया था। मिस्र बिक्स देशों के साथ अपने व्यापार मे अमेरिकी डॉलर को छोड़ने का योजना में तेजी से दिलचस्पी दिखा रहा है।

 साफ है कि मिस्त्र उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ अपने मजबूत संबंध स्थापित करना चाहता है, ऐसे में प्रधानमंत्री  मोदी की यह यात्रा काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। उम्मीद की जा रही है कि यात्रा के दौरान, रक्षा सहयोग, शिक्षा और ब्रिक्स में शामिल होने के लिए मिस्र के आवेदन पर बातचीत होगी। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट अनुसार मिस्त्र के तेजी से आर्थिक विकास करने की उम्मीद है। मिस्त्र का स्वेज नहर में भारी मात्रा में प्राकृतिक संसाधन और रणनीतिक नियंत्रण है। भारत के लिए मिस्र की अहमियत मिस्र भारत का पुराना मित्र है, वहीं इसे व्यापार की अहमियत से देखें तो मिस्र, पश्चिम एशिया में सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। भारत के लिए यह एक बड़ा बाजार है। मिस्र को आफ्रीका और यूरोप दोनों के लिए प्रवेश द्वार माना जाता है। मिस्र को भारत मुस्लिम-बहुल देशों के बीच एक उदार इस्लामी देश और इस्लामिक सहयोग संगठन में एक अहम भागीदार देश के रुप में देखता है। 2023 में ही मिस्र के राष्ट्रपति अल-सीसी गणतंत्र दिवस के मौके पर जब भारत आए थे तब तय हुआ था कि आने वाले पांच सालों में दोनों देश मौजूदा 7 अरब डॉलर के व्यापार को बढ़ा कर 12 अरब डॉलर तक पहुंचाएंगे। इसी साल जनवरी में पहली बार दोनों देशों की सेनाओं ने साझा सैन्य अभ्यास भी किया था। मिस्र ने भारत से तेजस लड़ाकू विमान, रडार, सैन्य हेलिकॉप्टर और आकाश मिसाइल सिस्टम खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी। दशकों से भारत की पहचान ऐसे देश के रूप में रही है जो दूसरे देशों से हथियार खरीदता रहा है। लेकिन अब जब भारत रक्षा क्षेत्र से जुड़े उपकरण और हथियार खुद बनाने के साथ ही 42 देशों को बेच रहा है। ऐसे में भारत इन खरीददार देशों में मिस्र को भी देखना चाहता है।

इस समय मिस्र और भारत दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है। वक्त बदलने के साथ-साथ अब इस बात की जरूरत भी है कि इन रिश्तों को ओर भी बेहतर बनाया जाए। पिछले वर्ष इस्लामिक देशों के सम्मेलन में पाकिस्तान जब भारत के खिलाफ कश्मीर मुद्दे को लेकर प्रस्ताव लेकर आया था तो मिस्र ने कड़ी आपत्ति जताई थी। राष्ट्रपति अल सीसी ने इस प्रस्ताव का समर्थन करने से इंकार कर दिया था। जिसके चलते प्रस्ताव पारित नहीं हो सका था आैर पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी। 2022 में भाजपा की प्रवक्ता रही नुपूर शर्मा की टिप्पणी के बाद भारत को इस्लामी देशों की नाराजगी झेलनी पड़ी थी। कई अरब देशों ने भी इस मामले पर असंतोष जाहिर किया था लेकिन मिस्र ने इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की थी। मिस्र की इस समय आर्थिक हालत कुछ ज्यादा ठीक नहीं है। उसे भारत से सहायता की जरूरत है। भारत के लिए मिस्र में निवेश का रास्ता बन सकता है। क्योंकि वह पश्चिम एशिया और अफ्रीका की राजनीति में बहुत मजबूत है और एक सैन्य ताकत भी है। मिस्र को भारत से सैन्य मदद भी चाहिए और भारत का रक्षा सैक्टर इस समय निर्यात के लिए तैयार है। प्रधानमंत्री मोदी और अल सीसी राजनयिक और व्यापारिक संबंधों को बढ़ाएंगे और कुछ समझौतों पर हस्ताक्षर होना भी लगभग तय है। सबसे बड़ी बात यह है कि मिस्र एक मुस्लिम देश है लेकिन वो हमेशा से ही पाकिस्तान की नीतियों और आतंकवाद की खिलाफत करता रहा है। भारत मिस्र में सबसे बड़े निवेशक के तौर पर भी उभरा है। दोनों देशों ने एक-दूसरे को मोस्ट फेवर्ट नेशन का दर्जा भी दे रखा है। मोदी की मिस्र यात्रा पर इस्लामिक देशों की नजरें लगी हुई हैं लेकिन इतना तय है कि भारत और मिस्र में संबंधों के नए युग की शुरूआत होगी।

 

अशोक भाटिया,वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार .लेखक एवं टिप्पणीकार


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