अन्तर्राष्ट्रीय रामायण कॉन्क्लेव नयी पीढ़ी को प्राचीन संस्कृति से जोड़ने की पहल

प्रतिनिधित्व करते हैं, वह प्रेम और समानता को ही जीवन का आधार मानते हैं|


स्वतंत्र प्रभात 
 

डॉ दीपकुमार शुक्ल पत्रकार


श्रीराम का जीवन चरित्र भारतीय संस्कृति की सम्पूर्णता का द्योतक है| उनका राज्य सञ्चालन आदर्श शासन का सर्वोत्तम उदाहरण है| आजादी के बाद महात्मा गाँधी ने भारत में रामराज्य के ही आदर्शों से ओतप्रोत शासन की परिकल्पना की थी| जो कदाचित राजनीति के विभिन्न विद्रूपों के कारण आज तक साकार नहीं हो पायी| 15 अगस्त 1947 के बाद से हमारे नीति-नियन्ता रामराज्य लाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें तो करते रहे परन्तु नयी पीढ़ी को राम के आदर्शों से जोड़ने का सार्थक प्रयास शायद ही कभी हुआ हो| एक समय तो ऐसा भी आया जब राम को हिन्दुत्व की सीमा रेखा में समेटकर उनके चरित्र की शिक्षा को साम्प्रदायिक तक कहा गया| जबकि राम विश्व बन्धुत्व का आदर्श प्रस्तुत करने वाली संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं, वह प्रेम और समानता को ही जीवन का आधार मानते हैं|

 इसी कारण विश्व का प्रत्येक सद्पुरुष अपने सम्प्रदाय की सीमा का खुलेआम उल्घंन करके श्रीराम के चरित्र की भूरि-भूरि प्रशंसा करता है और उन्हीं का अनुकरण करने का प्रयास करता है| राम और उनकी कथा के इसी वैश्विक स्वरुप को कला एवं संस्कृति के माध्यम से जीवन्तता प्रदान करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग ने विगत वर्ष से अन्तर्राष्ट्रीय रामायण कॉन्क्लेव का आयोजन प्रारम्भ किया है, जिसे सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने में अत्यन्त प्रभावी माना जा रहा है| पहले वर्ष का आयोजन अयोध्या, लखनऊ और चित्रकूट में हुआ था| जबकि इस वर्ष प्रदेश के 16 स्थानों पर यह कार्यक्रम आयोजित हो रहा है|

 29 अगस्त को अयोध्या के रामघाट से प्रारम्भ हुई रामायण कॉन्क्लेव की यात्रा गोरखपुर, बलिया, वाराणसी, विन्ध्याचल, चित्रकूट, श्रृंगवेरपुर, बिठूर, ललितपुर, गाजियाबाद, मथुरा, गढ़मुक्तेश्वर, सहारनपुर, बिजनौर, बरेली और लखनऊ होते हुए एक नवम्बर को वापस अयोध्या के रामघाट पर समाप्त होगी| 29 अगस्त के कार्यक्रम में राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द मुख्य अतिथि थे| तब उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा था कि ‘रामायण सामाजिक समरसता’ पर आधारित रामायण कॉन्क्लेव के आयोजन में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन की विभिन्न लीलाओं पर आधारित रामलीला एवं लोक प्रस्तुतियाँ हमारी आने वाली पीढ़ियों में श्रीराम के जीवन आदर्शों के प्रति अभिरुचि उत्पन्न करने में सहायक सिद्ध होंगी तथा इस अभिनव आयोजन के माध्यम से युवाओं को रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे| 


उन्होंने यह भी कहा कि आज के युग में भले ही विज्ञान ने उन्नति कर ली हो किन्तु फिर भी श्रीराम का नाम आज भी श्रीराम ही है| यही कारण है कि हम सब के ईष्टदेव श्रीराम का नाम ही हमारे जीवन को सार्थकता की ओर ले जाता है| इस अवसर पर मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत के असंख्य प्रवासी नागरिक विश्व के अनेक देशों में जाकर बसे हैं| जिनकी मूल आत्मा आज भी श्रीराम के आदर्शों से प्रेरणा लेती है और संजीवनी लेती है, यही कारण है कि मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, त्रिनिदाद, इंडोनेशिया, बर्मा, श्रीलंका, कीनिया, दक्षिण अफ्रीका जैसे अनेक देशों समेत कई यूरोपीय देशों में वैदिक मान्यताओं से ओतप्रोत श्रीरामचरित संस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार है|


 कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य में सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने तथा संसार के अन्य सभी महाद्वीपों, देशों, संस्कृतियों और मान्यताओं से जुड़े हुए लोगों के मानस पटल पर अपनी विशिष्ट संस्कृति की उत्तम छवि अंकित करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा गत वर्ष से रामायण कॉन्क्लेव का आयोजन प्रारम्भ किया गया, इस कॉन्क्लेव में विभिन्न देशों में प्रचलित श्रीरामकथा दर्शन पर अधिकृत विद्वानों को भी ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर आमन्त्रित किया जायेगा, जिससे सांस्कृतिक आदान-प्रदान में भी समृद्धि होगी और महामारी अथवा अन्तर्राष्ट्रीय सीमायें भी इसके आड़े नहीं आयेंगी|
  

