भदोही में 'गरीब' परिवार के लिए प्रधानमंत्री आवास बना 'स्वप्न', जिम्मेदार बेखबर।

प्रधान को सुविधा शुल्क न देना 'गरीब' परिवार को पड़ा भारी, नही मिला आवास।

भदोही में 'गरीब' परिवार के लिए प्रधानमंत्री आवास बना 'स्वप्न', जिम्मेदार बेखबर।

सात बेटियों और पत्नी के साथ एक झोपड़ी में रहता गरीब, जिम्मेदार मौन।

संतोष कुमार तिवारी

सरकार भले ही हर गरीब को पक्का छत का वादा कर रही है लेकिन हकीकत यह है कि कुछ लोग है जो जानबूझकर गरीबों को पक्का छत नही दिलाना चाहते है और सरकार की मंशा पर पलीता लगाते है।

इसमें न केवल ग्राम प्रधान की लापरवाही होती है बल्कि सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की वजह से पात्र को आवास समेत तमाम योजना का लाभ नही मिल पाता है जबकि अपात्रों को झूठे रिपोर्ट के बाद योजना का लाभ दे दिया जाता है। और इसी तरह सरकार की मंशा तार तार हो जाती है। आज भी बहुत ऐसे गरीब है जिनको आवास की, अन्त्योदय कार्ड की, आयुष्मान कार्ड की, पेंशन की, शौचालय की जरूरत है

 

लेकिन जिम्मेदारों की लापरवाही के वजह से गरीब और परेशान केवल अपनी गुहार लेकर जिम्मेदार के यहां तक जाता है लेकिन कोई सुनवाई नही होती है। कुछ मामले तो ऐसे देखने को मिलते है जहां पर ग्राम प्रधान भी आवास दिलाने के नाम पर सुविधा शुल्क मांगता है जो नही दे पाता उसे 'अपात्र' दिखाकर रिपोर्ट भेज दी जाती है और सच में पात्र और गरीब योजना के लाभ से वंचित हो जाता है। जबकि जिले और ब्लाॅक के अधिकारी केवल ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत सचिव के रिपोर्ट को ही ब्रह्म लेख मानकर इति श्री कर लेते है। इसी वजह से कभी कभी अपात्रों को योजना का लाभ मिल जाता है और सच में पात्र व्यक्ति छूट जाता है।


 मामला कालीन नगरी भदोही के औराई ब्लॉक के गिर्दबडगांव का है जहां पर बच्चेलाल नामक व्यक्ति का परिवार एक टूटी झोपड़ी में रहता है। बारिश के समय में बच्चेलाल का परिवार कैसे समय बिताता है यह तो वह लोग ही जानते है। बच्चेलाल  अपनी पत्नी और सात बेटियों के साथ एक झोपड़ी में रहने को मजबूर है लेकिन बच्चेलाल की स्थिति पर न तो ग्राम सभा के ग्राम प्रधान और न ही जिला या ब्लॉक के किसी अधिकारी ने नजर डाली।

बच्चेलाल की पत्नी का आरोप है कि जब उसने आवास के लिए ग्राम प्रधान से कहा तो ग्राम ने कहा कि बीस हजार रूपया दीजिए तब आवास मिलेगा नही तो नही मिल पायेगा। इसलिए बच्चेलाल ने ग्राम प्रधान को सुविधा शुल्क नही दिया जिससे गरीब परिवार को आवास न मिल सका। बच्चेलाल का परिवार एक झोपड़ी में कैसे रहता है यह सुनकर सभी हैरान है लेकिन ग्राम प्रधान समेत अन्य जिम्मेदार लोगों से क्या मतलब है? मालूम हो कि बच्चेलाल इतना गरीब है फिर भी अन्त्योदय कार्ड नही बना है पात्र गृहस्थी का कार्ड बना है जिसमें मात्र 6 यूनिट ही नाम जुटा है।

जबकि गिर्दबडगांव में दो कोटे की दुकान पर कुल 114 अन्त्योदय कार्ड धारक है लेकिन सभी कार्ड धारक बच्चेलाल से भी अधिक लाचार व गरीब है इसलिए बच्चेलाल का अन्त्योदय कार्ड न बनाकर केवल पात्र गृहस्थी का कार्ड बना है। गिर्दबडगांव में यदि आवास की बात की जाये तो गांव में कुल 335 आवास की सूची है। जिसमें 174 अनुसूचित जाति के लोगों का नाम है, 107 अन्य लोगों का नाम है तथा 54 आवास मुस्लिमों के नाम है।

लेकिन 335 की सूची में गरीब बच्चेलाल का नाम गायब है। आखिर इसे क्या कहा जाये कि गिर्दबडगांव में बच्चेलाल से 335 लोग आवास के लिए पात्र है और 114 लोग अन्त्योदय कार्ड के लिए पात्र है जबकि बच्चेलाल का नाम न आवास की सूची में है और न ही अन्त्योदय कार्ड की सूची में। आखिर किस पैरामीटर को पूरा करने के बाद ग्राम प्रधान और ब्लाॅक और जिला के अधिकारी बच्चेलाल को भी 'गरीब' मानेंगे।

कहने को तो अधिकारी चौपाल में, तहसील और थाना समाधान दिवस में हमेशा यही निर्देश देते है कि सरकार की योजनाओं का लाभ गरीब और पात्र को मिले लेकिन कालीन नगरी में एक गरीब की दशा पर आखिर क्यों सुधि नही ले रहे है जिम्मेदार? जनपद के जिलाधिकारी गौरांग राठी और मुख्य विकास अधिकारी यशवंत कुमार सिंह से गरीब परिवार ने लगाई है गुहार।

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