11वें लोकसभा चुनाव - भाजपा युग का पहला अध्याय 

11वें लोकसभा चुनाव - भाजपा युग का पहला अध्याय 

 
 
             (नीरज शर्मा'भरथल')
 
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के नौवें प्रधानमंत्री के रूप में पी.वी.नरसिम्हा राव ने 21 जून 1991 को शपथ ली और मंत्री मंडल का गठन किया। वे गैर- हिन्दी भाषी पृष्ठभूमि से प्रधानमंत्री बनने वाले मोरारजी देसाई के बाद दूसरे व्यक्ति बने। उनके कार्यकाल की मुख्य विशेषताए रही आर्थिक सुधार की नीतीयों में प्रगति, दरअसल 1991 के आर्थिक संकट के दौरान देश की खस्ता होती आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने अर्थशास्त्री और भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री के रूप में चुना जिन्हें अर्थव्यवस्था में विभिन्न सुधारों की शुरुआत करने के लिए जाना जाता है। 24 जुलाई 1991 को नरसिम्हा राव की सरकार के पहले बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने लाइसेंस-परमिट राज के अंत का ऐलान किया। नरसिम्हा राव सरकार के सबसे महत्त्वपूर्ण आर्थिक सुधार के फैसले जुलाई 1991 से मार्च 1992 के बीच हुए। जब राव की सरकार में वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने फरवरी 1992 में अपना दूसरा बजट पेश किया तब राव सरकार एक अल्पमत सरकार थी।
 
सरकार की ओर से शुरू किए गए आर्थिक उदारीकरण के फैसलों का विरोध शुरू हो गया। यह विरोध  खाली वामपंथी दल ही  नहीं कर रहे थे बल्कि सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी में भी विरोध के स्वर उभर रहे थे। कांग्रेस पार्टी में अर्जुन सिंह और वयलार रवि आंतरिक विरोध में सबसे आगे थे। पार्टी की भावनाओं को भांपते हुए राव ने अप्रैल 1992 में तिरुपति में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सत्र बुलाया। जिसमें उन्होंने बाजार, अर्थव्यवस्था और राज्य के समाजवाद के बीच का रास्ता चुनने की बात की और विकास नीतियों को विस्तार से बताया। इन्ही के कार्यकाल के दौरान श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण अभियान पूरे चर्म पर था और 6 दिसम्बर 1992 को तथाकथित मस्जिद जिसे बाबरी मस्जिद का नाम दे दिया का विध्वंस हुआ जो भविष्य मे भारतीय राजनीति को पूरी तरह से बदल देने वाला था। इसके बाद पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे भड़के। जिन्हे काबू करने के लिए सरकार को ऐड़ी से चोटी तक का जोर लगाना पड़ा। किसी राष्ट्र के लिए कुछ क्षण इतिहास की दिशा बदलने की क्षमता रखते हैं।
 
यह व्यापक रूप से माना जाता है कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक ऐसा क्षण था जिसने परिवर्तनकारी घटनाओं की एक श्रृंखला को गति दी। इसी एक घटना ने हिन्दुत्ववादी राजनीतिक और गैर राजनीतिक दलों को एकजुट कर एक सुदृढ शक्ति के रूप में स्थापित किया। जिसके इर्द-गिर्द भविष्य की भारतीय राजनीति घूमती रही। ग्यारहवीं लोकसभा के सदस्यों का चुनाव करने के लिए देश में 27 अप्रैल, 2 मई और 7 मई 1996 को आम चुनाव हुए। लोकसभा की 543 सीटों के लिए हुए चुनावों में 8 राष्ट्रीय पार्टियों, 30 राज्यस्तरीय पार्टियों तथा 170 अन्य दलों के साथ-साथ 10,637 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा। कुल 59 करोड़ 25 लाख मतदाताओं में से 57.94 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर 13,952 उम्मीदवारों के राजनीतिक भविष्य का फैसला किया था।
 
कांग्रेस पार्टी ने 529 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 140 जीती। कांग्रेस को कुल 29.80 प्रतिशत वोट मिले। नई-नई बनी एन.डी.तिवारी की इंदिरा कांग्रेस ने 321 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन संगठन और समर्थन के अभाव में वह केवल 4 सीट ही जीत सकी। भाजपा ने कांग्रेस की कमजोर स्थिति का फायदा उठाते हुए इस समय तक अपने प्रभाव का विस्तार कर लिया था और उसने 471 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। इन चुनावों में 161 सीटें जीत भाजपा सब से बड़ा दल बन कर उभरने में कामयाब रही। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 43 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसके 12 उम्मीदवार जीते जबकि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने 75 स्थानों पर चुनाव लड़ा और उसके 32 उम्मीदवार चुने गए थे। जनता दल ने 196 सीटों  पर चुनाव लड़ा और उसके 46 उम्मीदवार निर्वाचित हुए थे। 
 
 बिहार में प्रभाव वाली समता पार्टी ने देश में 81 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे जिनमें से 8 जीत पाए थे। कांग्रेस को उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्यों में तेज झटका लगा। उसे उत्तरप्रदेश में 5, बिहार में 2, पश्चिम बंगाल में 9, मध्यप्रदेश में 8 सीटें ही मिली। भाजपा को उत्तरप्रदेश में 52, बिहार में 18, , गुजरात में 16, मध्यप्रदेश में 27, महाराष्ट्र में 18, राजस्थान में 12 सीटों के साथ इन राज्यों में सबसे अधिक कामयाबी मिली।जनता  दल को बिहार में 22, कर्नाटक में 16 को छोड बाकि जगह कुछ खास कामयाबी नही मिली।माकपा के लिए मुखय राज्य पश्चिम बंगाल 23 के साथ रहा। समाजवादी पार्टी को कुछ अन्य जगहों पर सीटें मिली पर मुख्य कामयाबी उत्तरप्रदेश में 16 सीटों के साथ मिली।तेलुगुदेशम पार्टी को आंध्रप्रदेश में 16, शिवसेना को महाराष्ट्र में 15, अकाली दल को पंजाब में 6, द्रमुक को तमिलनाडु में 17 तथा बहुजन समाज पार्टी को उत्तरप्रदेश में 6, मध्यप्रदेश में 2 और पंजाब में 3 सीटें मिली थीं। निर्दलीय अरुणाचल प्रदेश में 2 तथा असम, बिहार, हरियाणा, केरल, मध्यप्रदेश, मेघालय और उत्तरप्रदेश में  1-1 सीट जीत पाए थे।
 
कांग्रेस से रूठे नारायणदत्त तिवारी ने उत्तरप्रदेश में नैनीताल से इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) के टिकट पर चुनाव लड़ा और उन्होंने भाजपा के बलराज पासी को लगभग 1.50 लाख मतों के अंतर से हराया था। मेनका गांधी एक बार फिर पीलीभीत से चुनी गई। भाजपा के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ से कांग्रेस के राज बब्बर को हराया। समता पार्टी के टिकट पर चन्द्रशेखर बलिया से तथा गांधी परिवार के नजदीकी सतीश शर्मा कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर अमेठी से निर्वाचित हुए। नेहरू-गांधी परिवार की परंपरागत सीट रायबरेली में भाजपा के उम्मीदवार अशोक सिंह ने जीत हासिल की। समाजवादी पार्टी के मुलायम  सिंह यादव मैनपुरी सीट से चुनाव जीतने मे कामयाब हुए।
 
किसी दल को स्पष्ट बहुमत नही मिला। 
 
राष्ट्रपति ने 161 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी भारतीय जनता पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 मई 1996 को भारत के 10वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।

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