रामायण कॉन्क्लेव के संयोजन का दायित्व उत्तर प्रदेश के संस्कृति विभाग का प्रमुख घटक अयोध्या शोध संस्थान निभा रहा है| इस संस्थान द्वारा विगत कुछ वर्षों में रामायण, रामकथा और रामलीला पर आधारित अनेक वृहद् कार्य एवं आयोजन किये गये हैं| चौदह देशों की रामलीला को एक मंच प्रदान करने से लेकर रामायण महाविश्वकोश बनाने तक का श्रेय अयोध्या शोध संस्थान को ही जाता है| दीपोत्सव के सांस्कृतिक स्वरुप को तय करने और उसे क्रियान्वित कराने का मुख्य दायित्व इसी संस्थान पर रहता है और अब अन्तर्राष्ट्रीय रामायण कॉन्क्लेव की कमान भी अयोध्या शोध संस्थान के हाँथों में है|


 संस्थान के निदेशक डॉ.लवकुश द्विवेदी बताते हैं कि इस कार्यक्रम के माध्यम से हम लोक कलाकारों को ज्यादा से ज्यादा अवसर देने का प्रयास कर रहे हैं| ताकि आम जन को इस कार्यक्रम से जोड़ा जा सके| रामायण कॉन्क्लेव में राम कथा से जुड़े विषयों पर गोष्ठी, गीत, संगीत, लोकगीत, नाट्य, लोकनाट्य, लोकनृत्य तथा कवि-सम्मेलनों का आयोजन किया जा रहा है| इन कार्यक्रमों के माध्यम से लगभग 2500 कलाकारों को अपनी कला दिखाने का अवसर मिलेगा| राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय विद्वानों की गोष्ठी के विषय न केवल रामायण से जुड़े हैं बल्कि भारत की प्राचीन संस्कृति तथा रामकथा के विभिन्न पहलुओं को जानने और समझने का भी अवसर देते हैं|


रामकथा में सामाजिक समरसता लोक मानस में राम रामकथा में भ्रातृप्रेम राम के शिव और शिव के राम राम और आस्था वनवासी राम रामकथा में सखा भक्ति नारी सम्मान और रामकथा शबरी के राम रामराज्य की परिकल्पना वाल्मीकि और तुलसी के राम राम भक्त हनुमान रामकथा में ऋषि परम्परा तथा जड़ चेतन में राम ये सभी विषय भारतीय संस्कृति का अगाध ज्ञान स्वयं में समेटे हुए हैं| 

वक्तागण समाज के साथ उसमें से कितना साझा करने में सफल रहे, यह समीक्षा का विषय हो सकता है| परन्तु इसे नयी पीढ़ी को भारतीय संस्कृति से जोड़ने की सार्थक पहल कहने से कोई भी इंकार नहीं कर सकता| शास्त्रीय संगीत और सुगम संगीत पर आधारित भजन, लोकगीत, लोकनाट्य, नाटक, शास्त्रीय नृत्य तथा लोक नृत्य की प्रस्तुतियाँ प्राचीन भारत की छवि को साकार करने का कार्य कर रही हैं| जैसी कि सरकार की मंशा भविष्य में इस आयोजन को देश-प्रदेश की सीमा से बाहर वैश्विक स्वरुप प्रदान करने की है तो यह कार्यक्रम निश्चित ही विश्व को एक नयी दिशा देगा| भारतीय संस्कृति का मूल आधार सदैव निश्छल प्रेम तथा वसुधैव कुटुम्बकं रहा है और श्रीराम ने इसे ही व्यावहारिक स्वरुप प्रदान करते हुए अपनी शासन व्यवस्था में स्थापित किया था|


 रामराज्य का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं ‘बयरु न कर काहू सन कोई| राम प्रताप विषमता खोई|| सब नर करहिं परस्पर प्रीती| चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती|| नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना| नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना|| सब उदार सब पर उपकारी| बिप्र चरन सेवक नर नारी|’ गाँधी जी भारत का ऐसा ही स्वरुप देखना चाहते थे| परन्तु आजादी के चवहत्तर वर्ष बाद भी यह सम्भव नहीं हुआ बल्कि इससे विपरीत परिदृश्य का आज हम दर्शन कर रहे हैं|


 असम्भव कुछ भी नहीं है| रामराज्य की परिकल्पना को आज भी सार्थक किया जा सकता है| परन्तु यह तभी सम्भव है जब नयी पीढ़ी को राम के आदर्शों और सिद्धान्तों का ज्ञान पूरी ईमानदारी से कराया जाये| रामायण कॉन्क्लेव जैसे कार्यक्रम इस दिशा में महती भूमिका निभा सकते हैं| बशर्ते इससे आम जन को जोड़ने का हर सम्भव प्रयास किया जाये|  

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