बॉम्बे हाईकोर्ट से केंद्र की फैक्ट चेक यूनिट रद्द- 'नियम संशोधन असंवैधानिक'।
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ब्यूरो प्रयागराज। बंबई उच्च न्यायालय ने सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों का पता लगाने का प्रावधान करने वाले संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों को शुक्रवार को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया।जनवरी में एक खंडपीठ ने संशोधित आईटी नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर खंडित निर्णय दिया था, जिसके बाद एक निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए न्यायमूर्ति ए एस चंदुरकर के पास इस मामले को भेजा गया था।
फैक्ट चेक यूनिट पर मोदी सरकार को बॉम्बे हाईकोर्ट से झटका लगा है। अदालत ने शुक्रवार को आईटी नियमों में 2023 के संशोधन को रद्द कर दिया। इसका मतलब है कि केंद्र सरकार फैक्ट चेक यूनिट नहीं बना सकती है। इन संशोधित नियमों से ही केंद्र सरकार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसके कामकाज के बारे में 'फर्जी और भ्रामक' सूचनाओं की पहचान करने और उन्हें खारिज करने के लिए फैक्ट चेक यूनिट बनाने की मंजूरी मिली थी।
न्यायमूर्ति चंदुरकर ने शुक्रवार को कहा कि ये नियम संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं।न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैंने इस मामले पर गहनता से विचार किया है। विवादित नियम संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 19(1)(जी) (व्यवसाय की स्वतंत्रता और अधिकार) का हनन करते हैं।’’उन्होंने कहा कि नियमों में ‘‘फर्जी, झूठा और भ्रामक’’ अभिव्यक्ति किसी परिभाषा के अभाव में ‘‘अस्पष्ट और इस तरह गलत’’ है।
इस फैसले के साथ, उच्च न्यायालय ने हास्य कलाकार कुणाल कामरा और अन्य द्वारा नये नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को स्वीकार कर लिया। इन नियमों में, सरकार के बारे में फर्जी या झूठी सामग्री की पहचान करने के लिए एक तथ्य जांच इकाई (एफसीयू) स्थापित करने का प्रावधान भी शामिल है।
जनवरी में न्यायमूर्ति गौतम पटेल और एन. गोखले की खंडपीठ द्वारा खंडित फैसला सुनाए जाने के बाद आईटी नियमों के खिलाफ याचिकाएं न्यायमूर्ति चंदुरकर के पास भेज दी गई थीं।न्यायमूर्ति पटेल ने कहा था कि ये नियम ‘सेंसरशिप’ के समान हैं, लेकिन न्यायमूर्ति गोखले ने कहा था कि इनका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। न्यायमूर्ति चंदुरकर ने शुक्रवार को कहा कि वह न्यायमूर्ति पटेल (अब सेवानिवृत्त) द्वारा दी गई राय से सहमत हैं।
केंद्र सरकार ने 6 अप्रैल 2023 को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 में संशोधनों को लागू किया था, जिसमें सरकार से संबंधित फर्जी, झूठी या भ्रामक ऑनलाइन सामग्री को चिह्नित करने के लिए ‘एफसीयू’ का प्रावधान किया जाना भी शामिल था।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि ये दोनों नियम धारा 79 के विरुद्ध हैं जो मध्यस्थों को तीसरे पक्ष की सामग्री के खिलाफ कार्रवाई से बचाता है और आईटी अधिनियम 2000 की धारा 87(2)(जेड) और (जेडजी) के विरुद्ध हैं। इसके अलावा तर्क दिया गया कि वे नियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत नागरिकों को 'कानून के तहत समान सुरक्षा' और अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(जी) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करने वाले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
अपनी याचिका में कुणाल कामरा ने कहा कि वह एक राजनीतिक व्यंग्यकार हैं, जो अपनी सामग्री साझा करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर निर्भर हैं और नियमों के कारण उनकी सामग्री पर मनमाने ढंग से सेंसरशिप हो सकती है।याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि नियम संशोधन से सामग्रियों पर मनमाने ढंग से सेंसरशिप हो सकती है क्योंकि इन्हें रोका जा सकता है, हटाया जा सकता है, या उनके सोशल मीडिया खातों को निलंबित या निष्क्रिय किया जा सकता है।हालाँकि, सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने दावा किया था कि यह जनहित में होगा कि सरकार के कामकाज से जुड़ी प्रामाणिक जानकारी का पता लगाया जाए और उसे सरकारी एजेंसी द्वारा फैक्ट चेक के बाद प्रसारित किया जाए ताकि बड़े पैमाने पर जनता को होने वाले संभावित नुकसान को रोका जा सके।
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