दिल्ली में अबकी बनेगी  ' रेबड़ी  सरकार '

दिल्ली में अबकी बनेगी  ' रेबड़ी  सरकार '

आगामी 5  फ़रवरी2015 को देश की राजधानी दिल्ली में चाहे जिस दल की सरकार बने ,लेकिन उसे आपको 'रेबड़ी सरकार ' ही कहना और मानना पडेगा,क्योंकि इस बार सरकार बनाने के लिए सभी प्रमुख राजनितिक दलों के बीच मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त की रेबड़ियाँ  बांटने की होड़ लगी है।  पहली बार है की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी को सत्ताच्युत करने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने बराबरी से कमर कसी हुई है।  सभी दल किश्तों में फ्रीबीज यानि मुफ्त की रेबड़ियाँ बांटने की घोषणाएं करने में लगे हैं।

दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है ।  दिल्ली सीमावर्ती राज्य भी नहीं है ।  दिल्ली केंद्र शासित क्षेत्र ह।  लेकिन विसंगति ये है कि केंद्र सरकार का दिल्ली में शासन नहीं है ।  यहां की स्थानीय सरकार आम आदमी पार्टी की है और आज से नहीं पिछले एक दशक से है।  और तब है, जब से देश में महाबली प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी का राज है।  मोदी जी और उनकी चतुरंगनी सेना पिछले दो विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी से पार नहीं पा सकी। भाजपा को दोनों ही चुनावों में पराजय का समाना करना पड़ा ,लेकिन अब लगता है कि  भाजपा हार मानने वाली नहीं है ।  जीत का फार्मूला भाजपा के हाथ लाग चुका है।

भाजपा इस बार दिल्ली जीतने के लिए साम,दाम,दंड और भेद के अलावा मतदाताओं का दिल जीतने के लिए मुफ्त की रेबड़ियाँ भी दोनों हाथ से बांटने के ऐलान कर है। भाजपा की रेबड़ियाँका आकार इस बार आम आदमी पार्टी की रेबड़ियाँ से बड़ा है।  रेबड़ी  अक्सर  गुड़ और तिल से बनती है। सियासी रेबड़ियाँ में मिठास बढ़ाने के लिए सभी राजनीतिक दल ज्यादा से ज्यादा गुड़ डालने की कोशिश करते है।  कुछ दलों ने तो गुड़ के साथ शक्कर और मावा भी मिलाने की कोशिश की है।  रेबड़ी का इतिहास मुझे नहीं मालूम लेकिन मै इतना जानता हूँ कि  ये सनातनकाल से बनती जाती है।

 आकार में छोटी होती हैं,बांटने में आसान होती हैं। किफायती होती हैं ,इसलिए हर कोई इन्हें बांटना पसंद करता है। रेबड़ी प्रसाद के रूप में मंदिरों में चढ़ाई जाती है और तबर्रुक के रूप में मजारों पर भी चढ़ाई जाती है। इसलिए रेबड़ी धर्मनिरपेक्ष  मिष्ठान की श्रेणी  में आती है। सियासत  में रेबड़ी का प्रचलन शायद इसकी इन्हीं खूबियों की वजह से शुरू हुआ ।  इसका आगाज शायद कांग्रेस ने ही किया था। अब हर राजनीतक दल रेबड़ी का इस्तेमाल करता ह।  रेबड़ियाँ मतदाताओं को बांटी जाती है।  कभी बहनों को तो कभी बुजुर्गों को ।

 कभी लाड़ली लक्ष्मियों को तो कभी नौजवानों को।  मतदाताओं के हर वर्ग के लिए   अलग-अलग आकर की रेबड़ियाँ बांटी और बनाई जाती हैं।  आजकल रेबड़ी निर्माण और वितरण में भाजपा दुसरे दलों से सबसे आगे है और इसकी वजह से भाजपा को राज्य विधानसभा चुनावों में लगातार विजयश्री हासिल हो रही है।  मप्र,राजस्थान,छत्तीसगढ़ ,महाराष्ट्र  और हरियाणा के मतदाताओं ने भाजपा ब्रांड रेबडियों को पसंद किया ,लेकिन हिमाचल,कर्नाटक,तेलंगाना में भाजपा की रेबड़ियाँ नहीं चलीं।

राजनीति में रेबड़ी  कल्चर ने लोकतंत्र  और चुनावों में शुचिता का बंटाधार कर दिया है।  रेबडियों के वितरण पर न अदालत रोक लगा पायी है और न चुनाव आयोग। इसलिए रेबड़ियाँ बेरोक-टोक बनाई और बेचीं जा रहीं हैं,ये जानते हुए भी कि  ये लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए घातक हैं। मुफ्त की रेबडियों से लोकतंत्र को असाध्य रोग हो रहे हैं ,किन्तु किसी को लोकतंत्र की नहीं पड़ी । सभी सत्ता प्रतिष्ठान  पर काबिज होना चाहते हैं। अब मतदाता भी राजनितिक दलों और नेताओं के चाल,चरित्र और चेहरे पर ध्यान देने के बजाय रेबडियों पर ध्यान दे रहे हैं।मतदाता संत कबीर की नहीं सुन रहा ।  कबीर बाबा ने बहुत पहले ही बता दिया था कि  गुड़ से बनी कोई चीज यानि रेबड़ी हो या गुड़ खरतनाक है ।  उन्होंने लिखा- “माषी गुड़ में गड़ि रही हैं, पंख रही लपटाय।  

ताली पीटै सिर धुने, मीठे बोई माइ”।। लेकिन दुर्भाग्य देखिये की मतदाता जो माखी यानि मख्खी है ,जानबूझकर गुड़ में अपने आजादी कि पंख लिपटता जा रहा है। बाद में उसे पछताना ही पड़ता है।
दुनिया में अभी तक ' बनाना रिपब्लिक ' यानि  ' केला लोकतंत्र ' का जिक्र होता आया है लेकिन अब नयी पीढ़ी जब राजनीति का इतिहास पढ़ेगी तो उसे ' बनाना रिपब्लिक '  के साथ ही ' रेबड़ी रिपब्लिक ' का नया अध्याय  भी पढ़ना पडेगा। [' बनाना रिपब्लिक '  का अर्थ समझने के लिए गूगलायें ] बनाना रिपब्लिक तो घातक है ही 'रेबड़ी रिपब्लिक ' उससे भी ज्यादा घातक साबित हो रहा है।

हमारे देश में तो चुनाव हों या न हों  लेकिन 80  करोड़ से जायदा लोग मुफ्त  की रेबड़ियाँ यानि मुफ्त का पांच किलो अनाज खाकर ही ज़िंदा हैं ,वो भी केवल मतदान करने के लिए ताकि लोकतंत्र ज़िंदा रहे। लेकिन अब वक्त आ गया है कि  जनता मुफ्त की रेबडियों से अपने आपको और आने वाले पीढ़ियों को भी बचाये,अन्यथा देश  का बहुत नुक्सान हो सकता है।

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